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राष्ट्र को आपस में जोड़ती है सांस्कृ तिक एकता की इच्ाशथति
डॉ विजय सोनकर शासत्ी
भरी समाज का अगर ल्वकास करना है तो यह आ्वशरक है कि
किसरी
उस समाज करी गतिशरीलता और निरंतरता स्थायी रहे और यह तभरी संभ्व है , जब समाज के अंदर आने ्वाले सभरी ्वग्य , जाति और पंथ के लोगों के आपसरी समबनध मजबूत और ल्वश्वास पर टिके हो । देखा जाए तो समाज
एक बड़ा परर्वार है यानरी अनेक परर्वारों से मिलकर बनरी अमूत््यन व्यवसथा । वरसकत उसकरी इकाई है । समाज मान्व वरसकतत्व को संपूर्णता करी ओर ले जाने तथा उसके अससमताबोध को सुरलक्त – सं्वलध्यत करने का माधरम भरी कहा जा सकता है । समाज नहीं चाहता कि उसका कोई भरी सदसर सथालपत व्यवसथा को उस सरीमा तक भंग करे कि ्वह दूसरों के लिए परेशानरी
का कारण बन जाए , जिससे अशांति पैदा हो और सामाजिक ऊर्जा का बड़ा हिससा के्वल शांति – व्यवसथा के नाम पर लगाना पड़े । ्वह चाहता है कि सदसर इकाइयां िरी्वन करी सुलनसशचत मर्यादाओं का पालन करें . सामाजिक आचारसंहिता को भंग न होने दें , जो लोकसाहितर , सांसकृलतक – सामाजिक ररीलत – रर्वाजों , संबंधों , कला संसकारों आदि के रूप में प्रकट होतरी है ।
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