eMag_June2021_Dalit Andolan | Page 31

के हितों करी रक्ा नहीं कर सकतरी है । करोंकि राष्ट्रीय सरकार इन दबा्वों से कम प्रभाल्वत होतरी है , इसलिये ्वह निचलरी जाति का संरक्र सुलनसशचत करेगरी । उनहें यह भरी डर था कि अलपसंखरक जो कि राषट्र का सबसे कमज़ोर समूह है , राजनरीलतक अलपसंखरकों में परर्वलत्यत हो सकता है । इसलिये ' ्वन मैन ्वन ्वोट ' का
लोकतांलत्क शासन परा्य्त नहीं है और अलपसंखरक को सत्ा में हिससेदाररी करी गारंटरी दरी जानरी चाहिये । ्वह ' मेजरिटेरियनिज़म सिंड्ोम ' के खिलाफ थे और उनहोंने अलपसंखरकों के लिये संल्वधान में कई सुरक्ा उपाय सुलनसशचत किये ।
भारतरीर संल्वधान ल्वश्व का सबसे अधिक
वरापक और ल्वशाल संल्वधान है करोंकि इसमें ल्वलभन्न प्रशासनिक ल्व्वरणों को शामिल किया गया है । डॉ आंबेडकर ने इसका बचा्व करते हुए कहा कि हमने पारंपरिक समाज में एक लोकतांलत्क राजनरीलतक संरचना बनाई है । यदि सभरी ल्व्वरण शामिल नहीं होंगे तो भल्वषर में नेता तकनरीकरी रूप से संल्वधान का दुरुपयोग कर सकते हैं । इसलिये ऐसे सुरक्ा उपाय आ्वशरक हैं । इससे पता चलता है कि ्वह जानते थे कि संल्वधान लागू होने के बाद भारत को किन व्यावहारिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है ।
डॉ आंबेडकर ने सं्वैधानिक नैतिकता पर जोर दिया था । उनके अनुसार , भारत को जहां समाज में जाति , धर्म , भाषा और अनर कारकों के आधार पर ल्वभाजित किया गया है , एक सामानर नैतिक ल्वसतार करी आ्वशरकता है तथा संल्वधान उस ल्वसतार में महत््वपूर्ण भूमिका निभा सकता है । इसरी तरह उनहें लोकतंत् पर पूरा भरोसा था । उनका मानना था कि जो तानाशाहरी त्वरित परिणाम दे सकतरी है ्वह सरकार का मानर रूप नहीं हो सकतरी है । लोकतंत् श्ेषठ है करोंकि यह स्वतंत्ता में अलभ्वृद्धि करता है । उनहोंने लोकतंत् के संसदरीर स्वरूप का समर्थन किया , जो कि अनर देशों के मार्गदर्शकों के साथ संरेखित होता है । उनहोंने ' लोकतंत् को िरी्वन पद्धति ’ के रूप में महत््व दिया , अर्थात् लोकतंत् का महत््व के्वल राजनरीलतक क्ेत् में हरी नहीं बसलक वरसकतगत , सामाजिक और आर्थिक क्ेत् में भरी है ।
इसके लिये लोकतंत् को समाज करी सामाजिक परिससथलतरों में वरापक बदला्व लाना होगा , अनरथा राजनरीलतक लोकतंत् यानरी ' एक आदमरी , एक ्वोट ' करी ल्वचारधारा गायब हो जाएगरी । के्वल एक लोकतांलत्क समाज में हरी लोकतांलत्क सरकार करी सथापना से उतपन्न हो सकतरी है , इसलिये जब तक भारतरीर समाज में जाति करी बाधाएँ मौजूद रहेंगरी , ्वास्तविक लोकतंत् करी सथापना नहीं हो सकतरी । इसलिये उनहोंने लोकतंत् और सामाजिक लोकतंत् सुलनसशचत करने के लिये लोकतंत् के आधार
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