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नौकरी करते हुए अपनी जिंदगी का्ट दी , उस पद पर पहुंचने का मौका उनहें अपनी धर्मपत्ी राधा देवी के तयाग और सहयोग से ही मिला । लेकिन बदले में राधा देवी को कया मिला ? उम्र भर अकेले रहने का अभिशाप और दुर्दशापूर्ण जीवन जीने की बाधयता । दशकों तक झूठे दिलासे में जीने वाली राधा देवी आज भ्टक रही हैं और जेएनयू प्रशासन से गुहार लगाते हुए अपने सवगगीय पति की पेंशन की मांग कर रही हैं ।
जेएनयू के कुलपति को दिए गए एक पत् में राधा देवी ने गुहार लगायी है कि वह एक गरीब , लाचार एवं विधवा हैं । वह प्रोफ़ेसर तुलसीराम की पत्ी हैं और उनका निधन हो चुका है । इसलिए वह ही उनकी उत्तराधिकारी हैं । उनकी गुहार है कि प्रोफ़ेसर तुलसीराम की सभी सरकारी पेंशन , ग्ेज्युटी , बीमा , रायल्टी सहित अनय सभी भत्ते , लाभ एवं सुविधा उनहें प्रदान की जाए । इसके साथ ही राधा देवी ने यह मांग भी लव्वलवद्ालय प्रशासन से की है कि अगर कोई अनय प्रोफ़ेसर तुलसीराम के नाम पर अपना उत्तराधिकार जताता है तो यह पूरी तरह से गलत और अवैध होगा ।
जेएनयू प्रशासन के साथ ही गत 12 जुलाई को राधा देवी ने प्रधानमंत्ी नरेंद्र मोदी , शिक्ा मंत्ी धममेंद्र प्रधान सहित अनुसूचित जाति आयोग के अधयक् से भी यह मांग की है कि उनके साथ नयाय किया जाए । देखना यह होगा कि राधा देवी को नयाय मिलता है या नहीं । लेकिन यह पूरी घ्टना यह बताने के लिए काफी है कि सवाथखा में वशीभूत होकर कोई इंसान कया कर सकता है ।
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कथित चि ंतक एवं वामपंथ के
जवाहरलाल नेहरू लव्वलवद्ालय ( जेएनयू ) में कथित दलित चिंतक प्रो . तुलसी राम को एक बड़े साहितयकार एवं बौद्धिक विद्ान के रूप में देखा जाता है । उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के एक गांव में रहने वाले दलित परिवार में 1949 में पैदा हुए तुलसी राम की मूल शिक्ा उनके गांव और फिर आज़मगढ़ में हुई । इसके बाद वह बनारस हिंदू लव्वलवद्ालय ( बीएचयू ) पहुंचे । यही उनका सबंध वामपंथियों से हुआ और फिर वह उनके साथ मिलकर काम करने लगे । गरीब परिवार से समबनध रखने वाले प्रो . तुलसीराम को तब अपनी पत्ी राधादेवी और उनके पिता का सहारा मिला , जिनहोंने सवयं अभाव सहते हुए प्रो . तुलसीराम की आर्थिक मदद की । इसके बाद वह जेएनयू आ गए और फिर अंतरराषट्ीय अधययन में पीएचडी की डिग्ी हासिल की । इसके बाद जेएनयू में ही वह स्कूल ऑफ इं्टरनेशनल स्टडीज़ में प्रोफ़ेसर हो गए । उनहोंने अंतरराषट्ीय संबंध पर ' आइडियॉलॉजी इन सोवियत- ईरान रिलेशनस : लेनिन ्टू स्टालिन ' नाम की पुसतक लिखी , जिसका बाद वह वामपंथियों के लिए भरोसेमंद
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साथी बन गए । ऐसा बताया जाता है कि प्रो . तुलसीराम कथित रूप से दलित विषय समबनधी लेखन में अपना एक अलग सथान रखने वाले साहितयकार थे । उनके लेखन में शांति , अहिंसा और करुणा वयापत है ।
बताया जाता है कि डॉ . तुलसीराम ने अपने लेखन में दलित समाज की तमाम समसयायों के साथ ही उनके सामाजिक उतपीड़न एवं सामाजिक बंधनों को विषय बनाया । अपनी आतमकथा ' मुर्दहिया ' और ' मणिकर्णिका ' में यह दिखाई भी देता है । ‘ मुर्दहिया ’ और ‘ मणिकर्णिका ’ पूवगी उत्तर प्रदेश में रहने वाले दलितों की जीवन शसथलतयों और ततकालीन समय में कथित वामपंथी आंदोलन को उजागर करती है । हो सकता है कि प्रो . तुलसी राम की वैचारिकी के बहुत सारे प्रशंसक हों , लेकिन उनकी पत्ी राधा देवी की वर्तमान दशा उनके खोखलेपन को ही दर्शाती है । जेएनयू में ऐसा बताया जाता है कि प्रो . तुलसीराम बहुत लनभगीकतापूर्वक अपने विचारों को सामने रखते थे । वह सभी राजनीतिक दलों का विरोध करते थे और दलित कलयाण के लिए वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध भी थे ।