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समाज को उस समाज के रूप में भी देखा जा सकता है , जिस समाज ने न तो धर्मपरिवर्तन किया और न ही अ्पृ्य , अ्िचछ एवं गंदे कायगों को करने के लिए तैयार हुए । जंगलों में रहते हुए वनवासी समाज ने पहले मुस्लम आरिांिाओं का और फिर अंग्ेिों का मुकाबला किया और उनहें जंगलों के अंदर न घुसने देने के लिए बाधय कर दिया । इतिहास में यह ्पषट देखा जा सकता है कि भारत का वन क्षेत् एवं जंगल उनहीं वनवासी वीरों के कारण कभी भी गुलाम नहीं रहा । आज उनहें जनजाति के रूप में जाना जाता है और भारत सरकार की अनुसूचिी के अनुसार जनजाति वर्ग की संखया 465 है । कुछ लोग यह जरूर करते है कि रामायण और महाभारत ग्रंथों में कोल और भील जनजातियों का उललेख पाया जाता है । ऐसे में प्श् उठता है कि अनुसूतचिि जनजाति की 463 अनय जातियों का विवरण प्राचीन ग्रंथो में कयों नहीं है ?
सिख पंथ अथवा सिख वर्ग
विदेशी मुस्लम आरिांिाओं के शासन काल में ही देश के अंदर सिख धर्म की भी उतपतत् भी हुई । सिख पंथि की उतपतत् मुस्लम आरिांिा शासकों की कलई को खोलने वाली घटना के रूप में भी देखा जा सकता है । सिख पंथि का भारतीय पंथिों में अपना एक पवित् एवं अनुपम स्थान है । ‘ सिख पंथि ’ की स्थापना 15वीं शताबदी में भारत के उत्र-पश्चिमी भाग के पंजाब में गुरु नानक देव द्ारा की गई थिी । गुरु नानक देव जी का जनम 1469 ई्िी में लाहौर के तलवंडी ( अब ननकाना साहिब ) में हुआ । बचिपन से ही उनका मन एकांत , तचिंतन और सतसंग में लगता थिा । सांसारिक चिीजों में उनका मन लगाने के लिए उनका विवाह कर दिया गया । परनिु यह सब गुरु नानक जी को परमातमा के नाम से दूर नहीं कर पाया । गुरु नानक देव जी के कथिनों पर चिलते हुए सिख पंथि एक वयि्थिा के रूप में प्ारमभ हुआ । हिनदू धर्म की रक्षा के लिए हिनदू परिवार के सबसे बड़े पुत् को शिषय बनाया जाता थिा , जो आजीवन अविवाहित रहकर अपने धर्म एवं
सं्कृति के रक्षक के रूप में आरिांिाओं से लड़ता रहता थिा । कालांतर में उसी शिषय परंपरा को ही सिख पंथि के रूप में सामाजिक मानयिा प्ापि होती चिली गयी ।
उनके नेतृति में खालसाओं ने मुस्लम शासकों का बहादुरी पूर्वक सामना किया । सिखों के प्रथम गुरु से लेकर अंतिम गुरु लेकिन समय के साथि सिख समुदाय ने अपनी वीरता के भी जलवे दिखाए । अंतिम गुरु गोबिंद सिंह जी के काल में सिखों की एक बेहतरीन और कुशल लड़ाके की सेना तैयार हो चिुकी थिी और उनहोंने विदेशी मुस्लम शासकों के अत्याचार का मुकाबला किया और हिनदू धर्म की रक्षा में अपना योगदान दिया । सिखों का इतिहास बताता है कि मुस्लम शासकों ने सिख पंथि वयि्थिा को समापि करने के लिए भरपूर प्यास किये पर सिखों की बहादुरी के आगे मुस्लम शासकों के सारे प्यास असफल ही सिद्ध हुए । अनगिनत बलिदानों का इतिहास समेटे हुए सिख पंथि आज भी अपने उसी ्िरुप में दृढ़ है ।
ईसाई पंथ एवं ईसाई वर्ग
भारत में स्थित ईसाई पंथि के सनदभ्श में एक अप्माणित किनिु वि्िसनीय चिचिा्श होती है । ईसाई पंथि के प्िि्शक जीजस रिाइ्ट यानी ईसा मसीह में ततकालीन अखंड भारत का वर्तमान अफगातन्िान एवं क्मीर के बौद्ध मठों में शिक्षा और दीक्षा ग्हण की । ईसा मसीह के 12 शिषयों में से एक शिषय थिे जिनका नाम थिा सेंट थिॉमस । थिॉमस ने ही सर्वप्रथम केरल के एक स्थान से ईसाई धर्म का प्रचार-प्सार शुरू किया । इसके बाद सन 1542 में सेंट फ्ेंतसस जेवियर के आगमन के साथि भारत में रोमन कैथिोलिक धर्म की स्थापना हुई जिनहोंने विदेशी मुस्लम आरिांिाओं से बचिने एवं लोहा लेने के लिए दुर्गम स्थानों एवं जंगल में अवयिश्थित एवं दयनीय जीवन जी रहे भारत के निर्धन हिंदू और आदिवासी इलाकों में जाकर लोगों को ईसाई धर्म की शिक्षा देकर सेवा के नाम पर , उनहें भ्रमित करके ईसाई बनाने का कार्य शुरू किया ।
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