eMag_June2021_Dalit Andolan | Page 33

सुधार के लिये जालत्वाद को समा्त करना आ्वशरक है । सामाजिक सुधारों में परर्वार सुधार और धार्मिक सुधार को शामिल किया गया । पारर्वारिक सुधारों में बाल ल्व्वाह जैसरी प्रथाओं को हटाना शामिल था । यह महिलाओं के सशक्तीकरण का पुरज़ोर समर्थन करता है । यह महिलाओं के लिये संपलत् के अधिकारों का समर्थन करता है जिसे उनहोंने हिंदू कोड बिल के माधरम से हल किया था । उनका सपषट मानना था कि जाति व्यवसथा ने हिंदू समाज को ससथर बना दिया
है जो बाहररी लोगों के साथ एकरीकरण में बाधा पैदा करता है । जाति व्यवसथा निम्न जातियों करी समृद्धि के मार्ग में बाधक है जिसके कारण नैतिक पतन हुआ । इस प्रकार असपृशरता को समा्त करने करी लड़ाई मान्व अधिकारों और नरार के लिये लड़ाई बन जातरी है ।
उनहोंने 1923 में उनहोंने ' बहिषकृत हितकाररररी सभा ( आउटकासटस ्वेलफेयर एसोसिएशन )’ करी सथापना करी , जो दलितों के बरीच शिक्ा और संसकृलत के प्रचार-प्रसार के लिये समर्पित थरी । 1930 के कालाराम मंदिर आंदोलन में डॉ . आंबेडकर ने कालाराम मंदिर के बाहर ल्वरोध प्रदर्शन किया , करोंकि दलितों को इस मंदिर परिसर में प्र्वेश नहीं करने दिया जाता था । इसने भारत में दलित आंदोलन को शुरू करने में एक महत््वपूर्ण भूमिका निभाई । उनहोंने हर बार लंदन में तरीनों गोलमेज़ सममेलनों ( 1930-32 ) में भाग लिया और सशकत रूप से ' अछूत ' के हित में अपने ल्वचार वरकत किये । 1932 में उनहोंने महातमा गांधरी के साथ पूना समझौते पर हसताक्र किये , जिसके परिणामस्वरूप ्वंचित वर्गों के लिये अलग लन्वा्यचक मंडल ( सांप्रदायिक पंचाट ) के ल्वचार को तराग दिया गया । हालांकि दलित वर्गों के लिये आरलक्त सरीटों करी संखरा प्रांतरीर ल्वधानमंडलों में 71 से बढ़ाकर 147 तथा केंद्ररीय ल्वधानमंडल में कुल सरीटों का 18 % कर दरी गई ।
14 अकतूबर , 1956 को उनहोंने अपने कई अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म ग्हण किया । उसरी ्वर्ष उनहोंने अपना अंतिम लेखन कार्य ' बुद्ध एंड हिज़ धर्म ' पूरा किया । 1990 में डॉ . बरी . आर . आंबेडकर को भारत रत्न पुरसकार से सममालनत किया गया था । भारत सरकार द्ारा डॉ . आंबेडकर फाउंडेशन को सामाजिक नरार और अधिकारिता मंत्ालय के तत्त्वावधान में 24 मार्च , 1992 को सोसायटरी पंिरीकरण अधिनियम-1860 के तहत एक पंिरीकृत सोसायटरी के रूप में सथालपत किया गया था । फाउंडेशन का मुखर उद्ेशर डॉ . बरी . आर . आंबेडकर करी ल्वचारधारा और संदेश को भारत
के साथ-साथ ल्वदेशों में भरी जनता तक पहुंचाने के लिये कार्यक्रमों और गलतल्वलधरों के कार्यान्वयन करी देखरेख करना है ।
बाबासाहेब के लिये ज्ान मुसकत का एक मार्ग है । अछूतों के पतन का एक कारण यह था कि उनहें शिक्ा के लाभों से ्वंचित रखा गया था । उनहोंने निचलरी जातियों करी शिक्ा के लिये परा्य्त प्रयास नहीं करने के लिये अंग्ेज़ों करी आलोचना करी । उनहोंने छात्ों के बरीच स्वतंत्ता और समानता के मूलरों को सथालपत करने के लिये धर्मनिरपेक् शिक्ा पर जोर दिया । ्वह चाहते थे कि अछूत लोग ग्ामरीर समुदाय और पारंपरिक नौकरियों के बंधन से मुकत हों । ्वह चाहते थे कि अछूत लोग नए कौशल प्रा्त करें और एक नया व्यवसाय शुरू करें तथा औद्ोगरीकरण का लाभ उठाने के लिये शहरों करी ओर रुख करें । उनहोंने गां्वों को ' सथानरीरता का एक सिंक , अज्ानता , संकरीर्णता और सांप्रदायिकता का एक खंड ' के रूप में ्वलर्यत किया । ्वह चाहते थे कि अछूत खुद को राजनरीलतक रूप से संगठित करें । राजनरीलतक शसकत के साथ अछूत अपनरी रक्ा , सुरक्ा और मुसकत संबंधरी नरीलतरों को पेश करने में सक्म होंगे । जब उनहोंने महसूस किया कि हिंदू धर्म अपने तौर-तररीकों को सुधारने में सक्म नहीं है , तो उनहोंने बौद्ध धर्म अपनाया और अपने अनुयायियों को भरी बौद्ध धर्म अपनाने को कहा । उनके लिये बौद्ध धर्म मान्वता्वाद पर आधारित था और समानता ए्वं बंधुत्व करी भा्वना में ल्वश्वास करता था ।
भारत में जाति आधारित असमानता अभरी भरी कायम है , जबकि दलितों ने आरक्र के माधरम से एक राजनरीलतक पहचान हासिल कर लरी है और अपने स्वयं के राजनरीलतक दलों का गठन किया है , किंतु सामाजिक आयामों ( स्वास्थर और शिक्ा ) तथा आर्थिक आयामों का अभरी भरी अभा्व है । सांप्रदायिक ध्ु्वरीकरण और राजनरीलत के सांप्रदायिकरण का उदय हुआ है । यह आ्वशरक है कि सं्वैधानिक नैतिकता करी आंबेडकर करी दृसषट को भारतरीर संल्वधान में स्थायी क्लत से बचाने के लिये धार्मिक नैतिकता का समर्थन किया जाना चाहिये । �
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