इंडिया ’ का गठन किया जाये , ताकि देश की राजनीति में एक नये रकत का संचार हो सके ।
रिपशबलकन पार्टी ऑफ इंडिया ’ का उद्े्य सभी अनुसूचित जातियों , अनुसूचित जनजातियों , लपिड़ों , बौद्धों व मुसलमानों को पार्टी के झंडे तले संगठित करना था , ताकि शासक दल को एक प्रामाणिक चुनौती दी जा सके । उनहें उममीद थी कि पार्टी के गठन की घोषणा होते ही इसके समर्पित , मजबूत इरादोंवाले और निषठावान कार्यकर्ताओं के कारण इसकी छवि बेहतर बनेगी । समय बीतने के साथ-साथ अनय अलपसंखयक दलों के नेता इसमें शामिल होंगे और आंदोलन मजबूत होगा । वह जनता के समर्थन के बारे में पूरी तरह से आ्वसत थे ।
संसदीय लोकतंत्र के सफलतापूर्वक कार्य करने की शतते
संसदीय शासन वयवसथा बिना किसी बाधा के सुचारु रूप से कार्य करती रहे , इसके लिए कुछ शतवो का होना अनिवार्य है । उदाहरण के लिए 1- लोकतंत् अपना रूप बदलता रहे , हमेशा एक जैसा न रहे 2- एक राषट् में हमेशा एक ही लोकतंत् न रहे , और 3- लोकतंत् केवल अपना
सवरूप ही न बदले , यह अपना उद्े्य भी बदलता रहे और आधुनिक लोकतंत् का उद्े्य यह नहीं रहा कि वह मनमाने राजा पर अंकुश लगाये , बशलक उसका उद्े्य जनकलयाण है । यह लोकतंत् के उद्े्यों में सपष्ट परिवर्तन है ।
संसदीय सरकार को विपक्षी दल की आवश्यकता क्ों होती है
लशलक्त जनता की राय के बगैर संसदीय लोकतंत् चल ही नहीं सकता । सरकार और संसद दोनों के ठीक से कार्य करने के लिए जनता की राय जाननी जरूरी है । इसको सपष्ट करने के लिए यह बताना जरूरी है कि शिक्ा व प्रचार में कया फर्क है । प्रचार की सरकार शिक्ा के प्रतिफल की सरकार से भिन्न चीज है . प्रचार का अर्थ है , मुद्ों को अचिा प्रसतुत करना . ‘ शिक्ा के प्रतिफल की सरकार ’ का अर्थ है , मुद्ों के अचिे व बुरे , दोनों पक्ों को सुनकर , समझकर बनायी गयी सरकार ।
यह जरूरी है कि जनता के समक् किसी मसले के अचिे व बुरे दोनों पक् रखे जायें , जिस पर संसद को कोई निर्णय लेना है । इस तरह जाहिर है कि दो दल होंगे . एक अचिाइयां पेश करेगा व दूसरा बुराइयां । एक ही दल होने पर तानाशाही के अलावा कुछ नहीं होगा । तानाशाही न आने पाये , इसके लिए दो दलों का होना जरूरी है । यह बहुत गंभीर मसला है । लोगों का अचिे कानून की तुलना में अचिे प्रशासन से जयादा ताललुक होता है । कानून अचिा हो सकता है , पर इसका अनुपालन बुरा हो सकता है । कानून का अनुपालन अचिा होगा या बुरा , यह इस बात पर निर्भर है कि अनुपालन के लिए नियुकत अधिकारी को कितनी आजादी है । जब केवल एक पार्टी होगी , अधिकारी अपने राजनीतिक विभाग के मंत्ी की दया पर निर्भर रहेगा । मंत्ी का अशसततव , मतदाताओं के खुश रहने पर निर्भर है और यह प्रायः होता है कि मंत्ी अपने मतदाताओं को लाभ पहुंचाने के लिए अधिकारी को अनुचित कार्य करने के लिए बाधय कर सकता है । यदि विपक्ी दल होगा , तो मंत्ी का यह कार्यकलाप उजागर हो जायेगा और
उसकी शरारतें रुक जायेंगी ।
अचिे प्रशासन के लिए संभवत : अगली चीज यह है कि लोग बोलने की आजादी व रोके जाने से मुशकत चाहते हैं । जब विपक्ी दल होगा , तो बोलने और कार्य करने की आजादी होगी । यह आजादी खतरे में पड़ जायेगी , यदि विपक् नहीं होगा , कयोंकि यह पूछनेवाला कोई नहीं होगा कि किसी वयशकत विशेष को बोलने से और अपने लक्य की ओर बढ़ने से कयों रोका गया ? विपक्ी दल की आव्यकता के ये आधार हैं । सभी देशों में जहां संसदीय शासन है , विपक् को राजनीतिक संसथा का दर्जा प्रापत है । पार्टी के गठन का उद्े्य और प्रयोजन रिपशबलकन पार्टी के उद्े्यों और प्रयोजनों को सपष्ट करते हुए कहा गया कि पार्टी का रवैया निम्न सिद्धांतों पर आधारित होगा-
1 . यह समसत भारतीयों को कानून के समक् न केवल समान मानेगी , बशलक उसे समानता के लिए अधिककृत भी मानेगी । तदानुसार जहां समानता नहीं है , वहां समानता के लिए उतसालहत करेगी और जहां नहीं है , वहां सथालपत करेगी ।
2 . यह प्रतयेक भारतीय को सवयं में अंतिम लक्य मानेगी , जिसे अपने ढंग से अपना विकास करने का हक होगा और राजय उस लक्य का मात् साधन होगा ।
3 . यह प्रतयेक भारतीय की धार्मिक , आर्थिक और राजनीतिक सवतंत्ता को बरकरार रखेगी . दूसरे भारतीयों या राजय के हितों के रक्ा के लिए यदि जरूरत पड़ी , तभी इस पर अंकुश लगायेगी ।
रिपशबलकन पार्टी ऑफ इंडिया को सवरूप प्रदान करने के लिए डॉ अमबेडकर अपनी खराब सेहत के बावजूद बहुत वयग्ता से ततकालीन नेताओं से निरंतर संपर्क व पत् वयवहार बनाये हुए थे । इनमें से सोशलिस्ट पार्टी के डॉ राममनोहर लोहिया , अशोक मेहता व जय प्रकाश नारायण , महाराषट् कांग्ेस के विपक्ी दल के मूर्धनय व संयुकत महाराषट् आंदोलन के अग्णी नेता आचार्य पीके आत्े व एसएम जोशी एवं मुसलिम नेता प्रमुख थे । ईसाइयों , सिखों तथा अनय अलपसंखयक समुदाय के नेताओं से संपर्क करने के भी प्रयास जारी थे । �
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