eMag_June 2023_DA | Page 40

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अस्पृश्यता को समाप्त करके समाज में सद्ाव चाहते थे डॉ अम्ेडकर

वीरेंद्र क्संह b

समें कोई शक नहीं कि वर्ण व्वस्था के मयाध्म से परंपियावयालद्ों ने एक प्रकयाि कधी लनणया्म्क संसकृलत और मनोवैज्ञानिक जधीत हयालसल कर लधी है । शया्द इसकधी प्रलतलक्र्या के कयािण हधी दलित चेतनया पूर्णतः उभयाि पर है । डॉ . अम्बेडकर ने महसूस लक्या छुआछूत के विनयाश
के लिए अनिवया््म है कि जयालत कया विनयाश हो । सया् हधी वर्ण व्वस्था जिस पर जयालत्यां आधयारित हैं , कया विनयाश हो । चूंकि जयालत हिंदू धर्म कया प्रयाण है , अतः ज्ब तक हिंदू धर्म इसके वर्तमयान रूप में प्रचलित है , त्ब तक जयालत प्र्या रहनया स्वाभयालवक है । हमयािे यहयां जयालत सयामयालजक , ियाजनधीलतक एवं आर्थिक जधीवन कया मूल स्ोत है अ्या्मत जयालत सयामयालजक संस्कारों एवं रिशतों कधी
सधीमया तय करतधी है ।
दलित संवेदनयाओं को अपने जधीवनकयाल में निरंतर भोगते रहने के कयािण डॉ . अम्बेडकर कया अनुभव प्रगाढ़ ्या । सयामयालजक एकतया कया लसद्धयांत उनको ्बौद्ध धर्म के अंदर हधी मिल ग्या । यहधी कयािण ्या कि उनहोंने अपने कई अनु्याल््ों के सया् ्बौद्ध धर्म स्वीकयाि कर लल्या ्या । उनकया यह कदम हमेशया विवयादयासपद हधी रहया है । किंतु
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