eMag_June2021_Dalit Andolan | Page 30

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संवैधानिक नैतिकता पर जोर दिया था डॉ आंबेडकर ने

संल्वधान के मुखर निर्माताओं में से एक डॉ . भरीमरा्व रामिरी भारतरीर

आंबेडकर एक प्रसिद्ध राजनरीलतक नेता , दार्शनिक , लेखक , अर्थशासत्री , न्यायविद् , बहु-भाषाल्वद् , धर्म दर्शन के ल्वद्ान और एक समाज सुधारक थे , जिनहोंने भारत में असपृशरता और सामाजिक असमानता के उनमूलन के लिये अपना िरी्वन समर्पित कर दिया । उनका जनम 14 अप्रैल , 1891 को मधर प्रदेश में हिंदू महार जातिमें हुआ था । उनहें समाज में हर तरफ से भाररी भेदभा्व का सामना करना पड़ा करोंकि महार जाति को उच्च ्वग्य द्ारा अछूत के रूप में देखा जाता था । इसके बा्विूद उनहोंने उच्च शिक्ा हासिल करी और अपनरी क्मता के बल पर भारतरीर समाज में एक ल्वशेष सथान हासिल किया ।
डॉ . आंबेडकर करी कानूनरी ल्वशेरज्ता और ल्वलभन्न देशों के संल्वधान का ज्ान संल्वधान के निर्माण में बहुत मददगार साबित हुआ । ्वह संल्वधान सभा करी मसौदा समिति के अधरक् बने और उनहोंने भारतरीर संल्वधान को तैयार करने में महत््वपूर्ण भूमिका निभाई । इसके अला्वा उनका सबसे महत््वपूर्ण योगदान मौलिक अधिकारों , मज़बूत केंद्र सरकार और अलपसंखरकों करी सुरक्ा के क्ेत् में था । डॉ . आंबेडकर ने अनुचछेद 32 को संल्वधान का सबसे महत््वपूर्ण अनुचछेद बताते हुए कहा था कि इसके बिना संल्वधान अर्थहरीन है , यह संल्वधान करी आतमा और हृदय है । उनहोंने एक मज़बूत केंद्र सरकार का समर्थन किया । उनहें डर था कि सथानरीर और प्रांतरीर सतर पर जालत्वाद अधिक शसकतशालरी है तथा इस सतर पर सरकार उच्च जाति के दबा्व में निम्न जाति
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