इलिाम और जातिप्रथा
जाति प्रथा को लीजिए । इ्लाम भ्रातृ-भाव की बात कहता है । हर वयशकि यही अनुमान लगाता है कि इ्लाम दास प्रथा और जाति प्रथा से मुकि होगा । गुलामी के बारे में तो कहने की आि्यकता ही नहीं । अब कानून यह समापि हो चिुकी है । परनिु जब यह विद्यमान थिी , तो जयादातर समथि्शन इसे इ्लाम और इ्लामी देशों से ही मिलता थिा । कुरान में पैंगबर ने गुलामों के साथि उतचिि इ्लाम में ऐसा कुछ भी नहीं है जो इस अभिषाप के उनमूलन के समथि्शन में हो । जैसाकि सर डबलयू . मयूर ने ्पषट कहा है- ” गुलाम या दासप्रथा समापि हो जाने में मुसलमानों का कोई हाथि नहीं है , कयोंकि जब इस प्रथा के बंधन ढीले करने का अवसर थिा , तब मुसलमानों ने उसको मजबूती से पकड़ लिया । किसी मुसलमान पर यह दायिति नहीं है कि वह अपने गुलामों को मुकि कर दें । ”
परनिु गुलामी भले विदा हो गई हो , जाति तो मुसलमानों में क़ायम है । उदाहरण के लिए बंगाल के मुसलमानों की स्थिति को लिया जा
सकता है । १९०१ के लिए बंगाल प्ांि के जनगणना अधीक्षक ने बंगाल के मुसलमानों के बारे में यह रोचिक तथय दर्ज किए हैं :
“ मुसलमानों का चिार िगगों-शेख , सैयद , मुग़ल और पठान-में परमपरागत विभाजन इस पांत ( बंगाल ) में प्ायः लागू नहीं है । मुसलमान दो मुखय सामाजिक विभाग मानते हैं-१ . अशरफ अथििा शरु और २ . अज़लफ । अशरफ से तातपय्श है ‘ कुलीन ’ और इसमें विदेशियों के वंशज िथिा ऊंचिी जाति के अधमाांतरित हिनदू शामिल हैं । शेष अनय मुसलमान जिनमें वयािसायिक वर्ग और तनचिली जातियों के धमाांतरित शामिल हैं , उनहें अज़लफ अथिा्शत् नीचिा अथििा निकृषट वयशकि माना जाता है । उनहें कमीना अथििा इतर कमीन या रासिल , जो रिजाल का भ्रषट रूप है , ‘ बेकार ’ कहा जाता है । कुछ स्थानों पर एक तीसरा वर्ग ‘ अरज़ल ’ भी है , जिसमें आने वाले वयशकि सबसे नीचि समझे जाते हैं । उनके साथि कोई भी अनय मुसलमान मिलेगा-जुलेगा नहीं और न उनहें मस्िद और सार्वजनिक कतरि्िानों में प्िेश करने दिया जाता है ।
इन िगगों में भी हिनदुओं में प्रचलित जैसी सामाजिक वरीयताऔर जातियां हैं । a . ‘ अशरफ ’ अथििा उच्च वर्ग के मुसलमान ( प ) सैयद , ( पप ) शेख , ( पपप ) पठान , ( पअ ) मुगल , ( अ ) मलिक और ( अप ) मिर्ज़ा । b . ‘ अज़लफ ’ अथििा निम्न वर्ग के मुसलमान ( i ) खेती करने वाले शेख और अनय वे लोग जो मूलतः हिनदू थिे , किनिु किसी बुद्धिजीवी वर्ग से समबशनधि नहीं हैं और जिनहें अशरफ समुदाय , अथिा्शत् पिराली और ठकराई आदि में प्िेश नहीं मिला है । ( ii ) दिजी , जुलाहा , फकीर और रंगरेज । ( iii ) बाढ़ी , भटियारा , तचिक , चिूड़ीहार , दाई , धावा , धुनिया , गड्ी , कलाल , कसाई , कुला , कुंजरा , लहेरी , माहीफरोश , मललाह , नालिया , निकारी ।
( iv ) अबदाल , बाको , बेडिया , भाट , चिंबा , डफाली , धोबी , हज्ाम , मुचिो , नगारचिी , नट , पनवाड़िया , मदारिया , तुशनिया । c . ‘ अरजल ’ अथििा निकृषट वर्ग
भानार , हलालखोदर , हिजड़ा , कसंबी , लालबेगी , मोगता , मेहतर ।
जनगणना अधीक्षक ने मुस्लम सामाजिक वयि्थिा के एक और पक्ष का भी उललेख किया है । वह है ‘ पंचिायत प्णाली ’ का प्रचलन । वह बताते हैं : पंचिायत का प्ातधकार सामाजिक िथिा वयापार समबनधी मामलों तक वयापि है और अनय समुदायों के लोगों से विवाह एक ऐसा अपराध है , जिस पर शासी निकायकार्यवाही करता है । परिणामत : ये वर्ग भी हिनदू जातियों के समान ही प्ायः कठोर संगोती हैं , अंतर-विवाह पर रोक ऊंचिी जातियों से लेकर नीचिी जातियों तक लागू है । उदाहरणतः कोई घूमा अपनी ही जाति अथिा्शत् घूमा में ही विवाह कर सकता है । यदि इस नियम की अवहेलना की जाती है तो ऐसा करने वाले को ततकाल पंचिायत के समक्ष पेश किया जाता है । एक जाति का कोई भी वयशकि आसानी से किसी दूसरी जाति में प्िेश नहीं ले पाता और उसे अपनी उसी जाति का नाम कायम रखना पड़ता है , जिसमें उसने जनम लिया है । यदि वह अपना लेता है , तब भी उसे उसी समुदाय का माना जाता है , जिसमें कि उसने जनम लिया थिा । हजारों जुलाहे कसाई का धंधा अपना चिुके हैं , किनिु वे अब भी जुलाहे ही कहे जाते हैं । इसी तरह के तथय अनय भारतीय प्ानिों के बारे में भी वहाँ की जनगणना रिपोटगों से वे लोग एकतत्ि कर सकते हैं , जो उनका उललेख करना चिाहते हों । परनिु बंगाल के स्थिति ही यह दर्शाने के लिए पर्यापि हैं कि मुसलमानों में जाति प्ाणी ही नहीं , छुआछूत भी प्रचलित है ।” ( पृ . 221-223 )
इलिामी कानदून समाज- सुधार के विरोधी
मुसलमानों में इन बुराइयों का होना दुखद है । किनिु उससे भी अधिक दुखद तथय यह है कि भारत के मुसलमानों में समाज सुधार का ऐसा कोई संगठित आनदोलन नहीं उभरा जो इन बुराईयों का सफलतापूर्वक उनमूलन कर सके । हिनदुओं में भी अनेक सामाजिक बुराईयां हैं । परनिु सनिोषजनक बात यह है कि उनमें से अनेक इनकी विद्यमानता के प्ति सजग हैं और उनमें
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