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डॉ आंबेडकर का राष्ट्रवाद
डॉ . मुके श कु मार
अपने मौलिक रूप में एक ल्वलशषट सांसकृलतक पहचान के साथ राषट्र्वाद
परिललक्त होता है । आधुनिक समय में राषट्र के आ्वशरक अ्वर्व के रूप में संप्रभुता , सरकार , भू-भाग और जनसंखरा के अभा्व में राषट्र करी कलपना नहीं करी जा सकतरी है । पसशचम के राषट्र के पैमाने डॉ . आंबेडकर के दृसषटकोण में अपरा्य्त या राषट्र करी सहरी अभिवरसकत करों नहीं दर्शाते हैं । डॉ . आंबेडकर के लिए संप्रभुता , सरकार , भू-भाग और जनसंखरा तब तक बेकार हैं , जब तक कि ्वहां मौजूद जनसंखरा में आपस में संघर्ष के संबंध है । डॉ . आंबेडकर के अनुसार यदि किसरी देश करी जनसंखरा में आपस में समानता , भाईचारा तथा स्वतंत्ता करी भा्वना नहीं है तो ्वह राषट्र एक ल्वफल राषट्र करी भांति है ।
ऐसे लोगों करी जनसंखरा सिर्फ भरीड़ है और ऐसरी भरीड़ ना तो अपनरी संप्रभुता करी रक्ा कर सकतरी है , न अपने क्ेत् को सुरलक्त रख सकतरी है और न हरी जिममेदार सरकार का निर्माण कर सकतरी है । यहां धरान देने ्वालरी बात यह है कि डॉ . आंबेडकर ऐसा करों कह रहे हैं ? डॉ . आंबेडकर लोकतंत् के बड़े हिमायतरी है , चुनरी हुई सरकार जो स्वयं जनता के द्ारा चुनरी जा
रहरी है , इससे अचछा और करा हो सकता है । किंतु डॉ . आंबेडकर के लिए चुना्व हो जाना सरकार का गठन हो जाना लोकतंत् नहीं है । इसलिए अंबेडकर ने आजादरी के संघर्ष के दौरान कहा कि स्वतंत्ता दो मुखर रूप से पाई जातरी है-
1 . बाह्य शसकत से छुटकारा , जिसे डॉ . आंबेडकर ने राजनरीलतक स्वतंत्ता कहा ।
2 . आंतरिक स्वतंत्ता , जिसे डॉ . आंबेडकर ने किसरी राषट्र के भरीतर मौजूद एक ऐसरी व्यवसथा , जिसमें सभरी लोग समान हो तथा सभरी प्रकार के कार्य करने में स्वतंत् हो ।
डॉ . आंबेडकर के अनुसार राराषट्र के अससतत्व के लिए आ्वशरक है कि ्वहां रहने ्वाले लोग एकता के सूत् में बंधे हो । डॉ . आंबेडकर मानते हैं कि 20 ्वीं शताब्दी का आगमन राष्ट्रीय के
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