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यह है कि कई दशकों से अलगाववाद , आतंकवाद , छद्म विकास प्तरिया , बेरोजगारी सहित अनेकों सम्याओं को भुगतने वाले राजय में , सबसे विपरीत परिस्थितियों का शिकार दलित समाज के वह लोग बने , जिनहें शेख अबदुलला एंड कंपनी सबिबाग दिखाकर अपना मैला उठाने के लिए पंजाब , सिंध , राजस्थान एवं गुजरात से लेकर आयी थिी । लगभग सात दशक के दौरान दलितों ने राजय के जिन िथिाकतथिि रहनुमाओं का मैला ढोया , उनहोंने ही उनको राजय का अधिकृत नागरिक नहीं माना । इससे राजय में दलितों के स्थिति " मजहबी दास " वाली बन
गयी । दलित वर्ग के लोगों को राजय का नागरिक नहीं ्िीकार किया गया । सफाई कर्म के अलावा उनहें कोई अनय सरकारी या गैर-सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती थिी । वह पढ-लिख कर कितना भी योगय हो जाये किनिु उनके मैला ढोने के काम को छोडकर बाकी सभी कायगों पर प्तिबंध थिा । मजहबी नेताओं के भ्रामक सपनों के जाल में फंसकर दलित समाज ने अपने जिन मूल अधिकारों को खो दिया थिा , उन अधिकारों को दिलाने की प्ारमभ हुई प्तरिया ने उममीद के नए सपने जगाए हैं ।
नागरिकता के समबनध में राजय में लागू की
गई नयी नीति ने दलितों को सबसे बड़ी राहत दी है । केंद्र सरकार के इस कदम से उनहें महजबी दासता से मुशकि मिल गई है । धारा-370 और 35 ए हटाए जाने से पहले राजय में रहने वाले दलितों की स्थिति बहुत तचिंताजनक थिी । अनुसूतचिि जाति और जनजाति को भारतीय संविधान की ओर से उनके आतथि्शक एवं शैक्षणिक उत्थान के लिए किए गए प्ािधान एवं आरक्षण का उनहें कोई लाभ नहीं मिल रहा थिा । धारा- 370 के कारण जममू-क्मीर राजय की विधानसभा के बनाए नियम ही राजय में लागू होते थिे और केंद्रीय नियम-कानूनों को लागू नहीं
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