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दलित व्सकत अपनधी अससमतया कधी तलयाश में भ्टक रहे हैं । गिरिियाज किशोर के शबदों में कहें तो भयाितधी् समयाज , ियासतौर से जयातधी् हिंदू समयाज , जिसके कयािण देश में दयालित पनपया और आज भधी अपने विकृत रूप में मौजूद है , विचित् और परसपि विरोधधी मयानसिकतयाओं कया पुंज ्बनकर रह ग्या है । यह स्ब हजयािों वषगों से चले आ रहे मयानसिक और मनोवैज्ञानिक अवरोधों कया प्रतिफल है । यह मयानसिक ग्रंथियां हधी विभिन्न सतिों पर अपने को सहधी सयाल्बत करतधी हुई दयालित को ्बियातधी हधी नहीं गईं अपितु उसे अस्पृश्तया और दमन कया शिकयाि भधी ्बनयातधी गईं । इसधी कया फल ्या कि दलितों को भधी यह समझया्या ग्या कि दयालित् कर्मफल है ।
संसयाि में ऐसया कोई देश नहीं होगया जो मयानव- मयानव में इतनया भेद रखतया हो । परंतु भयाित कया दलित , वह शोषित मयानव है जो पैदया हुआ त्ब भधी दलित है , जिंदया रहेगया त्ब भधी दलित है और मरेगया त्ब भधी दलित है । अ्या्मत आज भधी दलित समयाज स्मृति युग कधी परंपिया में जधी रहया है । ियाजनधीलत ने वर्तमयान दौर में दलितों को असधीलमत अधिकयाि दिए हैं और दलितों को इससे कयाफधी ियाहत भधी मिलधी है परंतु कभधी-कभधी सनयातनधी व्वस्था के शिकयाि कुछ दलित आज भधी हो जयाते हैं ।
वर्तमयान समय में दलितों के समक्ष स्बसे ्बड़ी चुनौतधी उनकधी जयातधी् अससमतया एवं आर्थिक सस्लत को लेकर है क्ोंकि जगतगुरु से लेकर छो्ट़े धयालम्मक मठयाधधीशों तक किसधी को भधी इस ्बयात कधी चिंतया नहीं है कि दलितों को निरंतर शोषण एवं उतपधीडन से कैसे ्बिया्या जया सकतया है ? समयाज में उनहें सम्मानजनक सस्लत में कैसे लया्या जया सकतया है ? कुछ परंपियावयादधी दलित चिंतक सयालहत्कयाि , समयानतया और भ्रयातपृतव पर आधयारित ्बौद्ध एवं अम्बेडकरवयादधी लसद्धयांत कधी ओर आकर्षित हो रहे हैं , जो भयाितधी् संविधयान कधी आत्मा भधी है । इस ्बयात से इनकयाि नहीं लक्या जया सकतया है कि जैसे-जैसे अंग्ेजधी शयासन कयाल में अछूतों और शूद्रों के लिए लशक्षया के द्यािया खुलते गए , ये लोग शिक्षित होते गए । जहयां एक ओर विज्ञान कधी चहुमु ँिधी तरक्की ने दुलन्या को अपनधी
मुठ्ठी में समे्ट लल्या है , वहीं शूद्रों द्यािया हिंदू धर्म ग्ं्ों को अधिकयालधक रूप में पढ़ा जयाने लगया है । सवतंत् भयाित में संवैधयालनक संरक्षण और प्रदत् सुविधयाओं , अपने अधिकयािों को समझने और उनहें पयाने के कयािण से परंपियावयालद्ों के अनेक ्बंधन शिथिल होते गए । वर्तमयान में भधी जो सनयातनधी ( वैदिक ) सयालहत् उपलबध है , उसमें अभिजयात् एवं सवर्णवयादधी प्रवृत्तियों के लक्षण सवया्मलधक व्यापत हैं । उसमें शयासक और शोषित दोनों हधी भयावनयाएँ सव्मत् नजर आतधी हैं ।
अम्बेडकरवयाद कधी लद्तधी् मुकत शंिलया कया आरंभ 1975 के ्बयाद प्रयािंभ होतया है । 1975 के
्बयाद दलित चेतनया कधी जो धयािया विकसित हुई , वह इसलिए विशिष्ट है कि उसने हिंदधी जगत में अपनधी पपृ्क और विशिष्ट पहियान ्बनयाई । यह प्र्यास अभिनव एवं महतवपूर्ण है , क्ोंकि अभधी तक ऐसया प्र्यास किसधी युग में नहीं लक्या ग्या ्या । एक पपृ्क धयािया के रूप में हिंदधी दलित सयालहत् इसधी युग में अससततव में आ्या । यहधी नहीं बल्कि उसे परिभयालषत भधी इसधी कयाल में लक्या ग्या । यह धयािया समग् रूप में अम्बेडकर-दर्शन से विकसित हुई और यह दर्शन हधी उसकया मूलयाधयाि ्बनया । इसमें कोई दो िया् नहीं कि अम्बेडकर-दर्शन में दलित- मुसकत कधी अवधयािणया कधी अभिव्ंजनया हधी वर्तमयान
42 twu 2023