eMag_June2022_DA | Page 47

प्रश्न – सुशरीिा जरी सबसे पहले आप अपनरी जरीवन व लेखन यारिा के बारे में शुरुआत से और विसतार से बताएं ।
उत्र — मेरता जन्म 1954 में हुआ है , 6-7 वर्ष की उम्र से ही मैं अपनी स्थिति और अपने जताकत समुदताय के प्रति जताकत-भेद , अपमतान , घृणता और अद्यताय , अत्याचतार की स्थिति को समझने लगी थी । सन 1960 से 70 के बीच मैंने अपनी नतानी को हताथों से लोहे के पंजे से टोकने में मलमूत्र उ्ताते और गताँव के बताहर ले जताकर फेंकते हुए देखता है । मेरी नतानी की दीन- हीन दशता उस समय कता कटछु सतय है । सदती , गमती और बरसतात के मौसम में उसकता कताम ऐसता ही होतता थता । बदले में गतांव से बस जूठन और उतरन कपड़े मिलते थे । मतां के समय भी हमने गरीबी और अभतारों कता जीवन जियता थता । गतांव के बताहर झोपडी जैसे घर थे । गतांव के सभी लोग छछुआछूत मतानते थे । 1970 से 74 तक कॉलेज की शिक्षा पताते समय भी मैंने जताकत भेद कता दर्द और अपमतान पतायता थता । वर्तमतान समय की दलित सत्री इस शिंकजे को तोड़ने में कितनी सक्म हुई है ? – ऐसी स्त्रियों की संख्या बहुत कम है , जो उच्च शिक्षा पताकर सम्मान की नौकरी करनी लगी हैं , जो बड़े शहरों में रहती हैं । वे सम्मानित जरूर बनी हैं । मगर फिर भी उनके प्रति समताज की मतानसिकतता जताकतरताद ही है । मैंने सरयं ऐसता अपमतान सहता है । लेखन तो सकूल में पढ़ने के समय से होतता रहता मगर प्रकताशन कई बरसों बताद संभव हो सकता । मतातता-पितता अकशकक्त थे । कशकक्त भताईयों कता सहयोग मेरे लेखन-प्रकताशन में नहीं मिलता । अछूत जताकत से होने के कतारण सताकहन्तयक कताय्वक्रमों तक पहुंचने के अवसर नहीं मिल सके । लतायब्रेरी से अचछी सताकहन्तयक कितताबें लताकर पढ़ने के अवसर नहीं मिले । कररताह के बताद नतागपुर आने पर सतामताकजक और सताकहन्तयक कताय्वक्रमों में जताने के अवसर मिले । सताकहतय लेखन को भी प्रोत्साहन मिलता । अधिकतर लोग मुझसे पूछते हैं कि आपको लेखन की प्रेरणता किस से मिली है तब मैं यही विचतार करती हूँ कि लेखन की प्रेरणता मुझे किसी अन्य से नहीं , बल्कि अपने अन्तःकरण से ही
मिली है । प्रतारमभ में भतारुकतता के सताथ मतानवततारतादी विचतारधतारता से , मेरता लेखन होतता थता । महताराष्ट्र में आने के बताद डॉ . भीमरतार आंबेडकर की विचतारधतारता से मैं दलित सताकहतय लिखने लगी हूँ ।
प्रश्न – आपकरी कविताएं अशिक्ा , अज्ान और जड़ता के अन्धकार में सोये दलित जनमानस को अमबेडकरवादरी विचार्धारा से आलोकित कर जगाने का कार्य करतरी हैं । आज के दौर का दलित जनमानस अमबेडकररी वैज्ालनक विचार्धारा से कितना परिचित है ?
उत्र — मेरी अधिकतांश कवितताएं ‘ दिल की चट्टतान पर गहरी चोट के फलसररूप फूटीं
चिंगतारियों की तरह सृजित हुई है जिनके मताधयम से मैंने अशिक्षा , अज्ञान और जड़तता के अन्धकतार में सोये दलित जनमतानस को आंबेडकररतादी विचतारधतारता से आलोकित करने कता प्रयतास कियता है । मेरे लेखन कता उद्ेशय मूलरूप से सत्री विमर्श और दलित विमर्श है । महताराष्ट्र के दलित आन्दोलन और सत्री-मुक्ति आन्दोलन में मैं सक्रिय भतागीदतारी करती रही हूं । आन्दोलनों से जुड़े सताकहतय कता लेखन अधिक सक्रिय और क्रतांकतकतारी रुप में सृजित होतता है । मैंने भी उसी रूप में अपने भतार और विचतारों को सताकहतय के रुप में अभिवयन्कत प्रदतान की है । महताराष्ट्र में आने के बताद और अमबेडकररतादी विचतारधतारता को समझने के बताद , मैंने गतांधी जी के हरिजनों की कमजोर मताकनसकतता को समझता । मैं अपने
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