eMag_July 2023_DA | Page 39

छीन लिया गया है । इसलिये सिर्फ धन-जायदाद से समबशनधत हित मानव-मात् के बुनियादी हितों के सामने नगणय है ।
साउथबरो कमे्टी ने दलितों के साथ नयाय नहीं किया । उसने दलितों की निर्वाचन की मांग को सवीकार नहीं किया , बशलक उनके लिये मनोनयन की वयवसथा की सिफारिश की । इस कमे्टी ने यह वयवसथा इस आधार पर दी कि दलित वगतों के मतदाताओं की संखया संतोषजनक नहीं थी । डा . अमबेडकर ने ‘ बहिष्कृत हितकारिणी सभा ’ की ओर से , जिसके वे अधयक् थे , इस सिफारिश का विरोध् किया । 1927 में ब्रिटिश सरकार ने भारत की संवैधानिक समसया को सुलझाने के लिये साइमन कमीशन नियुकत किया । यह कमीशन दलित वगतों के लिये भी संवैधानिक संरक्णों की सिफारिश करने वाला था । किनतु कांग्ेस और हिनदू महासभा ने कमीशन का देशवयापी बहिषकार किया । बहिषकार में मुशसलम लीग का भी एक गु्ट शामिल था । लेकिन दलित वगतों ने कमीशन का सवागत किया था । सवागत का एक कारण यह था कि कमीशन में कोई भी भारतीय सदसय शामिल नहीं किया गया
था ।
भारतीय सदसय दलित वगतों के हितों की उपेक्ा कर सकते थे । दलित वगतों को उनके ऊपर बिलकुल लव्वास नहीं था । बहुत से गांवों में हिनदुओं ने यह किया कि जब कमीशन पहुंचा तो हिनदुओं ने कुछ अछूतों को साफ कपड़े पहनाकर कमीशन के सामने उपशसथत कर और उनसे यह कहला दिया कि उनके साथ कोई भेदभाव नहीं होता है और उनहें अलग राजनीतिक अधिकार नहीं चाहिए । लेकिन यह चालाकी डा . अमबेडकर के साक्य के सामने विफल हो गई । उनहोंने कमीशन को न केवल दलितों की वासतलवक संखया से अवगत कराया , बशलक उसके आधार पर यह मांग भी की कि दलित वगतों को हिनदुओं से अलग एक विशिष्ट अलपसंखयक वर्ग माना जाये और उनके लिये मुसलमानों की तरह का प्रतिनिधितव दिया जाये । उनहोंने मनोनयन के सिद्धांत का विरोध किया और निर्वाचन पद्धति की मांग की थी ।
1929 में , जब साईमन कमीशन ने अपनी रिपो्टटि दी तो उसका कांग्ेस और हिनदू महासभा ने विरोध किया । एक हिनदू नेता ने उसकी तुलना
मिस मेयो की पुसतक ‘ मदर इंडिया ’ से की , तो अनय हिनदू नेताओं ने उसे प्रलतलरियावादी रिपो्टटि की संज्ा दी । लगभग उसी समय भारत के भावी संविधान की रूपरेखा तय करने के लिये लंदन में गोलमेज सममेलन की घोषणा हुई । इस सममेलन में दलित वगतों के प्रतिनिधि के रूप में डा . अमबेडकर और श्ी आर . श्ीलनवास को आमंलत्त किया गया था । सममेलन में , जो तीन चरणों में हुआ था , डा अमबेडकर ने दलित वगतों के संवैधानिक अधिकारों के लिए उसकी अलपसंखयक समिति को एक ज्ापन दिया , जिसमें उनहोंने दलित वगतों के लिये पृथक निर्वाचन मंडल की मांग की थी । ब्रिटिश प्रधानमंत्ी ने अपने निर्णय में , जिसे इतिहास में ‘ कमयूनल अवार्ड ’ के नाम से जाना जाता है , दलित वगतों की इस मांग को सवीकार कर लिया । कांग्ेस और हिनदू महासभा ने इस निर्णय में दलित वगतों के लिये पृथक अधिकारों को मानने से इनकार कर दिया । उस समय गांधी पूना की येरवदा जेल में थे । उनहोंने जेल में ही दलित वगतों के पृथक अधिकारों के खिलाफ आमरण अनशन शुरु कर दिया । अंततः तमाम दबावों के बाद
tqykbZ 2023 39