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बाबा साहब डॉ आंबेडकर की इस्ाम पर दृष्टि
2014 के आम चिुनाव में पूर्ण बहुमत मिलने के बाद भाजपा नेता नरेंद्र मोदी ने जब से प्धांनमंत्ी पद संभाला है , उसके बाद से लगातार भाजपा विरोधी राजनीतिक दल और उनके सहयोगी के रूप में काम करने वाले सामाजिक-राजनीतिक संघटन िथिाकतथिि दलित-मुस्लम गठजोड़ की मुहिम लगातार चिला रहे हैं । गठजोड़ के लिए वामपंथिी नेताओं के साथि ही कई अनय कतथिि दलित और मुस्लम नेता वैचिारिक प्तिबद्धता को दर्शाते हुए माहौल बनाकर दलित समाज को भ्रमित करने के लिए भी सतरिय हैं । यह सभी बाबा साहब डॉ भीम राव आंबेडकर के बड़े-बड़े फोटो लेकर दलित वर्ग को यह समझाने की कोशिश में जुटे हैं कि दलितों के विकास के लिए बाबा साहब भी ऐसा चिाहते थिे । बाबा साहब के नाम पर दलितों को
भ्रमित करने के लिए चिलायी जा रही मुहिम का असली सचि कया है ? कया वा्िि मंन बाबा साहब िथिाकतथिि दलित-मुस्लम गठजोड़ के पक्ष में थिे ? या फिर राषट्र विरोधी रशकियां डॉ आंबेडकर के नाम पर राषट्र को खंडित करने के लिए दलितों को मोहरा बना रहा हैं ? ऐसे तमाम प्श्ों के उत्र ्ियं डॉ आंबेडकर ने ्ियं दिए हैं , जिससे देश का दलित समाज वा्िि में अपनी हितैषियों और शत्ुओं की पहचिान करने में समथि्श हो सके । भारत में रहने वाले मुस्लम वर्ग के लिए डॉ आंबेडकर के विचिार कुछ इस तरह थिे -
हिन्दू काफ़िर सम्ान के योग्य नहीं मुसलमानों के लिए हिनदू काफ़िर हैं , और
एक काफ़िर सममान के योगय नहीं है । वह निम्न कुल में जनमा होता है , और उसकी कोई सामाजिक स्थिति नहीं होती । इसलिए जिस देश में क़ाफिरों का शासन हो , वह मुसलमानों के लिए दार-उल-हर्ब है ऐसी स्थिति में यह साबित करने के लिए और सबूत देने की आि्यकता नहीं है कि मुसलमान हिनदू सरकार के शासन को ्िीकार नहीं करेंगे ।” ( पृ . 304 )
मुस्लिम भ्ातृभाव के वल मुसलमानों के लिए
इ्लाम एक बंद निकाय की तरह है , जो मुसलमानों और गैर-मुसलमानों के बीचि जो भेद यह करता है , वह बिलकुल मूर्त और ्पषट है । इ्लाम का भ्रातृभाव मानवता का भ्रातृति नहीं है , मुसलमानों का मुसलमानों से ही भ्रातृभाव मानवता
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