वाला वयशकत बताया . I दलित कलयाण के लिए प्रतिबद्ध आमबेडकर को किसी पर भरोसा नहीं था । यहां तक की गांधी पर भी नहीं । वे गांधी के आमरण अनशन से बेहद क्ुबध हुए और उनहोंने एक प्रेस कांफ्ेंस में कहा कि गांधी अपनी जान की बाजी लगाकर दलितों को उनके अधिकारों से वंचित करने पर तुले हुए है , यह दलित वगतों के राजनीतिक अशसततव को पूरी तरह तबाह करने का उनका प्रयास है . I
डॉ . आमबेडकर ने “ मूकनायक “ नाम की पलत्का से वैचारिक संग्ाम छेड़ते हुए कहा था कि हिनदू समाज उस बहुमंजिली मीनार की तरह है जिसमें प्रवेश करने के लिए न कोई सीढ़ी है , न दरवाजा । जो वयशकत जिस मंजिल में पैदा होता है , उसे उसी मंजिल में मरना होता है । हिनदूवाद असपृ्यों के लिए यातनाग्ह है । डॉ . आमबेडकर सवतंत्ता के बाद दलितों की दशा को लेकर आशंकित थे और वे अंग्ेजों से दलित अधिकार चाहते थे । उनकी मानयता थी कि बिना राजनैतिक अधिकारों एवं पृथक निर्वाचन के
दलितों का भविषय भारत में सुरलक्त नहीं है तथा इसके अभाव में आज़ादी के बाद भी सामनती शशकतयों का आधिपतय होगा और दलित उनके अधीन रहेंगे । दूसरी और गांधी , आमबेडकर की इस योजना के मुखर विरोधी थे । उनहोंने साफ़ कहा की चाहे मुसलमानों , सिखों और अनय अलपसंखयकों को पृथक निर्वाचन का अधिकार दे दिया जाये , लेकिन दलितों को पृथक पहचान देना घातक है । वह हिनदू धर्म का अभिन्न अंग है , और उन पर जो अतयाचार या दमन हिनदुओं द्ारा किये गये है , उसका प्रायश्चत करने का हक भी हिनदुओं का ही है I
सवतंत्ता संग्ाम की कड़ी चुनौती के बीच दलित कलयाण को लेकर आमबेडकर ने बहुतेरे प्रयास किये । अपने ज्ान और योगयता की बदौलत वह अंग्ेज सरकार को यह समझाने में कामयाब रहे कि भारत की सबसे बड़ी समसया जातीयता की है और करोड़ों दलित हजारों वरतों से सामनती गुलामी झेलने को मजबूर है जिसका रूप इतना विककृत है कि इसकी कलपना भी नहीं
की जा सकती । गोलमेज सममेलन , सामाजिक सममेलन हो या राजनीतिक सभा , बाबा आमबेडकर ने दलितों के अधिकारों को हासिल करने के लगातार प्रयास किये ।
जाति के प्रति आमबेडकर के दृष्टिकोण के इतर दलित जातियों के हित संवर्धन और उनकी गरिमा के प्रति गांधी बचपन से ही सजग थे । साबरमती आश्म का अशसततव ही एक हरिजन परिवार को आश्मवासी बनाने के कारण खतरे में पड़ गया था । असहयोग आनदोलन के रचनातमक कायखारिमों में उनहोंने असपृ्यता निवारण को भी रखा था , 1928 -29 में उनहोनें जो देशवयापी दौरे किये , उनमें अछूतोंद्ार उनके भाषणों का मुखय विषय रहा करता था । 7 नवमबर 1929 को उनहोंने हरिजन उतथान के लिए देश का दौरा कायखारिम प्रारंभ किया , 9 माह में उनहोंने करीब साढ़े बारह हजार मील की लमबी यात्ा ऐसे इलाकों में की जहां जाना मुश्कल होता था और उनहोनें सवणतों से सारे पूवाखाग्ह छोड़ने का अनुरोध किया । उनहोंने हरिजनों से भी मांस खाना , शराब पीना और अपनी सारी कुरीतियां छोड़ने की अपील की I
सामाजिक निषेधों से अशसततव के हाशिये पर रहे करोड़ों दलितों के कलयाण के लिए बाबा आमबेडकर की प्रतिबद्धता मानवीय इतिहास पर प्रभाव डालने वाली एक अलम्ट दासतान है , वहीं अनेक विभाजनकारी , विघ्टनकारी , विनाशकारी सामाजिक ताने-बाने से परिपूर्ण और विविधततापूर्ण प्रवृत्ति वाले भारत में सामाजिक नयाय पर आधारित एक महान देश के निर्माण में महातमा गांधी की भूमिका अतुलनीय है । सवतंत् भारत में सामाजिक नयाय के लिये जो राजनीतिक , आर्थिक व सामाजिक प्रयास किये जा रहे है या जो वैधानिक प्रावधान किये गये है , उसका श्ेय बाबा आमबेडकर को जाता है । लेकिन वासतव में महातमा गांधी के दलित उतथान की भावना को सथालपत करने के लिये बाबा आमबेडकर को इसका जिममा सौंपने में बापू की बड़ी भूमिका रही । जाहिर है इन दोनों महान विभूतियों के रासते जुदा थे लेकिन लक्य करोडों वंचितों को कलयाण करना ही था ।
( साभार )
tqykbZ 2023 33