eMag_July 2023_DA | Page 50

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धयान मुसलमानों के संरक्ण के लिए समर्पित है । कया अनुसूचित जाति , अनुसूचित जनजाति और भारतीय ईसाइयों को सुरक्ा की जरूरत नहीं है । नेहरू जी ने इन समुदायों के लिए कया चिंता दिखाई है ? जहां तक मुझे मालूम पड़ता है , कुछ भी नहीं । जबकि असली बात यह है कि ये वो समुदाय हैं , जिन पर मुसलमानों से भी जयादा धयान देने की जरूरत हैI
बाबा साहब अपने भाषण में नेहरू की मुशसलम तुष्टिकरण वाली नीतियों की बखिया उखेड़ रहे थे । डॉ . अमबेडकर की चिंता शोषितों , वंचितों और समाज के सबसे नीचे पायदान पर खड़े लोगों के लिए थी । लेकिन इसके उल्ट नेहरू की नीतियां मुशसलम तुष्टिकरण को बढ़ावा दे रही थीं । ऐसे कई मौके आए जब नेहरू ने डॉ . बाबासाहेब अमबेडकर के राजनीति सफर पर न केवल अड़चने पैदा कीं बशलक कई बार उनहें चुनाव हराने में भी बड़ा रोल निभाया , जिसमें वो कामयाब भी हुए ।
डॉ . बाबासाहेब अमबेडकर ने 14 सितंबर 1956 को ततकालीन प्रधानमंत्ी जवाहरलाल नेहरू को एक पत् लिखा , जिसमें उनहोंने अपनी
पुसतक ‘ बुद्ध और उनके धमम ’ के प्रकाशन के लिए मदद मांगी । इस पर नेहरू ने डॉ . अमबेडकर के पत् का जवाब दिया और ‘ बुद्ध और उनके धमम ’ पुसतक की 500 प्रतियां खरीदने में असमर्थता वयकत की । जब 296 लोगों को शुरुआती संविधान सभा में भेजा गया था , तो उसमें अमबेडकर का नाम शामिल नहीं था , उस समय के बॉमबे के मुखयमंत्ी बी . जी . खेर ने ये सुनिश्चत किया था कि अमबेडकर 296 सदसयीय निकाय के लिए नहीं चुने जाएँगे ।
ऐसी कई घ्टनाएँ हैं जो साबित करती हैं कि कांग्ेस और उसके नेता खासकर नेहरू कभी डॉ . अमबेडकर को मुखय धारा की राजनीति में नहीं आने देना चाहते थे । इन तमाम झंझावतों को दूर कर बाबा साहेब ने उस दौर में वो मुकाम हासिल किया , जो किसी दलित नेता के लिए बहुत मुश्कल था । डॉ . अमबेडकर का लक्य था- ‘ सामाजिक असमानता दूर करके शोषित , वंचितों के मानवाधिकार की प्रतिषठा करना ।’
डॉ . अमबेडकर ने गहन-गंभीर आवाज में सावधान किया था कि 26 जनवरी 1950 को हम परसपर विरोधी जीवन में प्रवेश कर रहे हैं ।
हमारे राजनीतिक क्ेत् में समानता रहेगी किंतु सामाजिक और आर्थिक क्ेत् में असमानता रहेगी । जलद से जलद हमें इस परसपर विरोध को दूर करना होगा । नहीं तो जो असमानता के शिकार होंगे , वे इस राजनीतिक गणतंत् के ढाँचे के लिए मुश्कलें पैदा करेंगे ।
इसलाम पर डॉ . भीमराव अंबेडकर के विचार कया थे ? काफी चर्चित पुसतक ‘ डॉ . बाबासाहेब अमबेडकर राइल्टंगस एंड सपीचेज , वॉलयूम 8 ’ के पृषठ 64-65 से हम इसे समझ सकते हैं । यहां जिस भाषण का लजरि है , उसमें बाबा साहब कहते हैं- इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत में मुशसलम आरिांता हिंदुओं के खिलाफ घृणा का राग गाते हुए आए थे । उनहोंने न केवल घृणा ही फैलाई बशलक वापस जाते हुए हिंदू मंदिर भी जलाए । उनकी नजर में यह एक नेक काम था और उनके लिए तो इसका परिणाम भी नकारातमक नहीं था । उनहोंने एक सकारातमक कार्य किया , जिसे उनहोंने इसलाम के बीज बोने का नाम दिया । इस पौधे का विकास बखूबी हुआ , यह केवल रोपा गया पौधा नहीं था बशलक यह एक बड़ा विशाल पेड़ बन गया था । �
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