उस समय जितने भी बुद्धिजीवी जो सफाई कामगारों से ताललुक रखते थे तथा डॉ . आमबेडकर की मुहिम के समर्थक थे , ने उनके साथ 1956 को बौद्धधर्म ग्हण कर लिया तथा हिनदू धर्म का तयाग कर दिया । यह संखया महार तथा अनय अछूत जाति की अपेक्ा कम थी कयोंकि उस वकत दलित आंदोलन सफाई
कर्मचारियों की बशसतयों में नहीं पहुंच पाया था । खुद नागपुर ( जहां दीक्ा ली गई ) के सफाई कामगार जिनकी यहां बहुत बड़ी संखया है , इस आंदोलन से अछूते रहे ।
सवतंत्ता आंदोलन के दौरान कुछ सामंतवादियों की दृष्टि इस समाज पर पड़ी । गांधीजी ने इनहें हरिजन का नाम दिया तथा सहानुभूति दिखाई । सहानुभूति भी ऐसी थी कि इनहें इस पु्तैनी कामों के लिए ही प्रेरित करती , वे कहते '' यह पुरुषार्थ का काम है इसे मत छोड़ो । यदि तुम इस जनम में अपनी जाति का
काम ठीक तरह से सेवाभावना से करते हो तो तुमहारा अगला जनम ऊंची जाति में हो सकता है ।'' उनका ऐसा कहने के पीछे कया उद्े्य था , ये एक अलग विषय है किनतु उनके इस कथन का यह असर हुआ कि यह समुदाय कभी इस गंदे पेशे से निजात पाने के बारे में नही सोच सका तथा मानव मल को सिर पर ढोना ही अपनी नियति समझने लगा । दूसरी ओर इस बारे में डॉ . आमबेडकर ने कहा इस गंदे काम को छोड़ देने में ही इज्जत है । उनहोंने कहा कि ' हिनदू कहते है यह गंदे पेशे पुरुषार्थ के काम हैं । मैं कहता हूँ I हमने बहुत पुरुषार्थ का काम कर लिया हम छोड़े देते हैं अब तुम पुरुषार्थ कमा लो ।
चूंकि भारत में प्रतयेक जाति दूसरी जाति के प्रति अछूत सा वयवहार करती है । समभवत : ऐसे गुणों से सुसज्जित अमबेडकरवादी कुछ अगड़ी अछूत जातियों ने भी सफाई कर्मचारियों को उसी सामंतवादी नजरिये से देखा । जहां वह एक ओर सवणतों पर समानता का दबाव बना रहे थे , वहीं दूसरी ओर वह सफाई कर्मचारियों से वही रूखा वयवहार करने में कोई गूरेज नही कर रहे थे । इसका परिणाम यह हुआ सफाई कर्मचारियों अछूतों में अछूत हो गये । कई सफाई कर्चारियों समाज के बुशधदजीवी दलित आंदोलन में शामिल हुए किनतु अनय अगड़े अछूत जातियों के जातिगत प्रश्न पर उनहें भी बगले झांकने के लिए मजबूर होना पड़ता , इस तरह वह भी जयादा समय तक आंदोलन की मुखयधारा में नहीं ठहर पाए । आम कामगारों की बात कया करें ।
इस मामले में दलितोतथान के केनद्र कहे जाने वाले नागपुर का लजरि करना प्रासंगिक है । यहां दलित आंदोलन में महार जाति के लोगों ने आपार सफलता अर्जित की है । यही पर डॉ . आमबेडकर ने काम किया है तथा धर्म- परिर्वतन जैसा बड़ा आंदोलन यहीं छेड़ा था । बावजूद इसके नागपुर के कतिपय सफाईकमगी जाति के लोगों को नजरअंदाज कर दें तो इन सफाईकमगी जाति के लोगों में आमबेडकर के आनदोलन का जूं तक नही रेंगता I उल्टे वह यदा कदा यह कहते देखे जाते हैं कि वे तो महार
थे । उनहोंने महारों के लिए किया हमारे लिए कया किया । किनतु इसका दु : खद पहलू यह है कि यह समाज डॉ . आमबेडकर के द्ारा प्रदत्त सुविधा जैसे समानता का अधिकार तथा आरक्ण का अधिकार का भरपूर उपयोग करता है । इससे भी जयादा सोचनीय तथय यह है कि ऐसा सिर्फ अनपढ़ लोग ही नहीं करते बशलक पढ़े-लिखे तथा ऊंचे पदों में आने वाले लोग भी ऐसा ही करते पाये जाते हैं ।
इस आनदोलन में रूकाव्ट डालने वाली वह ताकतें बीच-बीच में हावी हो जाती हैं जो इनहें संस्कृति के नाम पर , अंधलव्वास के नाम पर , दूसरे जनम के नाम पर गुमराह करती रहती हैं । साथ ही इनहें अपने बारे में , भविषय के बारे में तथा अपने अशसततव के बारे में सोचने के संबधं में कमजोर ही बनाती है । लन्चय ही इसका कारण इन जातियों में चेतना की कमी से है । वह अभी भी शोषक एवं उधदारक में फर्क नहीं कर पा रहे हैं । इसके लिए इस समुदाय के वयशकतयों में अधययन की प्रवृत्ति पैदा होनी जरूरी है कयोंकि बिना अधययन के ज्ान आना संभव नहीं है और अधययन के बाद ही अपने अशसततव के प्रति चेतनाशील हुआ जा सकता है , वैसे भी बिना ज्ान के किसी रिशनतकारी परिर्वतन की आशा नहीं की जा सकती । दलित आंनदोलन को उनके घरों तक ले जाने की आव्यकता है इस मामले में इस आनदोलन को कुछ सफलता मिली है । कुछ दलित संगठनों , जिनहोंने इस समाज के कई दलित विचारधारा वाले कार्यकर्ताओं का हूजूम तैयार किया है । जो इस समाज की जागृति के लिए काम कर रहे हैं । अब इस समाज के चेतनाशील दलित युवकों की यह जिममेदारी है कि वह अपने समुदाय को दलित आंदोलन की मुखय धारा में लायें तथा इस प्राचीन भारत की प्राचीन सभयता की ' सिर पर मैला ढोने ' वाली संस्कृति से उनहें निजात दिलायें तथा दलित चेतना की इस मुहिम में इनहें शामिल करें । तभी दलित आंदोलन के इतिहास में सफाई कामगारों के विकास की यह मुहिम रेखांकित की जा सकेगी । �
tqykbZ 2023 35