eMag_June2021_Dalit Andolan | Page 32

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के रूप में बंधुत्व और समानता करी भा्वना पर धरान केंद्रित किया । सामाजिक आयाम के साथ-साथ डॉ आंबेडकर ने आर्थिक आयाम पर भरी धरान केंद्रित किया । ्वे उदार्वाद और संसदरीर लोकतंत् से प्रभाल्वत थे तथा उनहोंने इसे भरी सरीलमत पाया । उनके अनुसार , संसदरीर लोकतंत् ने सामाजिक और आर्थिक असमानता को नज़रअंदाज किया । यह के्वल स्वतंत्ता पर केंद्रित होतरी है , जबकि लोकतंत् में स्वतंत्ता और समानता दोनों करी व्यवसथा सुलनसशचत
करना ज़रुररी है ।
डॉ आंबेडकर ने अपना िरी्वन समाज से छूआछूत ्व असपृशरता को समा्त करने के लिये समर्पित कर दिया था । उनका मानना था कि असपृशरता को हटाए बिना राषट्र करी प्रगति नहीं हो सकतरी है , जिसका अर्थ है समग्ता में जाति व्यवसथा का उनमूलन । उनहोंने हिंदू दार्शनिक परंपराओं का अधररन किया और उनका महत््वपूर्ण मूलरांकन किया । उनके लिये असपृशरता पूरे हिंदू समाज करी गुलामरी है जबकि
अछूतों को हिंदू जातियों द्ारा गुलाम बनाया जाता है , हिंदू जाति स्वयं धार्मिक मूर्तियों करी गुलामरी में रहते हैं । इसलिये अछूतों करी मुसकत पूरे हिंदू समाज को मुसकत करी ओर ले जातरी है । उनका मानना था कि सामाजिक नरार के लक्र को प्रा्त करने के बाद हरी आर्थिक और राजनरीलतक मुद्ों को हल किया जाना चाहिये । यह ल्वचार कि आर्थिक प्रगति सामाजिक नरार को जनम देगरी , यह जालत्वाद के रूप में हिंदुओं करी मानसिक गुलामरी करी अभिवरसकत है । इसलिये सामाजिक
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