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राजनीतिक शतति से ही होगी सामाजिक उन्नति : डॉ अम्ेडकर

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भी प्रकार की सामाजिक उन्नति की कुंजी राजनीतिक शशकत है । यदि अनुसूचित जाति ने संगठित होकर भारत में एक तीसरी राजनीतिक शशकत बनायी और कांग्ेस और समाजवादियों के सामने और एक तीसरी शशकत के रूप में खड़ा कर लिया तो अपनी मुशकत का द्ार वह सवयं खोल सकते हैं । हमें एक तीसरी शशकत के रूप में संगठित होना है ताकि चुनाव के समय कांग्ेस या सोशलिस्टों के पास पूर्ण बहुमत न हो तो दोनों को ही हमारे पास मतों के लिए भीख मांगने आना पड़े . ऐसे समय में हम दोनों पक्ों के बीच शशकत संतुलन का काम कर सकेंगे तथा अपनी राजनीतिक और समाजिक उन्नति के लिए उनसे कुछ शतदे मनवा सकेंगे । ( शेडय़ूल कास्ट फेडरेशन के पांचवें अधिवेशन , लखनऊ , 25 अप्रैल , 1948 में भाषण का अंश )
हम ही रिांवत का चरि घुमाएंगे
असपृ्यों का भविषय अतिशय उज्जवल है ।
इस विषय में नि : शंक रहें । कांग्ेस का कहना है कि विदेशी सत्ता को बाहर निकालने के लिए हमने रिांलत की । इसके लिए उनहें धनयवाद । परंतु यह रिांलत अधूरी है । खरी लोकशाही लानी हो तो आज हजारों वरवो से सिर पर चढ़ कर नाचने वाला उच्च वर्ण नीचे आये और समाज के निम्न वर्ग को ऊपर लाये । हमारे बगैर सही रिांलत नहीं होगी . रिांलत का चरि अभी आधा ही घूमा है . हम ही इस चरि को पूरा घुमाएंगे । ( मनमाड में 1949 में दिये भाषण का अंश )
बीसवीं सदी के प्रमुख समाज सुधारक , राजनेता एवं दलित मुशकत के दार्शनिक के रूप में बाबा साहेब डॉ भीमराव अमबेडकर की प्रतिषठा दुनियाभर में है । एक असपृ्य जाति में जनम के बावजूद शिक्ा के बलबूते उनहोंने तरककी पायी । अछूतों के धार्मिक एवं सामाजिक अधिकारों के लिए संघर्ष के साथ सामाजिक जीवन में प्रवेश किया . 1927 में ‘ बहिष्कृत भारत ’ पत् का प्रकाशन और पानी के सवाल पर महाड़ सतयाग्ह किया । 1928 में साइमन कमीशन से दलितों
के लिए शैक्लणक सुविधाओं की मांग की । 1930 में देश के दलित नेता के रूप में गोलमेज सममेलन में हिससेदारी का निमंत्ण मिला , इस उद्े्य से लंदन गये । 1932 में दलितों के लिए पृथक निर्वाचन मंडल की मांग पर महातमा गांधी से समझौता ( पूना पैक्ट ) किया और दलितों के लिए अधिक सी्टें आरलक्त करायीं ।
स्वतंत्र मजदूर दल की स्ापना
बाबा साहेब भारत के सभी दलित , शोषित और श्लमकों को एक झंडे के नीचे लाकर उनका एक राजनीतिक दल बनाना चाह रहे थे । उनके पूर्व भारत में ‘ डिप्रेसड कलासेस मिशन ’ नाम की संसथा कार्यरत थी , पर उसका सवरूप राजनीतिक नहीं था । 1935 के कानून के अंतर्गत 1937 में चुनाव घोषित हुए , लेकिन दलितों का अपना कोई राजनीतिक दल नहीं था । ऐसे में 1936 में उनहोंने ‘ सवतंत् मजदूर दल ’ की सथापना की । इस दल की ओर से वे विधानमंडल में गये । कुछ वरवो बाद इस दल का रूपांतर ‘ अनुसूचित
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