eMag_June 2023_DA | Page 44

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हिंदी दलित विषयक साहित्य की यात्ा

डॉ . श्रीमती तारा क्संह

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रतधी् सयामयालजक व्वस्था में दलित कया अलभप्रया् उन लोगों से है , जिनहें जनम , जयालत ्या वर्णगत भेदभयाव के कयािण हजयािों सयालों से सयामयालजक न्याय और मयानव अधिकयािों से वंचित रहनया पडया है । शुद्रों कधी भधी हयालत कोई ियास अच्छी नहीं रहधी है , सवर्ण आज भधी शुद्रों के सया् ्बैठकर ियाने में , ्या उसकधी ल्बियादिधी में शयादधी-ब्याह से कतियाते हैं । यह विडं्बनया हधी है कि समसत प्रयालण्ों में एक हधी ततव के दर्शन करने वयालया , वर्ण-व्वस्था को गुण और कर्म के आधयाि पर लनधया्मरित करनेवयालया समयाज , इतनया कट्टर कैसे हो ग्या कि निम्न वर्ण ्या जयालत में जनम लेने वयालों को स्ब प्रकयाि के अवसरों से वंचित लक्या जयातया रहया और इस सोच के लिए ’ मनुस्मृति ’ को जिममेदयाि ठहिया लद्या ग्या । हमयािे देश कया लम्बे अरसों तक गुलयाम रहने कया यह भधी एक मुख् कयािण रहया है । हमयािे सवतंत्तया आनदोलन के पुियाधयाओं ने भयाित को इस कलंक पूर्ण प्र्या से मुकत कियाने कया ््यासयाध् प्र्यास लक्या । भयाित के संविधयान अनुच्छेद 15 ( 2 ्बधी ) के अंतर्गत यह प्रयावधयान ििया ग्या कि जयालत के आधयाि पर , भयाित के किसधी भधी नयागरिक के सया् भेद-भयाव नहीं लक्या जया्गया ; लेकिन यह स्ब संविधयान के पन्नों में सधीलमत रह ग्या । आज भधी दलितों कधी ्बस्तियाँ , सवणगों से ल्बलकुल अलग होतधी है , जहयाँ से सवर्ण गुजरने से आज भधी ्बिने कधी कोशिश करतया है ।
इसके अलयावया लम्बे समय तक , सयामयालजक शोषण और दमन कधी शिकयाि रहधी , हरिजन और गिरिजन जयालत्ों को अनुसूचित जयालत और अनुसूचित जनजयालत के रूप में सूिधी्बद्ध लक्या
ग्या , तयालक इनके लिए सयामयालजक न्याय सुलनसशित लक्या जया सके । उनके प्र्यासों कया परिणयाम कुछ-कुछ तो अ्ब दधीिने लगे हैं , लेकिन पूर्णत्या अभधी दूर है । सयामयालजक और ियाजनैतिक क्षेत्ों में चलधी मयानवयालधकयािों कधी हवया ने दलित चेतनया को प्रवयालहत करने में ्बडया योगदयान लक्या है । यहधी कयािण है कि अ्ब दलित सयालहत्कयाि परम्परागत कयाव्-शयासत् और सौनद््म-शयासत् को अप्या्मपत मयानते हुए सयालहत् कधी नई कसौ्टधी कधी खोज में जु्ट गये हैं । दूसिधी ओर ये लोग अलरिकया और अमेरिकया कधी अशवेत
जयालत्ों के सयालहत् से भधी प्रेरणया ले रहे हैं , जिससे दलितों कया कयाव्-शयासत् केवल मनोरंजन के लिए नहीं , बल्कि समयाज को झकझोड़ने और जगयाने के लिए भधी हो । मलेचछ , अछूत , दयास त्या न जयाने और कितने गयालधी-वयािक शबदों से पुकयािे जयाने दलितों द्यािया रचित " दलित चेतनया सयालहत् ” में अपने अनुभव को उच्चवर्ण के सयालहत्कयािों के अनुमयान कधी तुलनया में अधिक मयालम्मक अभिव्सकत प्रदयान करने में सक्षम हो रहया है , लेकिन इसे आतमक्यातमक सयालहत् हधी कहया जया सकतया है ।
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