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हिंदधी दलित सयालहत् कधी प्रलत्बद्धतया है । इसने नए सौंदर्यशयासत् कधी स्थापनया कधी जो सवतंत्तया , समतया और ्बंधुतव के लसद्धयांतों पर आधयारित है । इस धयािया ने अपने सौंदर्यशयासत् से हिंदधी मुख्धयािया के सयालहत् कया मूल्यांकन कर उसे कयाफधी हद तक दलितों के लिए अप्रयासंगिक सयाल्बत लक्या है । इसने प्रेमचंद्र , लनियालया एवं अन् रचनयाकयािों तक कया पुनर् मूल्यांकन लक्या और उनकधी कई रचनयातमक स्थापनयाओं पर प्रश्नचिह्न भधी लगयाए । वर्तमयान हिंदधी दलित सयालहत् इस अर्थ में भधी विशिष्ट है कि सयालहत् कधी सभधी विधयाओं में उसकया विकयास हो रहया है । ्द्लप फुले और अम्बेडकर ने संस्थागत प्रयत्नों के मयाध्म
से दलितों के पक्ष-पोषण कधी ्बयात कधी लेकिन 1970 के दशक के ्बयाद कई संस्थाएं सयामने आतधी हैं , जिनहोंने अपने प्र्यासों से दलितों के उत्थान पर कया््म लक्या । इस संदर्भ में दलित सयालहत् प्रकयाशन संस्था , अम्बेडकर मिशन , दलित आर्गनयाइजेशन , राष्ट्रीय दलित संघ , दलित ियाइ्टस्म फोरम , दलित सयालहत् मंच , लोक कल्याण संस्थान आदि के मयाध्म से दलितों कधी सस्लत सुधयािने के संदर्भ में अनेक कया््म किए गए ! इन दलित संस्थाओं ने जिन दो महतवपूर्ण पक्षों कधी ओर ध्यान आकृष्ट किया्या उनमें एक है दलितों कधी सयामयालजक सस्लत में सुधयाि और दूसिया दलितों
के लिए आरक्षण कधी मयांग । इस संदर्भ में भयाितधी् संविधयान में संशोधन कया भधी प्रयावधयान लक्या ग्या और संस्थाओं में समयाियाि पत्ों , लेखों और गोसषठ्ों कया भधी सहयािया लल्या जिसके मयाध्म से दलितों को जयागरूक और एकलत्त करने कया कया््म लक्या ग्या । यह ध्यान देने योग् तथ् है कि इन संस्थाओं ने दलित चिंतन को ियाजनैतिक सवरूप भधी प्रदयान लक्या और समयाज में एक विशेष वर्ग कया नए सिरे से ध्ुवधीकरण लक्या । इसमें कोई संदेह नहीं है कि वर्तमयान सयामयालजक एवं ियाजनैतिक परिप्रेक्् में दलित विमर्श चिंतन कया एक प्रमुख हिस्सा ्बन चुकया है ।
मौजूदया दलित विषयक सयालहत्कयािों ने दलित विषयक लेखन को स्लपत करने के लिए कड़ा संघर्ष लक्या । यह उनके संघषगों कया हधी परिणयाम है कि हिंदधी जगत और मधीलि्या ने एक शतयाब्दी कधी लं्बधी उपेक्षया के ्बयाद दलित सयालहत् को स्वीकयाि लक्या और उसे अपने पत्ों एवं पलत्कयाओं में थोड़ा-थोड़ा स्थान लद्या । लेकिन यह भधी त्ब संभव हुआ , ज्ब सयामयालजक परिवर्तन कधी ियाजनधीलत ने नई दलित चेतनया विकसित कधी और उसकया प्रभयाव संपूर्ण संविधयान पर पड़ा । इसलिए यह हिंदधी जगत कधी ियाजनैतिक विवशतया भधी है । इस मत से कुछ लवद्त दलित चिंतकों कधी असहमति हो सकतधी है , परंतु सत्ता के ्बनते- ल्बगडते समधीकरण भधी दलित सयालहत् को प्रभयालवत करते हैं , इस ्बयात से मुंह नहीं मोड़ा जया सकतया है । कुछ हद तक यह युग दलित पत्कयारितया के लिए भधी जयानया जयाएगया , क्ोंकि दलित सयालहत् के सया्-सया् दलित पत्कयारितया कया भधी सशकत विकयास इस युग में हुआ है । दलित पत्कयािों में डॉ . सोहनपयाल सुमनयाक्षर , मोहन दयास नैमिशिया् , डॉ . श्यौराज सिंह ' ्बेचैन ', के . पधी . सिंह , प्रेम कपयालड्या , मणिमयालया , ओमप्रकयाश वयाल्मीकि , मोहर सिंह , ्बधी . आर . ्बुद्धिप्रिय , सुरेश कयानि़े , डॉ . वधीिेंद्र सिंह ्यादव इत्यादि पत्कयािों ने दलित पत्कयारितया को प्रखर दलित प्रश्नों से जोडकर लवियािोत्ेजक और क्रयांलतकयािधी ्बनया्या है । इसलिए दलित चेतनया के इस वर्तमयान युग को दलित ' नवजयागरण ' युग कया नयाम भधी लद्या जया सकतया है । �
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