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हिंदधी में 1980 के ्बयाद दलितों द्यािया रचित अनेक आतम-क्यानक सयालहत् आईं , जिनके कुछ नयाम इस प्रकयाि हैं -- मोहनदयास , नैमिशिया् , ओमप्रकयाश , ्बयाल्मीकि , सूरजपयाल , चौहयान आदि । 1999 में दलित पलत्कया कया प्रकयाशन हुआ , इसके ्बयाद दलित उपन्यासों कधी रचनया हुई । इतनया हधी नहीं , हिंदधी सयालहत् कया दलित विमर्ष
वीं शदधी के अंतिम दो दशकों में आ्या , लेकिन मल्यालम दलित चिंतक कंियाइललय्या ज्ब तक यह घोषणया करते हैं कि कुछ हधी वषगों ्बयाद देखनया , अंग्ेजधी भयाित कधी ियाषट्भयाषया ्बन जया्गधी और हिनदू-धर्म नष्ट हो जया्गया ; वेद , उपनिषद त्या गधीतया से प्रेरणया प्रयापत करने वयाले सयालहत् के स्थान पर अम्बेडकरवयादधी दलित विषयक सयालहत् सर्वव्यापधी हो जया्गया , त्ब वे वयासतव में दलित-विमर्ष को स्वार्थ और घपृणया कधी ियाजनधीलत कया शिकयाि ्बनयाने कधी कोशिश करते हैं । ऐसे चिंतक दलित- विषयक सयालहत् को आधुनिक विमर्ष के ्बजया् हिनदू विमर्ष के रूप
मगर मणिपुिधी समयाज अपने संस्कार में इतने प्र्बल थे , कि यहयाँ जयालतगत भेदभयाव जड़ नहीं जमया सकया । मणिपुर कधी तरह अरूणयािल प्रदेश , मिजोियाम , मेघयालय और नयागयालैंड में भधी जयालत-भेद न होने के कयािण , वहयाँ के सयालहत् में दलित-विमर्ष नहीं है ।
निषकष्मत : यह कहया जया सकतया है कि भयाितधी् सयालहत में दलित विमर्ष के व्यापक प्रचलन कया मूल कयािण जयालत और वर्ण पर आधयारित सयामयालजक भेदभयाव रहया है । जिस कयािण ्बधीसवीं शदधी के अंत तक दलित वर्ग समयाज में सर उठयाकर खुद को दलित-वगती् कहने कया भधी
हिंदी में 1980 कबे बाद दलितहों द्ारा रचित अनबेक आत्म- कथानक साहित्य आईं , जिनकबे कु छ नाम इस प्रकार हैं -- मोहनदास , नैमिशराय , ओमप्रकाश , बाल्ीनक , सूरजपाल , चौहान आदि । 1999 में दलित पहत्का का प्रकाशन हुआ , इसकबे बाद दलित उपन्ासहों की रचना हुई ।
कधी दपृसष्ट से पुनपया्मठ भधी आरमभ हुआ , जिसके परिणयाम सवरूप , भसकत-सयालहत् को नई दॄष्टि से व्याख्यापन लक्या ग्या । सरसवतधी में प्रकयालशत ( 1914 में ) हधीिया डोम कधी कवितया , ’ अछूत कधी शिकया्त ’ को दलित विषयक हिन्दी सयालहत् कधी प्रथम रचनया के रूप में स्वीकृति मिलधी ।
दलित विषयक सयालहत् को आगे ले जयाने में फ़ुले और अम्बेडकर कया ्बहुत ्बडया हया् रहया । सर्वप्रथम यह मियाठधी सयालहत् के रूप में आ्या । उसके ्बयाद तेलगु , कन्नड़ , मल्यालम और तयालमल में आ्या । ्बयाकधी भयाषयाओं में 20
में प्रसतुत करते हैं । ्बयावजूद यह सत् है कि अम्बेडकर कया सयालहत् , दलित-मुसकत कधी खोज , ज्ञान कधी मुसकत के रूप में करते हैं । ज्ब भगवयान ्बुद्ध आये त्ब उनहोंने ज्ञान को उच्च वणगों के शिकंजे से मुकत किया्या ्या । आज भधी दलित इसधी कया््म को करने कधी कोशिश कर रहे हैं । इसके लिए संविधयान में इनहें संवैधयालनक शसकत भधी प्रयापत है । ्द्लप मणिपुर में शेष भयाित कधी तरह , यहयाँ न तो वर्ण-व्वस्था कधी विकृलत्याँ पहले थीं , न हधी आज है । कहते हैं , मणिपुिधी समयाज में 13 वीं , 14 वीं शदधी में मणिपुर में वैषणव धर्म कया ज्ब प्रवेश हुआ , त्ब यहयाँ सर्वप्रथम -- " जयालत-पयालत पूछ़े नहीं कोय ” ;” हरि को भजे सो हरि के होय ” को मयानने वयाले ियामयानंदधी समप्रदया् आये । लगतया है , मणिपुिधी समप्रदया् को ये ियामयानंदधी भया गये , तभधी यहयाँ वैषणव धर्म कया प्रियाि हो सकया । इतनया हधी नहीं , ्बंगयाल के गौडधी् समप्रदया् को भधी यहयाँ फ़लने-फ़ूलने कया मणिपुर समप्रदया् ने भरपूर मयाहौल लद्या । उसके प्रियािकों ने यहयाँ जयालत-व्वस्था चलयाने कया भधी प्र्यास लक्या ।
हिममत नहीं उठया नहीं पयातया ्या । आज दलित- सयालहत् कया उभयाि भयाितधी् समयाज व्वस्था के परिवर्तन कया द्ोतक हधी नहीं , बल्कि एक प्रकयाि से सवर्ण समयाज पर शवेत-पत् सया लगतया है । यदि देिया जया् , तो दलित चेतनया को इस जधीवंत सति के तह पहुँियाने के लिए महयात्मा ज्ोलत ियाव फ़ुले ( सन 1890 एवं सयालवत्री वयाई फ़ुले 1831 ) जैसे समर्पित दंपति कया योगदयान विस्मृत नहीं लक्या जया सकतया । इनहोंने 1848 में पहलधी कन्या पयाठशयालया खोलधी । 1851 में अछूतों के लिए पहलधी पयाठशयालया खोलधी और 1864 में विधवया विवयाह समपन्न किया्या । सयालवत्री वयाई फ़ुले को दलित समयाज कधी पहलधी भयाितधी् शिक्षिकया ्बनने कया गौरव प्रयापत है । कुल मिलयाकर देिया जया् , तो दलित-समयाज के सभधी त्बके के लोगों कया सवि , मुख् धयािया से अलग रहने कधी छ्टप्टयाह्ट अभिव्सकत करतया है । हम उम्मीद कर सकते हैं , कि दलित चेतनया कया यह संघर्ष एक दिन उनहें समयाज कधी मुख् धयािया से जोड़ने के लिए ्बयाध् करेगधी ।
( साभार ) twu 2023 45