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का भ्रातृति नहीं है , मुसलमानों का मुसलमानों से ही भ्रातृति है । यह बंधुति है , परनिु इसका लाभ अपने ही निकाय के लोगों तक सीमित है और जो इस निकाय से बाहर हैं , उनके लिए इसमें सिर्फ घृणा ओर शत्ुिा ही है । इ्लाम का दूसरा अवगुण यह है कि यह सामाजिक ्िरासन की एक पद्धति है और स्थानीय ्िरासन से मेल नहीं खाता , कयोंकि मुसलमानों की निषठा , जिस देश में वे रहते हैं , उसके प्ति नहीं होती , बशलक वह उस धार्मिक वि्िास पर निर्भर करती है , जिसका कि वे एक तह्सा है । एक मुसलमान के लिए इसके विपरीत या उलटे सोचिना अतयनि दुषकर है । जहां कहीं इ्लाम का शासन हैं , वहीं उसका अपना वि्िासहै । दूसरे शबदों में , इ्लाम एक सच्चे मुसलमानों को भारत को अपनी मातृभूमि और हिनदुओं को अपना निकट समबनधी मानने की इज़ाजत नहीं देता । समभििः यही वजह थिी कि मौलाना मुहममद अली जैसे एक महान भारतीय , परनिु सच्चे मुसलमान ने , अपने , शरीर को हिनदु्िान की बजाए येरूसलम में दफनाया जाना अधिक पसंद किया ।
एक साम्प्रदायिक और राष्टीय मुसलमान में अन्तर देख
पाना मुश्किल लीग को बनाने वाले सामप्दायिक मुसलमानों
और राषट्रवादी मुसलमानों के अनिर को समझना कठिन है । यह अतयनि संदिगध है कि राषट्रवादी मुसलमान किसी वा्ितिक जातीय भावना , लक्य िथिा नीति से कांग्ेस के साथि रहते हैं , जिसके फल्िरूप वे मुस्लम लीग से पृथिक पहचिाने जाते हैं । यह कहा जाता है कि वा्िि में अधिकांश कांग्ेसजनों की धारण है कि इन दोनों में कोई अनिर नहीं है , और कांग्ेस के अनदर राषट्रवादी मुसलमानों की स्थिति सामप्दायिक मुसलमानों की सेना की एक चिौकी की तरह है । यह धारणा असतय प्िीत नहीं होती । जब कोई वयशकि इस बात को याद करता है कि राषट्रवादी मुसलमानों के नेता ्िगजीय डॉ . अंसारी ने सामप्दायिक निर्णय का विरोध करने से इंकार किया थिा , यद्यपिकांग्ेस और राषट्रवादी मुसलमानों
द्ारा पारित प््िाि का घोर विरोध होने पर भी मुसलमानों को पृथिक तनिा्शचिन उपलबध हुआ । ( पृ . 414-415 )
भारत में इलिाम के बीज मुस्लिम आकांताओं ने बोए
मुस्लम आरिांिा तन्संदेह हिनदुओं के विरुद्ध घृणा के गीत गाते हुए आए थिे । परनिु वे घृणा का वह गीत गाकर और मार्ग में कुछ मंदिरों को आग लगा कर ही वापस नहीं लौटे । ऐसा होता तो यह वरदान माना जाता । वे ऐसे नकारातमक परिणाम मात् से संतुषट नहीं थिे । उनहोंने इ्लाम का पौधा लगाते हुए एक सकारातमक कार्य भी किया । इस पौधे का विकास भी उललेखनीय है । यह ग्ीषम में रोपा गया कोई पौधा नहीं है । यह तो ओक ( बांज ) वृक्ष की तरह विशाल और सुदृढ़ है । उत्री भारत में इसका सर्वाधिक सघन विकास हुआ है । एक के बाद हुए दूसरे हमले ने इसे अनयत् कहीं को भी अपेक्षा अपनी ‘ गाद ’ से अधिक भरा है और उनहोंने निषठािान मालियों के तुलय इसमें पानी देने का कार्य किया है । उत्री भारत में इसका विकास इतना सघन है कि हिनदू और बौद्ध अवशेष झाड़ियों के समान होकर रह गए हैं ; यहाँ तक कि सिखों की कुलहाड़ी भी इस ओक ( बांज ) वृक्ष को काट कर नहीं गिरा सकी । ( पृ . 49 )
मुसलमानों की राजनीतिक दाँव-पेंच में
गुंडागदजी तीसरी बात , मुसलमानों द्ारा राजनीति में
अपराधियों के तौर-तरीके अपनाया जाना है । दंगे इस बात के पर्यापि संकेत हैं कि गुंडागदजी उनकी राजनीति का एक स्थापित तरीका हो गया है ।” ( पृ . 267 )
हत्ारे धार्मिक शहीद
महति की बात यह है कि धमाांध मुसलमानों द्ारा कितने प्मुख हिनदुओं की हतया की गई । मूल प्श् है उन लोगों के दृशषटकोण का , जिनहोंने यह कतल किये । जहां कानून लागू किया जा
सका , वहां हतयारों को कानून के अनुसार सज़ा मिली ; िथिापि प्मुख मुसलमानों ने इन अपराधियों की कभी निंदा नहीं की । इसके विपरीत उनहें ‘ गाजी ’ बताकर उनका ्िागत किया गया और उनके क्षमादान के लिए आनदोलन शुरू कर दिए गए । इस दृशषटकोण का एक उदाहरण है लाहौर के बैरर्टर मि . बरकत अली का , जिसने अबदुल कयूम की ओर से अपील दायर की । वह तो यहां तक कह गया कि कयूम नाथिूराम की हतया का दोषी नहीं है , कयोंकि कुरान के कानून के अनुसार यह नयायोतचिि है । मुसलमानों का यह दृशषटकोण तो समझ में आता है , परनिु जो बात समझ में नहीं आती , वह है श्ी गांधी का दृशषटकोण । ( पृ . 147-148 )
हिन्दू और मुसलमान दो विभिन्न प्रजातियां
आधयाशतमक दृशषट से हिनदू और मुसलमान केवल ऐसे दो वर्ग या समप्दाय नहीं हैं जैसे प्ोटे्टेंटस और कैथिोलिक या शैव और वैषणि , बशलक वे तो दो अलग-अलग प्िातियां हैं । ( पृ . 185 )
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