eMag_June2022_DA | Page 48

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पिछड़े समुदताय के लोगों की गतांधीरतादी मताकनसकतता को तोड़ देनता चताहती हूँ । इसलिए अधिक उग् और सटीक शबदों के प्रयोग से अपनी कवितताओं को सताथ्वक रूप में लिखता है । आज के दौर कता दलित जन मतानस अमबेडकररतादी वैज्ञानिक विचतारधतारता को समझ रहता है । कुछ पिछडता दलित समुदताय जो अभी तक अंधेरे में गुमरताह हैं , उन्हें भी जतागरूक बनताने के प्रयतास मुखय है । केवल लेखन नहीं बल्कि उद्ोधन भताषण से भी मैं अपनी जिममेदतारी निभताने कता कताय्व कर रही हूँ ।
प्रश्न — आपकरी कहानियों और उपन्ासों में नाररी का शोषण और पीड़ा करी अभिव्क्त होतरी है । आपके पारि सामंतरी- जातिवादरी व्वस्ा के खिलाफ विद्ोह करते हैं । नाररी पारि दलित और सरिरी होने करी लड़ाई लड़ते हैं । क्ा आज िरी दलित कसरियाँ पितृसत्ा के कारण अपने हरी पुरुषों और दलित होने के कारण दबंग जातियों से दोहररी लड़ाई लड़ रहरी हैं । सरिरी-पुरुष बराबररी करी लड़ाई में वे कहां तक सफल हुई हैं ?
उत्र — मेरी सत्री एवं दलित सत्री प्रधतान सभी कहताकनयों में नतारी के शोषण और पीडता की अभिवयन्कत हुई है । इन के मताधयम से रण्वरतादी जताकतरतादी और दमनरतादी वयरस्था के प्रति कररिोह है । सत्री की यह लडताई अभी भी चल रही है । वर्तमतान समय में भी समताज में पितृसत्ता की मतानसिकतता है जिसके कतारण स्त्रियों को पुरुषों के बरताबर नहीं मतानता जतातता , उन्हें पुरुषों के पीछ़े मतानता जतातता है । ऐसी स्थितियों में आज भी स्त्रियताँ लिंगभेद के विरुद् और सत्री पुरुष समतानतता की लडताई लड़ रही हैं । सत्री चताहे सवर्ण हो यता दलित — सभी स्त्रियताँ पितृसत्ता से पीड़ित होती हैं । दलित सत्री को दोहरे मोचयों पर दोहरी लडताई लड़नी पड़ती है - सत्री होने के कतारण भी और दलित सत्री होने के कतारण भी । दलित पुरुष भी मनुरतादी विचतारधतारता के कतारण सरयं को दलित सत्री से सबल और सक्म मतानतता है । दलित सत्री अपने ही घर परररतार में पुरुषसत्ता कता सतामनता
करती है और घर से बताहर सवर्ण और दबंग पुरुषों द्वारता भी शोषण कता शिकतार बनताई जताती है । अमबेडकररतादी विचतारधतारता से सत्री पुरुष समतानतता कता आन्दोलन सफल जरूर हुआ है मगर अभी भी ऐसे कई अपरताद है जिससे सत्री पुरुष समतानतता नजर नहीं आती है । क़तानून के सतामने सत्री पुरुष समतान हैं मगर सतामताकजक वयरहतार में पितता , भताई , पति यता पुत्र को ही अधिक महतर दियता जतातता है । इन परमपरताओं को तोड़कर ही सत्री-पुरुष समतानतता आ सकेगी ।
प्रश्न – आप वासतलवक जरीवन में दलित एकता को किस नज़रिये से देखतरी हैं ? क्ा दलितों में एकता बढ़ रहरी है या अिरी िरी दलित उच्च-निम्न क्रम में बंटे हुए एक दयूसरे से श्ेष्ठ होने के दंभ में जरी रहे हैं ?
उत्र – कोई भी लेखक और लेखिकता अपने रतासतकरक जीवन में जो चताहते हैं , वह उनकी लेखनी में किसी न किसी रूप में उजतागर जरूर होतता है । मैंने भी अपने रतासतकरक जीवन में इसी रूप में देखनता चताहता है । यह प्रश्न अलग है कि-क्या दलितों में इस तरह की एकतता बढ़ रही है यता नहीं ? रतासतकरक बतात सतय रूप में यही है कि अभी भी दलितों में , ऊंच-नीच की भतारनता है । वे आपस में भी दलित जताकतयों में उपजताकत के क्रम के अनुसतार एक दूसरे से श्रेष् होने कता दमभ रखते हैं । चताहे वे महताराष्ट्र के महतार जताकत के हों अथरता उत्र भतारत के चमतार जताकत के – दलित होने पर भी जताकत श्रेष्तता की भतारनता उनमें हैं जबकि अन्य पिछड़ी दलित जताकतयतां सरयं को दलितों में ही दलित मतानकर अभी भी शोषित पीड़ित गरीब और पिछडी अवस्था में जी रही हैं । रतालमीकि , सुदर्शन , मखियतार , मतांग मतातंग पिछड़ी जताकतयतां हैं । इनके बीच भी जताकत भेद मौजूद है । इन्हीं पिछड़ी दलित जताकत के पतात्रों द्वारता मैंने दलित एकतता की बतात कही है । इनके बीच भी सिर्फ खतान-पतान होतता है शतादी-कररताह के रिशते नहीं होते । अंतरजतातीय कररताहों से ही एकतता संभव होगी ।
प्रश्न – बाबा साहेब ने अंतरजातरी्
विवाह को जाति के विनाश में एक महतवपयूणति जरिया माना था । आज के सनदिति में क्ा कथित उच्च जाति के लोग अपनरी बेटरी का विवाह कथित निम्न जाति में करने को सहमत होते हैं या उनका उच्च जाति का दंभ इसमें आड़े आता है ?
उत्र – यह बताबता सताहब आंबेडकर जी कता ही विचतार है कि अंतरजतातीय कररताह , जताकत के विनताश में एक महतरपूर्ण घटक है । यदि सभी वर्ण और जताकत के लोग आपस में निश्चित रूप से अंतरजतातीय कररताह करने लगेंगे , तब यह वर्ण भेद जताकत भेद की भतारनता सरयं समूल नषट हो जताएगी । लेकिन हमतारी समताज वयरस्था में
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