दरी । 19्वीं शताब्दी के अंत तक ल्वश्व भारत के बारे में बहुत कम जानता था । अंग्ेिों ए्वं ईसाई मिशनरियों ने भारत के बारे में कई भ्ांलतरां फैलाईं , जैसे कि भारत असभर ए्वं सपेरों का देश है , यहां पर बुराइयों करी भरमार है , लोग जंगलरी ए्वं बुररी परंपराओं को मानते हैं आदि- आदि । स्वामरीिरी ने इन भ्ांलतरों को दो सतरों पर दूर किया । प्रथम उनहोंने भारत में बंटे हिनदू समुदायों को एक मंच पर एकलत्त कर हिनदू धर्म का सार समझाया , ्वहीं दूसररी ओर पसशचमरी देशों करी यात्ा कर भारत के बारे में जो भ्ांलतरां
फैलीं थीं उनहें दूर किया । उनहोंने भारत के ्वैभ्वशालरी सांसकृलतक परंपराओं करी ध्वज पताका पूरे ल्वश्व में फैलाई । उनका मानना था कि सदियों के शोषण के कारण गररीब जनता मान्व होने तक का अहसास खो चुकरी है । ्वे स्वयं को जनम से हरी गुलाम समझते हैं । इसरी कारण इस ्वग्य में ल्वश्वास ए्वं गौर्व जागृत करने करी महतरी आ्वशरकता है । उनका यह दृढ़ ल्वश्वास था कि कमजोर वरसकत ्वह होता है , जो स्वयं को कमजोर समझता है और इसके ल्वपररीत जो वरसकत स्वयं को सशकत समझता है ्वह पूरे ल्वश्व के लिए अजेय हो जाता है । स्वामरी ल्व्वेकानंद का प्रतरेक भारतरीर के लिए संदेश था- ' जागो , उठो और तब तक प्रयत्न करो जब तक कि लक्र प्रा्त न हो ।'
राष्ट्रीय एकता के बारे में स्वामरी ल्व्वेकानंद ने कहा है कि भले हरी भारत में भाषाररी , जालत्वाद ऐतिहासिक ए्वं क्ेत्रीय ल्व्वधताएं हैं लेकिन इन ल्वल्वधताओं को भारत करी सांसकृलतक एकता एक सूत् में पिरोये हुए है । उनहोंने धार्मिक चेतना को जगाने ए्वं दलित , शोषित ्व महिलाओं को लशलक्त कर उनहें राषट्र निर्माण में योगदान देने करी बात कहरी । स्वामरी ल्व्वेकानंद एक सच्चे राषट्रभकत थे और उनहें अपनरी राष्ट्रीयता पर ग्व्य भरी था । स्वामरी ल्व्वेकानंद एक वरसकतत्व नहीं , एक बुनियाद हैं । ऐसरी बुनियाद जिस पर भारत का ल्वराट सांसकृलतक महल खड़ा है । स्वामरी ल्व्वेकानंद ने अधरातम , ्वैश्विक मूलरों , धर्म , चररत् निर्माण शिक्ा ए्वं समाज को बहुत ल्वसतृत ए्वं गहरे आयामों से ल्वशलेलरत किया है । भारत के हरी नहीं , बसलक ल्वश्व के यु्वाओं के लिए उनके ल्वचार प्रासंगिक ए्वं अनुकरररीर हैं । उनके ल्वचार आज के ल्वखंडित ए्वं पथभ्षट समाज को जोड़ने के लिए रामबाण औषधि हैं ।
इसरी तरह भारत निर्माण में अगर डॉ भरीम रा्व आंबेडकर के योगदान पर गौर किया जाए तो यह कहना गलत नहीं लगता कि भारत में आकर ल्वदेशरी मुससलम आक्रांताओं ने जिन राषट्रभकतों को अशपृशर बनाकर दलित घोषित कर दिया था , उन्ही दलितों समाज के परीलड़त लोगों के लिए अंबेडकर ने अंग्ेिों से दलितों
के लिए अधिकार छरीन लिए थे और फिर संल्वघान निर्माण मे दलितों को अधिकार देने के मामले में परीछे नहीं रहे । उनहोंने अथक पररश्म द्धारा संपूर्ण भारत के समसत दलित ्वग्य के लिए बहुत से मूलभूत अधिकार ्व सुल्वधाएं उपल्ध कराई , जिनमें ्वोट डालने का अधिकार , लोकसभा और ल्वधान सभाओं में आरलक्त सथान , सरकाररी नौकरियों से आरलक्त सथान , अनुसूचित जाति कमरीशन करी सथापना , छुआछूत अपराध घोषित , बेगार ्व बंधुआ मज़दूररी करी समाप्त , शिक्ा के लिए सुल्वधाएं , मनचाहा व्यवसाय अपनाने का अधिकार और सा्व्यिलनक लशक्र , चिकितसा ्व यातायात करी सुल्वधाओं को भोगने का अधिकार आदि शामिल हैं । इन मूलभूत अधिकारों के बल पर आज दलित ्वग्य के लोग यह महसूस करते है कि ्वे भरी इंसान है , उनके भरी कुछ अधिकार है । बाबा साहब भरीमरा्व अंबेडकर ने आिरी्वन कठोर पररश्म ्व कषट उठा कर दलित समुदाय का भल्वषर सं्वार दिया । भारत के संल्वधान निर्माता बाबा साहेब ने हमेशा उम्मीद जताई थरी कि भारत में सरकारें संल्वधान का पालन करते हुए बिना पंथ का भेद किए हुए , बिना जाति का भेद किए हुए चलेंगरी । परिणाम सभरी के सामने है । भारत करी ्वत्यमान मोदरी सरकार हर योजना में बिना किसरी भेदभा्व सभरी को समानता का अधिकार देने का प्रयास कर रहरी है । इसके परीछे मकसद भारत को स्व्यश्ेषठ और स्व्यशसकतशालरी देश बनाना भरी है । ऐसे में यह समझना जरुररी है कि धर्म और जाति के आधार पर राजनरीलतक एकता से किसरी धर्म या किसरी जाति का समपूर्ण ल्वकास समभब होगा । पाकिसतान निर्माण के समय भरी ऐसा प्रयास किया गया पर उसका नतरीिा करा निकला ? यह सभरी जानते हैं । ऐसे में यह जरुररी है कि धर्म-जाति का ल्वभेद करके सिर्फ समाज और राषट्र के समपूर्ण ल्वकास के लिए एकजुट होकर काम किया जाए । ऐसा होने पर हरी हम सभरी मिलकर एक ऐसे भारत का निर्माण कर सकेंगे , जहां धर्म-जाति के आधार पर किसरी भरी तरह का ल्वभेद स्वरीकार नहीं होगा । �
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