इकाई है । दलितों के अंदर करी जातिगत भेदभा्व करी तरीव्र चेतना को डा . रमाशंकर आर्या ने भरी स्वरीकार किया है । उनहोंने लिखा है , ’ छात्रावास के सभरी कमरे जातरीर आधार पर बंटे हुए थे । सभरी जातियों के अपने-अपने नेता होते । सभरी नेता अपने जातरीर लाभ करी हरी बात करते और उसे हासिल करने के लिए चिंतित और प्रयत्नशरील रहते । इस छात्रावास के अन्तेवासरी , सभरी के सभरी क्ुद्र हैं , शूद्र हैं , दलित हैं , पर एक-दूसरे के घर का पका खाना नहीं खायेंगे । एक-दूसरे के बरतन को छूतहर कहेंगे , उसका पानरी नहीं पियेंगे । एक-दूसरे को नरीचा दिखाने में इतने बेशर्म कि बेशमटी को भरी शर्म आने लगे ।’
ग्ामरीर समाज के उलट शहरों-महानगरों में
जातियों का एक तरह से लोप हुआ है । यहां समुदाय करी अ्वधारणा जोर पर रहरी है । पिछड़री जातियां , दलित आदि । कहना होगा कि ये जातियों के नहीं , समुदाय के नाम हैं । ‘ दलित टर्म ’ तो एक ‘ अमब्ेला टर्म ’ है । दलित समुदाय का जो मध्यवर्ग है ्वह शहरों-महानगरों में केसनद्रत है । मध्यवर्ग को अपने दैनिक िरी्वन में रोज हरी अपनरी संगठित शसकत का परिचय देकर अपना प्रभुत्व साबित करना होता है । इस प्रभुत्व के जरिए ्वे एक तरह का शसकत-संतुलन सथालपत करते हैं । इस आधार पर ्वे अपनरी सामाजिक , राजनरीलतक ए्वं आर्थिक हितों करी रक्ा करते हैं । आप कह ले सकते हैं पिछड़री जाति ए्वं दलित का जो मध्यवर्ग है ्वह अपने समुदाय करी एकता
को दिखाने करी ‘ राजनरीलत ’ करते हैं । ‘ दलित ल्वररक लेखन करी राजनरीलत के इस चरण करी सोचरी-समझरी राजनरीलत जान पड़तरी है । यह राजनरीलत एक न्वोदित मध्यवर्ग द्ारा सामाजिक प्रतिषठा में अपने हिससे करी मांग और आभिजातर के अर्जन से जुड़री है । यह ्वग्य अपने समुदाय के लोगों के बरीच यह ‘ मिथ्या चेतना ’ पैदा करने अथ्वा गढ़ने करी कोशिश करता है कि उस जातरीर समुदाय के सारे लोगों के सामाजिक- सांसकृलतक स्वार्थ एक-से हैं । दलितों के बरीच मध्यवर्ग के निर्माण करी प्रक्रिया डॉ आंबेडकर के जमाने में हरी शुरू हो चुकरी थरी लेकिन कहना होगा कि एक राजनरीलतक ताकत के रूप में उसका बहुत हरी सरीलमत उपयोग संभ्व था । इसरी बात को दलित चिंतक चनद्रभान प्रसाद दूसरे श्दों में कुछ इस तरह कहते हैं कि
दलितों में आज मध्यवर्ग का उदय हो रहा है , अपने शैश्व अ्वसथा में है । आज का यहरी दलित शिशु यदि डॉ . अमबेडकर के समय में उदित हो चुका होता , तो तस्वरीर निर्णायक रूप से भिन्न हो चुकरी होतरी , अपने िरी्वन काल में हरी ्वे ्वह लड़ाई िरीत चुके होते , जिसे हम उनका सपना मानते हैं । उस जमाने में मध्यवर्ग हिदुओं ए्वं मुसलमानों के बरीच हरी उभर सका था । हिनदू-मुससलम मध्यवर्ग का अंतल्व्यरोध हरी प्रमुख था । शायद इसरीलिए अंग्रेजी साम्ाज्यवाद ने इनहीं दोनों के बरीच के अंतल्व्यरोध ए्वं आपसरी तना्व को गहरा करने करी कोशिश करी । हालांकि ्वे इस बात से ना्वाकिफ नहीं थे कि भारतरीर समाज करी एकता को तोड़ने के लिए दलित मध्यवर्ग का इसतेमाल संभ्व है । यहां यह जोड़ देना भरी मुनासिब लगता है कि साम्ाज्यवादरी ताकतें इस दिशा में पहल ले चुकरी थीं । पहलरी आम जनगणना 1881 में जातियों और प्रजातियों करी सूचरी बनरी । 1891 में उच्च और निम्न जाति के रूप में वर्गीकरण हुए । 1901 में उच्च जाति हिनदुओं ने जाति उललेख का तरीव्र ल्वरोध किया । 1911 करी जनगणना में उन जातियों और उन कबरीलों करी अलग-अलग गणना करी , जो ब्ाह्मणों करी श्ेषठता और , ्वेदों करी सत्ा को नहीं मानते , बड़े-बड़े हिंदू दे्वरी-दे्वताओं और गाय करी पूजा
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