eMag_June2021_Dalit Andolan | Page 41

ऐसे में अगर हम भारत करी ससथलतरों पर गौर करे तो अंग्ेिों के पास एक हरी रासता था , लोगों को जाति , धर्म , संप्रदाय आदि पर आधारित ऊंच-नरीच करी भा्वना का शिकार बनाकर यानरी भारतरीर समाज में फूट पैदा करके और फिर उसका लाभ उठाकर अंग्ेि लमबे समय तक सत्ा पर डटे रहे । लगभग पौने दो सौ वर्षों से उनहोंने इसरी नरीलत से देश पर राज किया था ।
सांसकृलतक एकता ए्वं इचछाशसकत पूरे राषट्र को आपस में जोड़तरी है और इसरी कारण से भारत का समाज जाति-धर्म करी ल्वभेद को छोड़कर संगठित हुआ और पूरा देश अंग्ेिों के ल्वरुद्ध उठ खड़ा हुआ । इसका अर्थ यह भरी है कि यदि किसरी समाज को आगे बढ़ना है , ल्वकास के रासते पर तरीव्र गति से चलना है और समाज के सभरी लोगों को एकजुट रखना है तो स्व्य धर्म समभा्व करी नरीलत को अपनाना हरी होगा । सभरी धमषों के प्रति समान भा्व रखना स्व्यधर्म समभा्व है । महापुरुष कह गए हैं कि जिस दिन भारत में पूररी तरह स्व्यधर्म समभा्व हो जाएगा , यह देश स्वर्ग बन जाएगा । लेकिन भारत में स्व्यधर्म समभा्व होना आसान नहीं है करोंकि हिनदू धर्म कोई पंथ नहीं , बसलक एक संसकृलत है । हिनदू
धर्म तो एक एक िरी्वन िरीने करी कला है । भारत में अनेक पंथ हैं , लेकिन राजसत्ा का कोई सुलनसशचत पंथ नहीं । भारत को एक धर्मनिरपेक् ( सैकुलर ) देश माना गया है ।
समपूर्ण संसार में सभरता के ल्वकास के साथ हरी ल्वलभन्न पंथों करी सथापना हुई और हरेक धर्म मनुषर िरी्वन को नैतिकता , इमानदाररी ए्वं सच्चाई का साथ देते हुए िरी्वन िरीने करी प्रेरणा देते हैं । ल्वश्व के लगभग सभरी पंथ हमें दूसरों करी भलाई करना ए्वं एक संतुलित िरी्वन िरीने करी प्रेरणा देते हैं । साथ हरी , हर पंथ करी पूजा पद्धति भरी अलग-अलग होतरी है लेकिन ्वह सभरी अलग-अलग पद्लतरों से लोगों को एक साथ जुड़े रहने करी प्रेरणा भरी देते हैं । अर्थात् सभरी पंथों के मूल में धार्मिक एकता को प्रोतसालहत करने करी भा्वना का समा्वेश होता है । दूसरे श्दों में अगर कहा जाए तो हर धर्म करी सथापना के परीछे एकमात् उद्ेशर पारसपरिक एकता को बढ़ाना है तो यह अतिशरोसकत नहीं होगरी । हर पंथ के लोगों को एक साथ मिलकर समाज को बेहतररी के रासते पर आगे बढ़ने करी प्रेरणा देते हैं ।
मुखरतः ल्वश्व में हिंदू , मुससलम , सिख , ईसाई ए्वं पारसरी आदि प्रमुख पंथ हैं और इन सभरी
पंथों का ल्वकास लोगों को एकजुट रखने के लिए हरी हुआ है । यह भरी स्व्यल्वलदत है कि एक पंथ लोगों के ्वच्यस्व से जनमत भरी तैयार होता है । यहरी कारण है कि ल्वश्व के कई प्रमुख पंथों के धर्म प्रचारक भरी हैं जो अपने पंथ के प्रचार में लगे रहते हैं । खुलकर तो लोग पंथ परर्वत्यन आदि के मद्ों पर बात नहीं करते लेकिन कहीं न कहीं जरादा से जरादा लोगों का धमांतरण कराना और किसरी एक पंथ के लोगों करी संखरा बढ़ाना भरी इन प्रचारकों का उद्ेशर होता है । ऐसा मानना है कि एक पंथ के लोगों के बरीच एक समान ल्वचारधारा पनपतरी है और फिर इस समान ल्वचारधारा का प्रयोग राजनरीलतक ध्ु्वरीकरण के लिए किया जाता है । इस एक समान ल्वचारधारा के परीछे भरी एकता करी भा्वना हरी है । जब एक धर्म ल्वशेष के लोग एक जगह पर इकट्ा होते हैं तो उनके बरीच में ्वैचारिक एकता सरीधे तौर पर परिललक्त होतरी है ।
‘ स्व्यधर्म समभा्व ’ यानरी कि सभरी पंथों के प्रति समान र्वैया हरी इसका िरी्वन दर्शन है । युगों-युगों से हिनदू दर्शन अपनरी बुनियादरी िड़ों को प्रभाल्वत किए बिना हर तरह के उतार-चढ़ावों का सफलता से सामना करता आया है । जिन
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