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सुशीला टाकभौरे
दलित स्ती त्वमर्श की सशक्त लेखिका
दलितों में आपसी ऊं च — नीच की मानसिकता का खात्मा जरूरी जाति व्यवस्ा और पितृसत्ा पर लेखनी से सशति प्रहार
हिंदी दलित सारहत् में सुशीला टाकभौरे एक सुपरिचित नाम हैं । इनकी आत्मकथा “ शिकं जे का दर्द ” काफी चर्चित रही है । सुशीला जी ने कविता , कहानी , उपन्यास , नाटक आदि कई विधाओं में लेखन किया है । कई कहानियां , कविता और उपन्यास , आत्मकथा विभिन्न राज्यों के पाठ्यक्रम में लगी हुई हैं । सुशीला जी ने अपने लेखन में दलित और स्त्री विमर्श को प्रमुखता से उठाया है । इन्ें कई पुरस्ारों से सम्ानित किया गया है । सुशीला जी का लेखन सहज , सरल और सीधे शब्ों में अपनी बात कहता है । उनके पात् दलित और स्तस्त्रयों के हक़- अधिकार की मांग करते हैं । अन्याय और अत्ािार का विरोध करते हैं । जाति व्यवस्ा और पितृसत्ा का खात्मा चाहते हैं । अं तरजातीय विवाहों का समर्थन करते हैं । इनके पात् समता , समानता , स्िंत्िा , न्याय और बंधुत्व के ्क्धर होते हैं । हाल ही में उनसे बात हुई । प्रस्तुत है राज वाल्ीनक के साथ हुई उनकी बातचीत के प्रमुख अं श :
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