eMag_June2021_Dalit Andolan | Page 20

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नहीं करते , जो गोमांस खाते हैं ।
इसके साथ हरी ्वे सामाजिक व्यवसथा में छोटरी-बड़री जातियों का अपने हिसाब से श्रेणीक्रम निर्धारित करने करी ‘ राजनरीलत ’ भरी करते । कहते चलें कि इस साजिश में उनकरी नरार-व्यवसथा भरी शामिल थरी । और तो और ्वे ठरीक मुसलमानों करी तरह दलितों के लिए पृथक लन्वा्यचन क्ेत् करी भरी व्यवसथा कर चुकने्वाले थे । ये सब करने के परीछे उनकरी एक सोचरी-समझरी राजनरीलत थरी- ‘ फूट डालो और शासन करो ।’ करा यह तथ्य भरी मतलब से खालरी है कि अंग्रेजी साम्ाज्यवाद के दिनों में सबसे अधिक संखरा में किताबें भारत करी जाति व्यवसथा पर हरी लिखरी गईं ? आज दलित चिंतक यह कहते हुए कि ‘ अंग्ेि देर से आए और जल्दी चले गए ’, कोई नई बात नहीं कर रहे होते । यह कोई चौंकाने ्वालरी बात भरी नहीं है ।
दरअसल भारत का जो उच्च मध्यवर्ग रहा है , चाहे ्वह हिदू , मुससलम या दलित हरी करों न रहा हो , अंग्रेजी राज के बने रहने में हरी अपना उद्धार देखा है । हिनदू मध्यवर्ग 1857 करी क्रांति से अपने को अगर ल्वलग रखता है तो शायद
इसरीलिए कि अंग्रेजी राज में हरी अपना भल्वषर तलाश रहे थे । यह और कोई नहीं अंग्रेजी पढ़ा उच्च मध्यवर्ग था । उनका सपषट मानना था कि भारत का आधुनिकरीकरण अंग्ेिों के बगैर संभ्व नहीं हो सकता । इतना हरी नहीं , ्वे आधुनिकता के इस जोश में पसशचम करी हर अच्छी-बुररी चरीि को अपना रहे थे और उसरी प्रक्रिया में भारत करी हर अच्छी-बुररी चरीि का ल्वरोध भरी कर रहे थे । कुछ लोग तिलक के यहां जो स्वदेशरी और भारतरीरता पर कभरी-कभरी ‘ अना्वशरक ’ जोर देखते हैं , उसकरी ्विह शायद यहरी है कि ्वे भारतरीर राजनरीलत में निम्न मध्यवर्ग के प्रतिनिधि नेता थे जो कहीं न कहीं उच्च मध्यवर्ग करी जो पसशचमपरस्ती ( या कि राजभसकत ?) थरी , उसकरी एक स्वाभाल्वक प्रतिक्रिया भरी थरी । मुससलम मध्यवर्ग इस भूमिका में बाद में आए करोंकि उनके बरीच मध्यवर्ग का निर्माण हिनदुओं करी तुलना में अपेक्ाकृत ल्वलंब से हुआ । ्वहां भरी जिन्ना और अबुल कलाम आजाद करी धारा है । जिन्ना शायद इतने आधुनिक या कि पसशचमपरसत हैं कि लगभग ‘ अभारतरीर ’ हैं । गांधरी ने नेहरू
और जिन्ना में फर्क बताते हुए कहा था कि दोनों हरी बड़े राजनेता हैं लेकिन नेहरु साथ हरी एक बड़े देशभकत भरी हैं । दलित मध्यवर्ग और भरी देर से पैदा हुआ । बसलक कहना चाहिए कि दलितों के बरीच मध्यवर्ग का वरापक उभार के्वल अभरी हरी देखने में आया है ।
मुससलम मध्यवर्ग करी ताकत का उपयोग भारतरीर राष्ट्रीय आंदोलन करी एकता को कमजोर करने हेतु अंग्रेजी साम्ाज्यवाद ने किया तो दलित मध्यवर्ग के ्वत्यमान उभार को अमररीकरी न्व उपलन्वेश्वाद ने ्वग्य संघर्ष करी अ्वधारणा को कमजोर करने के लिए किया । आज ल्वमर्श करी जो आंधरी चलरी है-यथा दलित ल्वमर्श , नाररी ल्वमर्श , परा्य्वरण ल्वमर्श या फिर उत्र आधुनिकता का ल्वमर्श हरी करों न हो-सभरी वर्गीय चेतना को कमजोर बनाने के ्वैश्विक हथकंडों को अमररीकरी फंडिंग जाररी है । अकारण नहीं है कि दलित बुलद्धिरील्वरों को चुन-चुनकर फोर्ड फाउंडेशन के फेलोशिप प्रदान किये जा रहे हैं । इन सबमें कहीं न कहीं एक अंतःसूत्ता है , जिसकरी गहरे में जाकर खोज करी जानरी चाहिए । �
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