इसके बाद भारत में अंग्ेिों के शासन के दौरान इस धमाांतरण के योजनाबद्ध कार्य को और गति मिली । अंग्ेिों के आगमन के साथि देश में वयापक रूप से ईसाई पंथि का प्िेश हुआ और अंग्ेिों के साथि ही ईसाई मिशनरियां भारत में आयी , जिनहोंने भारत में धर्मानिरण को तीव्र गति एवं आगे बढ़ाने में कोई कमी नहीं छोड़ी । वनवासी इलाकों से लेकर देश के उन विभिन्न तह्सों में , जहां निर्धन एवं दयनीय स्थिति में अवयिश्थित जीवन यापन कर रहे लोगों के धर्मानिरण के लिए ईसाई मिशनरियों ने उनकी दयनीय हालत को अपना हतथियार बनाया और दलित एवं वनवासी हिनदुओं को ईसाई बनाकर अपने हितों को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ी । इस तरह देखा जाए तो भारत के इतिहास को परिवर्तित करने वाले मुस्लम आरिांिाओं और ईसाई मिशनरियों एवं अंग्ेिों ने इस देश के अंदर वर्तमान सम्याओं को जनम दिया और उन सम्याओं के निराकरण के नाम पर देश में पर अपनी सत्ा का संचिालन करते रहे ।
सभी समस्ाओं की जड़ बने विदेशी मुस्लिम आकांता भारत में चिाहे जाति का विषय हो या फिर धर्म
एवं पंथि समबनधी विवाद का वर्तमान ्िरुप , सभी विवादित मामलों के लिए अरब के विदेशी मुस्लम आरिांिाओं को ही मुखय रूप से उत्रदायी अथििा जिममेदार माना जा सकता है । बारहवीं शताबदी में भारत में घुस कर बलपूर्वक लूटपाट िथिा अपना कब्ा करने वाले विदेशी मुस्लम आरिांिाओं की पूरी रणनीति पर धयान दिया जाए तो यह कहना अनुतचिि नहीं लगता कि विदेशी मुस्लम आरिांिाओं के लिए भारत एक उपजाऊ चिरागाह से जयादा और कुछ नहीं थिी । मोहममद बिन कासिम से लेकर बहादुरशाह जफ़र तक के कार्यकाल के दौरान भारत की समपदा को लूटने-खसोटने के साथि ही हिनदू धर्म के लोगों पर अत्याचारों का पूरा इतिहास तो मौजूद है
ही , साथि ही यह इतिहास यह भी बताता है कि मुस्लम आरिांिाओं ने भारत के सामाजिक , सां्कृतिक , धार्मिक , शैक्षणिक एवं धार्मिक वयि्थिा को तहस-नहस करने में कोई कमी नहीं छोड़ी ।
भारत के ततकालीन समाज पर यदि दृशषट डाली जाए तो ्पषट होता है कि उस समय भारत की हिनदू समाज के लिए धर्म ही अंतिम इचछा के रूप में स्थापित थिा । धन-समृद्धि भी धर्म के समक्ष हीन थिा । धर्म रक्षा के लिए वह अपना सब कुछ नयोछावर करने के लिए ततपर थिे । यह वह कालखंड थिा जब भारतीय हिनदू समाज विदेशी आरिांिाओं की लूट को अनदेखी कर देते थिे पर धर्म के लिए वह मरने-मारने के लिए तैयार हो जाते थिे । देखा जाए तो भारत पर जब जब विदेशी आरिांिाओं का आरिमण हुआ , उस समय पूरा देश विदेशी आरिमणों के लिए एकजुट होकर लड़ता थिा , परनिु धर्म रक्षा के लिए रिाह्मण और देश की भौगोलिक सीमा की रक्षा का उत्रदाईति क्षतत्यों का थिा । यही कारण थिा कि विदेशी रशकियों की दृशषट में रिाह्मण और क्षतत्य ही उनके मुखय शत्ु के रूप में चिन्हित थिे और बाद में इनही दोनों िगगों का ही विदेशी मुस्लम आरिांिाओं पर सबसे अधिक अत्याचार एवं उतपीड़न हुआ । जो लोग अत्याचार , व्यभिचार , बहू-बेटियों की लुटाती हुई इज्ि एवं मर्यादा को नहीं सह सके , वह घुटने टेक दिए और इ्लाम को कबूल कर लिया । किनिु कुछ ऐसे थिे जो मरना ्िीकार किये किनिु इ्लाम को ठुकरा दिया । आरिांिाओं ने अ्िचछ कायगों में बलपूर्वक लगाकर उनका दमन और दलन करने के बाद दलित बना दिया । इस प्कार हम इतिहास के प्रचुर मात्ा में प्ापि मधयकालीन प्माणों के आधार पर कह सकते है कि इस देश की सभी प्मुख सम्याओं की जड़ में वे ही विदेशी मुस्लम आरिांिा हैं । ्ििंत् भारत में मुस्लम देश का निर्माण और देश में वयापि जाति और धार्मिक सम्याओं की मूल जड़ के रूप में इनही विदेशी आरिांिाओं की नीतियों को ही जिममेदार ठहराया जा सकता है । �
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