को तयाग दिया । यह वही प्रोफ़ेसर तुलसीराम हैं , जो बनारस से शिक्ा पूरी करने के बाद जब दिलली आए तो वामपंथी चररत् में रंग गए । यह वही प्रोफ़ेसर तुलसीराम हैं , जो उन वामपंथियों के सबसे बड़े सहयोगी बन गए , जो देश से लेकर विदेश तक , दलित हितों के नाम पर भारत की छवि को ख़राब करने का कोई मौका नहीं छोड़ते । लेकिन प्रोफ़ेसर तुलसीराम ने अपनी दलित पत्ी के साथ कया किया ? यह जानकार आपको भी वामपंथियों के दोहरे चेहरे का पता चल जाएगा ।
प्रोफ़ेसर तुलसीराम ने जब विवाह किया था , उस समय राधा देवी की आयु मात् 16 वर्ष थी । मूल रूप से राधा देवी आजमगढ़ की निवासी थी । कम आयु में विवाह के बावजूद राधा देवी को ऐसा लगा था कि अब उनकी जिंदगी में ठहराव आएगा और वह अपने पति के साथ एक सुखी वैवाहिक जीवन वयतीत करेगी । विवाह के बाद तुलसीराम अपनी शिक्ा के लिए वाराणसी जाना चाहते थे , लेकिन आर्थिक शसथलत ऐसी थी कि वह अपनी शिक्ा पूरी नहीं कर सकते थे । ऐसे में
राधा देवी ने पत्ी धर्म का निर्वाह करते हुए अपने पिता सवगगीय रामदेव से मदद मांगी और फिर तुलसीराम बनरस हिनदू लव्वलवद्ालय में शिक्ा लेने के लिए वाराणसी चले गए । शिक्ा ग्हण करने के दौरान होने वाले खर्च का भुगतान उनके ससुर रामदेव तो करते ही रहे और फिर राधा देवी ने भी अपने सभी जेवर एक-एक करके बेचकर उनहें पैसा भेजने में कोई कमी नहीं की । शिक्ा के दौरान तुलसीराम को गांव से ही राशन-पानी भेजा जाता रहा और यह सब वयवसथा सवयं राधा देवी अपने सतर पर करती रही और सुनदर भविषय के सवप्न देखती रहीं । सवयं वरतों तक आर्थिक अभाव झेलने वाली राधा देवी ने अपने पति की शिक्ा के लिए वह सब कुछ किया जो कर सकती थी , उधर तुलसीराम सब शसथलतयों से बेखबर होकर अपनी शिक्ा में ही वयसत हो गए ।
वाराणसी में शिक्ा पूरी करने के बाद तुलसीराम ने दिलली का रूख किया और
वह उच्च शिक्ा के लिए जेएनयू जा पहु ंचे । संयोग यह ही रहा कि जब तक तुलसीराम शिक्ा प्रापत करते रहे , तब तक वह राधा देवी के साथ रहे । लेकिन दिलली में जब वह जेएनयू पहुंचे , उसके बाद से ही राधा देवी के दुर्दिन प्रारमभ हो गए । उनहोंने राधा देवी को गांव में छोड़ दिया और सवयं दिलली में वयसत हो गए । दिलली में अकेले रहने वाले तुलसीराम वर्ष में एक-आध बार जब गांव आकर राधा देवी से मिलते थे , तो उनहें आ्वासन देते थे कि जलद ही वह राधा देवी को भी दिलली लेकर जाएंगे , पर ऐसा कभी नहीं हो पाया । जेएनयू में एक बेहतर नौकरी करते हुए तुलसीराम पूरी तरह वामपंथी हो गए । उनका समपूणखा जीवन बदल गया और वह वामपंथ के कथित आदशतों के पाठ अपने छात्ों को जिंदगी भर सिखाते रहे । साथ ही उनहें अब दिलली अचिी लगने लगी थी और दिलली की रंगीनियों में वह खो गए ।
उधर राधा देवी
गांव में रहते हुए इंतजार करती रही कि कब उनके पति तुलसीराम उनहें दिलली लेकर जाएंगे , जिससे वह भी एक सुखी वैवाहिक जीवन वयतीत कर सके । लेकिन ऐसा नहीं हुआ । अपनी पूरी जिंदगी तुलसीराम के लिए वयतीत कर देने वाली राधा देवी की जिंदगी के हर पल सिर्फ इंतजार करते ही बीत गयी ।
वरतों के इंतजार के बाद एक दिन राधा देवी को अचानक पता चला कि उनके पति तुलसीराम का निधन हो चुका है । यह समाचार राधा देवी के लिए वज्रपात सिद्ध हुआ । एक पल के लिए उनहें भरोसा ही नहीं हुआ कि जिस पति का वह गांव में रहकर वरतों से इंतजार करती रही , वह अब कभी नहीं आएंगे । यह भी एक भयावह सतय है कि जिस तुलसीराम ने जेएनयू में स्कूल ऑफ़ इं्टरनेशनल स्टडीज में वरिषठ प्रोफ़ेसर पद पर
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