समता की बात करने वाले िहंददू समाज में बो रहे घकृणा का बीज | ||
रवि अग्रहरि
लोकतंत् के हिमायतरी
बाबा साहब भरीमरा्व आंबेडकर
सामाजिक का जनम मधर भारत प्रांत ्वत्यमान मधर प्रदेश के सैनर छा्वनरी ‘ महू ’ में एक मराठरी परर्वार में हुआ था । ्वह रामिरी मालोिरी ( लब्लटश सेना में सूबेदार ) और भरीमाबाई करी 14्वीं संतान थे । ्वर्ष 1897 में , भरीमरा्व अपने परर्वार साथ मुंबई चले गए और ्वहां एल्फंसटन हाई सकूल से प्रारंभिक शिक्ा प्रा्त करी । अप्रैल 1906 में , जब ्वह 15 ्वर्ष के थे , तब उनका ल्व्वाह 9 ्वर्ष करी लड़करी रमाबाई से हुआ ।
्वर्ष 1913 में , उनहें सयािरीरा्व गायक्वाड़ तृतरीर ( बड़ौदा के गायक्वाड़ ) द्ारा सथालपत एक योजना के तहत नरूरॉर्क ससथत कोलंबिया ल्वश्वल्वद्ालय में स्ातकोत्र शिक्ा के अ्वसर प्रदान करने हेतु 3 साल के लिए 755 रूपये प्रति माह बड़ौदा राजर करी छात्रवृलत् प्रदान करी गई थरी । जिसके चलते 22 साल करी उम् में ्वह संयुकत राजर अमेरिका चले गए । अकटूबर 1916 में , डॉ ॰ भरीमरा्व आंबेडकर लंदन चले गए और ्वहां ‘ ग्ेज़ इन ’ में बैरिसटर कोर्स ( ल्वलध अधररन ) के लिए दाखिला लिया और साथ हरी लंदन सकूल ऑि इकनॉमिकस में दाखिला लिया । जहाँ उनहोंने अर्थशासत् करी डॉकटरेट थरीलसस पर काम करना शुरू किया ।
जून 1917 में , ्वह अपना अधररन अस्थायी रूप से बरीच में हरी छोड़ कर भारत लौट आए । भारत लौटने पर भरीमरा्व बड़ौदा राजर के सेना सलच्व के रूप में कार्य करने के लगे । जहां कुछ दिन बाद उनहें पुनः भेदभा्व का सामना करना पड़ा । अंत में , बाबा साहेब ने नौकररी छोड़ दरी और एक लनिरी ट्ूटर और एक लेखाकार के रूप में काम करने लगे । ्वर्ष 1918 में , ्वह मुंबई में सिडेनहम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकनॉमिकस में राजनरीलतक अर्थव्यवसथा के प्रोफेसर बने । बाद करी कहानरी से आप ्वाकिफ
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हैं कि तरह से उनहोंने सामाजिक सुधर और
दलितों के उतथान के लिए कार्य किया और बाद
में संल्वधान सभा में संल्वधान निर्माण में प्रमुख
भूमिका निभाई ।
डॉ . भरीम रा्व आंबेडकर ने िरी्वन करी कठिन परिससथलतरों के बरीच भरी रासता निकालकर न सिर्फ खुद को ऊपर उठाया बसलक सामाजिक- आर्थिक रूप से पिछड़े समाज को भरी एक ऐसा आदर्श दिया कि अगर कोई ठान ले तो अपनरी परिससथलतरों के कुचक्र को तोड़कर नई राह पर आगे बढ़ सकता है । चलिए आज बाबा साहब के तमाम ्वैचारिक और ्वैरसकतक पहलुओं पर गौर करते हैं , जो उनकरी ल्वचारधारा और भारत के बदलते परिदृशर के मूल धरोहर है ।
हालांकि , आज जिस तरह से ्वामपंथियों ने बाबा साहब के ल्वचारों में घालमेल कर राषट्र उतथान के हर कार्य में ल्वघ्न डालने के लिए बाबा साहब के ल्वचारों के नाम पर खिचड़ी परोसकर ल्वनाश लरीला रचने करी कोशिश करी है , ्वह पूरा सच नहीं है । बाबा साहब ने सामाजिक ल्वसंगतियों को महसूस किया था जिससे उनहें दलितों के उतथान के प्रति कार्य कार्य करने करी प्रेरणा मिलरी । उसके लिए ्वो ्वैचारिक रूप से गांधरी से भरी टकराने या उनसे अपनरी बात मन्वाने से परीछे नहीं हटे । लेकिन आज जिस तरह से ्वामपंथरी पक्कार उनकरी छल्व को अतिशय आक्रामक बनाकर पेश करते हैं , करा उनका वरसकतत्व उतना हरी ल्वध्वंशक था । किसरी करी उन्नति के लिए कार्य करने का यह मतलब नहीं होता कि दूसरे का समूल नाश करना । जैसा करी आज ्वामपंथरी बाबा साहब के नाम से हर ल्वघटनकाररी बात आगे बढ़ाते हैं , उनका उद्ेशर बाकरी समुदायों का ल्वनाश कभरी नहीं रहा ।
आज कॉनग्ेस से लेकर पूरा ्वामपंथरी गिरोह जिस तरह से बाबा साहब को ऐसा दिखाने कि कोशिश करता है कि जैसे ्वहरी बाबा साहब के
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सपनों के भारत के सबसे बड़े हिमायतरी हैं । जबकि सच्चाई यह है कि जब ्वह िरील्वत थे तब न कॉनग्ेसरी उनके साथ थे और न ्वामपंथरी । ्वैसे ्वामपंथरी ल्वचारधारा का मक़सद हरी ल्वनाश और चलतरी व्यवसथा को पटररी से उतारना रहा है । कभरी भरी ्वामपंथियों ने अपने कारषों से ऐसा कोई उदहारण नहीं प्रसतुत किया कि ल्वनाश और ल्वरोध छोड़ लोग उनके रचनातमक कारषों |