eMag_July2021_Dalit Andolan | Page 26

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वकि रहते उनका ्िाथिजी चिररत् प्कट हो गया । अब समझ में आता है कि बशखियार खिलजी ने कैसे इतनी आसानी से बंगाल के राजा लक्मण सेन को हरा दिया थिा ।
भयादोहन के जरिये शासन करने की जो रणनीति कमयुतन्टों की थिी उसी को टीएमसी ने भी अपना लिया है । यही नीति उसे प्रचंड बहुमत से फिर सत्ा में ले आई है । नि : संदेह केंद्र के सामने विषम स्थिति है । देश की जनता बंगाल में हतया , दुषकम्श , सांप्दायिक पक्षधरता , पलायन के समाचिार सुन-सुनकर बौखला रही है । वह केंद्र सरकार को इसके लिए कोस रही है कि वह कुछ नहीं कर रही है । चिूंकि शांति-
और अनय पड़ोसी राजयों में शरण लेनी पड़ी है । इस समिति ने लोगों के घर जलाने , उनकी हतयाएं करने और महिलाओं से दुषकम्श के मामलों का भी उललेख किया है ।
बंगाल की चिुनाव बाद हिंसा की भयावह घटनाओं को सुनकर 1971 में पातक्िानी सेना के अत्याचारों , लोमहर्षक हतयाओं , दुषकमवो की याद ताजा हो रही है । आपको याद होगा कि इसी बंगाल में 1946 में जिन्ना के आह्ान से हुए भीषण नरसंहार ने सुनिश्चित कर दिया थिा कि अब पातक्िान बनने में कोई संदेह नहीं है , लेकिन आखिर बंगाल की राजनीतिक- सांप्दायिक हिंसा का संदेश कया है ? जमीनी सतह पर खुली हिंसा , सांप्दायिक पक्षधरता का मुकाबला कैसे हो ? लंका युद्ध में मेघनाद के रिह्मा्त् से जब युद्धभूमि में भगवान राम और लक्मण जी मरणासन्न से हो गए तो विभीषण विक्षिपि होकर जामवंत के सामने विलाप करते हैं कि-अरे , अब लंका का राज तो गया , जिसकी आशा में यहां आया थिा । अब लंकेश मेरा न जाने कया हाल करेगा ? इस संकट के समय जामवंत जी के सममुख विभीषण का जो मूल चिररत् थिा , वह प्कट हो गया । पता चिल गया कि वह कितना बड़ा रामभकि थिा । वही स्थिति आज बंगाल के टीएमसी से विद्रोह कर भाजपा में आए और पलायन को आतुर हो रहे भाजपा नेताओं की हो रही है । चितलए , अचछा भी है कि
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