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करते हुए निर्णय लिया गया कि कांग्ेस , हिंदू महासभा और वामपंथियों से कोई समझौता नहीं किया जायेगा । चुनावी घोषणापत् में कहा गया कि संघ प्रतयेक भारतीय को सवयं में अंतिम लक्य मानेगा । अनुसूचित जाति संघ को जिन सिद्धांतों के आधार पर राजनीतिक पाल्टटियों के साथ सहयोग करना था , वे इस प्रकार से थे-
- ‘ अनुसूचित जाति संघ ’ किसी भी ऐसे दल के साथ गंठबंधन नहीं करेगा , जिसने अपने सिद्धांत खुल कर सामने नहीं रखे हैं या जिसके सिद्धांत संघ के सिद्धांतों के विरुद्ध हैं ।
-संघ निर्दलीय प्रतयालशयों को समर्थन नहीं देगा ।
-संघ लपिड़ी जातियों और अनुसूचित जनजातियों के साथ मिल कर काम करना चाहेगा , कयोंकि कमोबेश इनकी दशा अनुसूचित जातियों जैसी ही है ।
-प्रलतलरियावादी दलों , यथा हिंदू महासभा या राषट्ीय सवयंसेवक संघ से कोई गंठबंधन नहीं होगा ।
-संघ वामपंथी दलों से कोई गंठबंधन नहीं करेगा , जिसका उद्े्य वयशकतगत सवतंत्ता व लोकतंत् का नष्ट कर उसकी जगह तानाशाही सथालपत करना है ।
-संघ सवयं की परिपूर्णता पर लव्वास नहीं रखता और वह किसी ऐसे दल से नहीं जुड़ेगा , जो सवयं को पहले से ही परिपूर्ण मानता हो और विरोधी दल को पनपने ही न देता हो ।
-संघ बहुत सी राजनीतिक पाल्टटियों के पनपने का विरोध करता है , जैसा कि ब्रिटिश लेबर पार्टी , जो संघीय पार्टी है ।
-संघ किसी ऐसे संघीय दल की इकाई बनने को तैयार है , जिसने अपने सिद्धांत सपष्ट रूप से सामने रखे हों , ऐसे दल के सिद्धांत संघ के सिद्धांत के विरुद्ध न हों । जो दल गंठबंधन के इचिुक हों , उनहें वचन देना होगा कि अनुसूचित जाति के सामाजिक व आर्थिक उतथान के कायखारिमों में वे सदैव समर्थन देंगे । ऐसे दल को इस बात से सहमत होना होगा कि संघ दल की इकाई बने रहते हुए आंतरिक मामलों में अपनी सवायत्तता बरकरार रखेगा और दल किसी दशा
में ऐसी पार्टी से संबद्ध नहीं होगा , जिसे दल ने अपनी इकाई के रूप में सवीककृलत न प्रदान की हो ।
-कोई भी वयशकत , जो संघ की कोई सहायता चाहता हो , उसे संघ का संयुकत सदसय बनना होगा और शपथ-पत् पर हसताक्र करने होंगे कि वह संघ के सिद्धांतों , नियमों , योजनाओं व अनुशासन के नियमों को सवीकार कर रहा है ।
चुनावी उलटफे र में मिली हार
‘ अनुसूचित जाति संघ ’ ने नवंबर , 1951 में ‘ प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ’ के साथ चुनावी गंठबंधन किया । डॉ अमबेडकर ने ‘ प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ’ के उममीदवारों को समर्थन देने की अपील करते हुए कहा कि लोग कयों ऐसा सोचें कि हमें राजनीति में भी अछूत ही रहना चाहिए ? 25 नवंबर , 1951 को शिवाजी पार्क में एकत् करीब दो लाख की सभा में उनहोंने जोर देकर कहा कि शासक पार्टी पर नियंत्ण रखने के लिए विपक् की बेहद जरूरत है ।
जनवरी , 1952 में राजय विधानसभाओं और संसद के चुनाव हुए . डॉ अमबेडकर ने उत्तरी मुंबई की सुरलक्त सी्ट से चुनाव लड़ा । चुनाव
की आंधी कांग्ेस के पक् में चल रही थी , नतीजतन डॉ अमबेडकर हार गये । उनहें 1,23,576 मत मिले , जबकि कांग्ेस के काजरोलकर को 1,37,950 मत । मार्च , 1952 के मधय में अमबेडकर ने स्टे्ट कौंसिल में मुंबई को आवंल्टत 17 सी्टों में से एक पर परचा दाखिल किया । महीने के अंत में यहां से वह निर्वाचित हुए । मई , 1952 में लोकसभा के लिए हुए उपचुनाव में वह फिर खड़े हुए , पर पुन : हार गये । 1952 के आम चुनाव में बिखर जाने से उनका राजनीति से काफी हद तक मोहभंग हो गया ।
समर्थन के लिए जनता के नाम एक खुला पत्र
25 नवंबर , 1952 को मुंबई के शिवाजी पार्क में करीब दो लाख लोगों की विशाल सभा को संबोधित करते हुए उनहोंने जोर दिया कि भारत के नवजात गणतंत् के निर्माण के लिए विपक्ी दल की बेहद जरूरत है , जो शासक दल पर अंकुश रख सके । काफी सोच-विचार के बाद उनहोंने अपनी बहुप्रतीलक्त योजना का खुलासा किया कि एक नयी पार्टी ‘ रिपशबलकन पार्टी ऑफ
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