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क्ा हिन्दू नहीं है दलित ?
राजीव चौधरी
एक बार फिर कुछ लोगों के द्ारा देश को तोड़ने का एक एजेंडा सा चलाया जा रहा है । इस बार इनका निशाना भग्वान श्रीराम और भग्वान कृषर करी ्वो संतान है . जिसे कभरी दुर्भाग्यवश दलित कह दिया गया था । आज जिनके हक करी बात कहकर कुछ नेता और नरूि चैनल अपना एजेंडा चला रहे है । उनके एंकर पूछ रहे है , कि आखिर हिनदुओं द्ारा दलितों पर हमला करों ? उनके इस प्रश्न को दो बार सुनिए और साजिश को समझिये ! करा दलित हिनदू नहीं है ?
हम मानते है हमाररी सबसे बड़री कमजोररी जाति व्यवसथा रहरी है । कुछ समय पहले एक धर्मगुरु करी ्वाररी सुनरी थरी उनके ्वचन बिलकुल सहरी थे कि ये जाति व्यवसथा करा है ? इसे भरी समझना जरूररी है जिस तरह किसरी उप्वन में भांति-भांति के पुषप होते हैं । हर किसरी करी अपनरी अलग खुशबू और रंग होता है , किनतु होते तो सभरी पुषप हरी है । ठरीक इसरी तरह हमारे शासत्ों ने , हमारे ऋषियों , मुनियों ने यदि मनुषर समाज को चार वर्णों में बांटा । सिर को ब्ह्मण और पैरो को शुद्र कहा तो साथ में यह भरी बताया कि प्रथम प्रणाम चरणों को करना होगा |। किनतु समाज का एक ्वग्य ऋषि-मुनियों करी यह पवित्र ्वाररी भूल गया और धर्म का ठेकेदार बन धार्मिक आदेश देना शुरू कर दिया । आज हम पूछना चाहते है उन तमाम उन राजनेताओं और ऊंचरी- नरीचरी जाति के ठेकेदार लोगों से कि दलितों से बड़ा हिंदू कौन है ? अगर दलित हिंदू नहीं है तो कौन हिंदू बचा है करोंकि हमारे शासत्ों में प्रणाम चरणों को किया गया है । शररीर के दृसषटकोण से देखा जाए तो मसतक सिरमौर है किनतु जब पैर
में काँटा लगता है तो सबसे पहले दर्द यह मसतक हरी महसूस करता है । ये जो ्वर्ण व्यवसथा थरी , जो कभरी ल्वशेषता थरी , उसे आज अपने निहित स्वार्थ और सत्ा के लालचरी लोगों द्ारा कमजोररी बना दिया गया । अगर इस देश धर्म को अब भरी मजबूत करना है तो हमें इन पैरो को समहाल कर रखना होगा ।
इस संदर्भ में यदि गौर से देखे तो आज जो मरीलडरा घराने हर एक घटना को जालत्वाद से जोड़कर दलित-दलित चिललाकर शोर मचा रहे है तो करा इसका लाभ देश और धर्म ल्वरोधरी संसथा नहरी उठा रहरी होगरी ? इससे बिलकुल इंकार नहरी किया जा सकता ! ्वर्ण व्यवसथा कभरी समाज का सुनदर अंग था परनतु कुछ लोगों ने अपनरी महत्वाकांक्ा के लिए इस अंग पर खरोंच-खरोंच कर घा्व बना दिया और अब राजनेता और मरीलडरा समरसता के स्ेहलेप के बजाय अपने लाभ के लिए हर रोज इस घा्व को हरा कर रहरी है | अब आप देखिये किस तरह यह लोग समाज को बाँटने का कार्य कर रहे है । एक मुससलम लेखक “ हन्नान अंसाररी ने प्रसिद्ध नरूि चैनल के ्लॉग पेज पर लिखता है कि पशु और मनुषर में यहरी ल्वशेष अनतर है कि पशु अपने ल्वकास करी बात नहीं सोच सकता , मनुषर सोच सकता है और अपना ल्वकास कर सकता है । हिनदू धर्म ने दलित ्वग्य को पशुओं से भरी बदतर ससथलत में पहुंचा दिया है , यहरी कारण है कि ्वह अपनरी ससथलत परर्वत्यन के लिए पूररी तरह निर्णायक कोशिश नहीं कर पा रहा है , हां , पशुओं करी तरह हरी ्वह अचछे चारे करी खोज में तो लगा है लेकिन अपनरी मानसिक गुलामरी दूर करने के अपने महान उद्ेशर को गम्भीरता से नहीं ले रहा है ।
इनहोंने जो इसमें इनका मत सपषट दिखाई दे रहा है किनतु प्रश्न यह भरी खड़ा होता है कि करा धमाांतरण हरी एक मात् उपाय बचा है ? और यदि कर भरी लिया करा गारंटरी है कि धमाांतरण करने से सारे कषट दूर हो जायेंगे ? मान लो यदि धर्म परर्वत्यन कर सारे कषट दूर
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