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को विवश किया गया । संसद में अमबेडकर ने तयागपत् के साथ जो भाषण दिया , वह कांग्ेस के दलित एवं वनवासी विरोधी असली चेहरे को उजागर करता है । डॉ . अमबेडकर ने सितंबर 1951 में कैबिने्ट से इसतीिा देते हुए भाषण में विसतार से अपनी उन-उन पीड़ा को बयान किया , जो-जो उनहोंने नेहरू के हाथों झेली । अमबेडकर राइल्टंग , वॉलयूम- 14 भाग 2 , पृषठ 1317-1327 में उनका भाषण संकलित किया गया है । अपने तयागपत् भाषण में डॉ . अमबेडकर ने कहा कि जब प्रधानमंत्ी नेहरू ने मुझे प्रसताव दिया तो मैंने उनहें सपष्ट बता दिया था कि अपनी शिक्ा और अनुभव के आधार पर एक वकील होने के
साथ मैं किसी भी प्रशासनिक विभाग को चलाने में सक्म हूँ । प्रधानमंत्ी सहमत हो गए और उनहोंने कहा कि वह मुझे अलग से योजना का भी दायितव देंगे । दुर्भागय से योजना विभाग बहुत देरी से मिला , जिस दिन मिला मैं तब तक बाहर आ चुका था । मेरे कार्यकाल के दौरान कई बार एक मंत्ी से दूसरे मंत्ी को मंत्ालय दिए गए , मुझे लगता है कि उन मंत्ालयों में से भी कोई मुझे दिया जा सकता था । लेकिन मुझे हमेशा इस दौड़ से बाहर रखा गया । मुझे यह समझने में भी कठिनाई होती थी कि मंलत्यों के बीच काम का बं्टवारा करने के लिए प्रधानमंत्ी जिस नीति का पालन करते हैं , उसके पैमाने की क्मता
कया है ? कया यह लव्वास है ? कया यह लमत्ता है ? या कया यह लचरता है ? मुझे कभी भी कैबिने्ट की प्रमुख समितियाँ जैसे विदेश मामलों की समिति या रक्ा समिति का सदसय नहीं चुना गया । जब प्रधानमंत्ी नेहरू इंगलैंड गए तो मुझे कैबिने्ट ने इसका सदसय चुना । लेकिन जब वह वापस आए तो कैबिने्ट समिति के पुनर्गठन में भी उनहोंने मुझे बाहर ही रखा । मेरे विरोध दर्ज करने के बाद मेरा नाम जोड़ा गया ।
एक और चीज जिसने डॉ . अमबेडकर को इसतीिे के लिए बाधय किया , वो था हिंदू कोड बिल के साथ सरकार का बर्ताव । यह विधेयक 1947 में सदन में पेश किया गया था लेकिन बिना किसी चर्चा के जमींदोज हो गया । उनका मानना था कि यह इस देश की विधायिका का किया सबसे बड़ा सामाजिक सुधार होता । बाबा साहब ने कहा था कि प्रधानमंत्ी के आ्वासन के बावजूद ये बिल संसद में गिरा दिया गया । अपने भाषण के अंत में उनहोंने कहा कि अगर मुझे यह नहीं लगता कि प्रधानमंत्ी के वादे और काम के बीच अंतर होना चाहिए , तो निश्चत ही गलती मेरी नहीं है ।
डॉ . अमबेडकर का नेहरू सरकार के प्रति असंतुष्ट होने का एक और मुखय कारण था , पिछड़े वगतों और अनुसूचित जातियों से जुड़ा भेदभावपूर्ण वयवहार । डॉ . अमबेडकर अपने भाषण में आगे कहते हैं कि मुझे इस बात का बहुत दुःख है कि संविधान में इन जातियों की सुरक्ा के लिए कुछ विशेष तय नहीं किया गया । यह तो राषट्पति द्ारा नियुकत एक आयोग की संसतुलत के आधार पर सरकार को करना पड़ा । इसका संविधान पारित करते हुए हमें एक वर्ष हो गया था लेकिन सरकार ने आयोग के गठन तक के विषय में नहीं सोचा । आज अनुसूचित जाति की शसथलत कया है ? जहां तक मैंने देखा है , वैसी ही है जैसी पहले थी । वही चला आ रहा उतपीड़न , वही पुराने अतयाचार , वही पुराना भेदभाव जो पहले दिखाई पड़ता था । सब कुछ वही , बशलक और बदतर हालात वाली शसथलत । बशलक यदि तुलना करें तो इनसे जयादा सरकार मुसलमानों के प्रति संवेदना दिखा रही है । प्रधानमंत्ी का सारा समय और
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