eMag_June2021_Dalit Andolan | Page 29

होते तो आज मुससलमों के 56 देश है । उनमें से कितने देशों के मुससलम शांति और सामाजिक समृद्धि , समरसता और सौहार्द से िरी्वन िरी रहे है ?
धर्मिक और जातिगत पागलपन मनुषर के स्वभा्व में है । सुकरात को जहर किसरी पशु ने नहरी दिया था , िरीसस को सूलरी पर लटकाने ्वाले
भरी मनुषर हरी थे , स्वामरी दयानंद को ल्वर देने ्वाले बाहर से नहीं आये थे । मतलब यह है कि मनुषर हरी मनुषर समाज के ल्वकास में बाधक रहा है । प्रथम बात , हम मानते है कि देश में अभरी भरी कुछ जगह जालत्वाद और छुआछूत वरा्त है और इस सामाजिक भेदभा्व करी समसरा से कोई
भरी ्वग्य समुदाय या देश अछूता नहीं है । यहां तक कि अमेरिका जैसे ल्वकसित शसकतशालरी देश में भरी गोरे-काले का भेदभा्व हमसे कहीं जरादा है । मुससलम देशों में तो शिया , सुन्नरी करी आपसरी जंग किसरी से छिपरी नहरी है पर पाकिसतान जैसे कुछ देशों में तो अहमदिया जैसे गररीब तबके पर खुले रूप से अत्राचार होते है । दूसररी बात आज लोगों
कि सोच काफरी हद तक बदलरी और बदल रहरी है । करा कोई शहरों में किसरी हल्वाई करी जाति पूछकर समोसा खररीदता है ? रेहड़री ्वाले उसका धर्म या जात पूछकर पानरीपूररी या जलेबरी खाता है ? नहीं पूछता । परनतु यदि किसरी रेहड़री ्वाले से किसरी ग्ाहक का झगड़ा हो जाये और नौबत
मारपरीट तक आ जाये तो मरीलडरा से जुड़े लोग रेहड़री ्वाले करी जाति-धर्म पूछकर , यदि दुर्भागर से किसरी कारण ्वो रेहड़री ्वाला मुससलम या दलित हुआ तो खबर जरुर बना देते है कि देखिये किस तरह एक दलित या अलपसंखरक पर हमला हुआ । उसके लिए नरूि सटूलडरो से इंसाफ करी मांग उठाई जाएगरी । इसके बाद तथाकथित दलितों के दे्वता हैं , गररीबों के रहनुमा हैं , जिनहें इसरी काम के लिए देश-ल्वदेश से पैसा मिल रहा है । ये धार्मिक ्व जातरीर घृणा के सौदागर सड़कों पर ज्ापन , धरना , प्रदर्शन , सतराग्ह तथा महापड़ा्व डालने करी घोषणा कर धरना प्रदर्शन शुरू कर देते है और इस मामले को शुरू करने ्वालरी मरीलडरा लाइ्व प्रसारण शुरू कर देतरी है । इनकरी कोशिश यहरी रहतरी है कि जिसे ये दलित-दलित कहकर कहकर सांत्वना प्रकट करते है , जितना यह चाहते है , ्वह के्वल ्वहरी और उतना हरी सोचे , जितना यह लोग चाहते । जिसका मापदंड पहले से हरी तय लगता है ।
यह लोग हर एक मुद्े पर ऐसा दिखाते है जैसे इनके हाथ में दलितों का भल्वषर है । ये गलत मुद्े तथा अधूररी जानकारियों के जरिए देशभर के दलित बहुजन को गुमराह कर रहे हैं , करोंकि ये स्वघोषित महान अंबेडकर्वादरी हैं । कई बार तो लगता है जैसे कुछ नेताओं ने देश को खंड-खंड करने करी साजिश का जिममा सा ले लिया हो ? हम मानते है कुछ समसरा ल्वराट रूप लेकर खड़री हो जातरी हैं । किनतु करा उसका निदान राजनरीलत और मरीलडरा हरी कर सकतरी है , उसके लिए नरार प्रणालरी कोई मायने नहरी रखतरी ? यदि हां , तो ऐसरी धारणा को कौन बल दे रहा है यह प्रश्न भरी इस संदर्भ में प्रासंगिक है । हमे किसरी प्रकार करी राजनरीलत नहीं करनरी है , जिसे करनरी है ्वो करे । हम मान्वता , शांति , सहिषरुता , भाईचारे , समानता तथा स्वतंत्ता जैसे लोकतांलत्क मूलरों के पक्धर है और रहेंगे । किनतु किन्ही ्विहों से जब कुररीलत , छुआछूत के कारण या किसरी अनर ्विह से हमारे देश या धर्म पर ठेस लगतरी है तो उसकरी सरीधरी परीड़ा हमारे ह्रदय में होतरी है । �
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