eMag_June 2023_DA | Page 39

लदियाई लद्या जिसकधी पुष्टि दयाश्मलनक लसद्धयानतों कधी भ्रयामक व्वस्था से कधी जयातधी ्धी और जिसकया व्कत रूप ्बयाह्याियाि एवं कर्मकयाणि थे । क्बधीि ने समयाज व्वस्था सत्तया , सहजतया , समतया और सदयाियाि पर आलश्त करनया ियाहया जिसके परिणयाम सवरूप कथनधी और करनधी के अनति को उनहोंने सयामयालजक विकृतियों कया मूलयाधयाि
मयानया और सत्याग्ह पर अवसस्त आदर्श मयानव समयाज कधी नींव ििधी ।
यह सच्चयाई निर्विवयाद है कि क्बधीि आम जनतया कधी वयाणधी के उदघोषक हैं । उनकधी वयाणधी कया सफुिण धर्म , वर्ग , रंग , नसल , समयाज , आचरण , नैतिकतया और व्वहयाि आदि सभधी क्षेत् में हुआ है । यह सफुिण किसधी विशेष वर्ग , भू -भयाग ्या देश के लिए नहधी अपितु मयानव मात्र के लिए है । उनहोंने आम जनतया में एकतव स्थापित
करने कया प्र्यास लक्या है । इसके लिए जितने शसकतशयालधी प्रहयाि कधी आवश्कतया ्धी उसे करने में चुके नहीं । ्बेखौफ होकर , जहयां तक जयानया समभव ्या वहयां तक जयाकर असत् कया प्रतिछ़ेदन करते हुए सत् के शोधन के मयाध्म से समयाजों को प्रेम के सूत् में ्बयांधने कया प्र्यास लक्या । वसतुत : प्रेम पर आधरित वैियारिक क्रयांलत उनकया
प्रमुख हल््याि ्या । दरअसल क्बधीि सयाह्ब कया मुख् लक्् मयानव कल्याण कधी प्रतिष्ठा ्धी और इसके लिए वह युगयानुकुल जैसे भधी प्रयत्न समभव थे उनको प्रयोग करने में लहिलकिया्े नहीं । उनके निडर व्सकततव से जनमे विश्वास कधी यहधी शसकत उनको हर युग और प्रत्ेक समयाज में प्रयासंगिक ्बनयाए हुए है ।
ज्ब हम क्बधीि और वर्तमयान दलित-विमर्श के सनदभ्म में ्बयात करते है तो एक और पहलू हमें
ध्यान रखनया पडतया हैं जिसे ओमप्रकयाश वयाल्मीकि के शबदों में इस ढंग से कहया ग्या है , “ निर् गुण धयािया के कवियों विशेष रूप से क्बधीि और रैदयास कधी रचनयाओं में अंतर्निहित सयामयालजक विद्रोह दलित लेखकों के लिए प्रेरणयादया्क है । उससे दलित लेखक ऊजया्म करते हैं , लेकिन वह दलित लेखन कया आदर्श नहीं हैं ।” इसके लिए एक तर्क यह भधी लद्या जया सकतया है कधी जैसे गयांधधी और अन् लवियािकों के जयातपयात सम्बन्धी चिनतन उतनया परिपकव नहधी है जितनया कधी डॉ भधीम ियाव आं्बेडकर कया है । दलित-मुसकत के लिए डॉ आं्बेडकर कया चिनतन अति आवश्क हैं क्ोंकि यह समस्या को गहियाई से छूतया है और संघर्ष को सकयाियातमक दिशया देतया है । आज के दलित लेखन के लिए सयामयालजक और ियाजनितिक दपृसष्टकोण ज्यादया आवश्क है न कधी धयालम्मक दपृसष्टकोण । फिर भधी क्बधीि और अन् संतों कधी वयाणधी नैतिक विकयास में महतवपूर्ण भूमिकया अदया कर सकतधी है । जिसकया एक उदयाहरण निम्नलिखित है जिसमे ्बतया्या ग्या है कि गुणवयान-ियालयाक , ढोंगधी और धनपतियों से तो हर कोई प्रेम करतया है पर सच्चया प्रेम तो वह है जो निस्वार्थ भयाव से हो : गुणवेतया और द्रव् को , प्रधीलत करै स्ब कोय । क्बधीि प्रधीलत सो जयालन्े , इंसे न्यािधी होय ।। यह एक दुभया्मग्पूर्ण सत् है कि भयाितधी् समयाज में जनसंख्या के एक ्बड़े हिससे को सयामयालजक , धयालम्मक और आर्थिक , ियाजनैतिक और संसकृलतक अधिकयािों से वंचित ििया ग्या । उसधी सतयाए हुए समयाज कधी पधीडया कधी अभिव्सकत कया सयालहत् दलित विषयक सयालहत् है । सन अस्सी के दशक के ्बयाद हधी यह सयालहत् मुखर रूप में हमयािे सयामने आ्या है । इस सयालहत् कया विकयास भयाित में ्बडधी तेजधी से हो रहया है । अकसि दलित रचनयाओं पर कच्चेपन और अपरिपकवतया कया दोष लगया्या जयातया है जिसकया प्रमुख कयािण यह कधी अकसि सयालहत् लिखते समय साहित्यिक सौनद््म लनमया्मण में वे लवियाि और आदर्श छु्ट जयाते है जो कधी दलित विमर्श और दलित संघर्ष के लिए अति आवश्क है । संघर्ष को दिशया देने वयालया सयालहत् हधी वयासतव में आज कधी हमयािधी आवश्कतया है । �
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