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की शसथलत में नहीं थे ।
दलितों के उद्धार के लिए समर्पित महान सवतंत्ता सेनानी अलीगढ़ की जा्ट रियासत के आर्य राजा महेंद्र प्रताप अपने जीवन के आरंभिक दिनों में देश भर की यात्ा करते हुए जब द्ारिका के तीर्थ सथल में पहुंचे तो मंदिर के पुजारी ने उनसे उनकी जाति पूछ ली । महाराजा को मंदिर के पुजारी का इस प्रकार जाति पूछना अचिा नहीं लगा । उनहोंने अपनी वासतलवक जाति न बताकर पुजारी से कह दिया कि वह भंगी हैं । तब पुजारी और अनय लोग बोले कि यदि आप भंगी हैं , तो फिर इस मंदिर में प्रवेश करने का अधिकार आपको नहीं है । ऐसा जानकर राजा को बहुत कष्ट हुआ । उनको लगा कि जाति के नाम पर यदि मेरे देश में कुछ लोगों के साथ इस प्रकार का अनयाय हो रहा है तो यह उचित नहीं है । मंदिर के प्रमुख वयवसथापक को जब उनकी वासतलवक जाति के बारे में ज्ान हुआ तो उसने राजा से क्मा याचना की । परंतु राजा महेंद्र प्रताप भी अपने आप में बहुत उच्च आदर्श वाले राजा थे । अब वह अपने संकलप से डिगने का नाम नहीं ले रहे थे । उनहोंने मंदिर के भगवान का दर्शन करने से यह कहकर मना कर दिया कि मैं ऐसे भगवान का दर्शन नहीं करूंगा जो जनम के कारण मनुषय का अपमान करता है ।
आजकल के कांग्ेस के नेता चाहे कितनी ही डींगें मार लें कि उनके नेता महातमा गांधी जी ने दलितों के उद्धार के लिए विशेष कार्य किया था । पर सच यह है कि दलित समाज का उद्धार करना कांग्ेस का मौलिक चिंतन नहीं था । महातमा गांधी भी अपने मौलिक चिंतन में अछूतों के प्रति किसी प्रकार से भी उदार नहीं थे । जब कोई वयशकत या कोई संगठन किसी उधारी मानसिकता या सोच या चिंतन के आधार पर कार्य करता है तो उसके उधारे चिंतन का कोई उललेखनीय प्रभाव दिखाई नहीं देता है ।
यही कारण रहा कि कांग्ेस के महातमा गांधी के दलित कलयाण के कायतों का कोई विशेष प्रभाव दिखाई नहीं दिया । हम कांग्ेस और उसके नेता महातमा गांधी के दलित कलयाण संबंधी चिंतन को उधारा इसलिए कहते हैं कि कांग्ेस
को दलितों के उद्धार के लिए प्रेरित करने वाले आर्य समाज के बड़े नेता महातमा मुंशीराम अर्थात सवामी श्द्धानंद जी महाराज थे । जिनहोंने 1913 में दलितोद्धार सभा का गठन किया था । अमृतसर के कांग्ेस अधिवेशन में 27 दिसंबर 1919 को उनहोंने अपने इस विषय को कांग्ेस के मंच से मुखय रूप से उठाया था और गांधी जी को इस बात के लिए प्रेरित किया था कि वे दलितों के उद्धार के लिए विशेष कार्य करें । यहीं से महातमा गांधी को सवामी श्द्धानंद जी के माधयम से दलितों के लिए कुछ कार्य करने की प्रेरणा मिली । उनहोंने जो कुछ भी किया वह केवल समाज को दिखाने के लिए किया । कोई मौलिक योजना उनके पास ऐसी नहीं थी जिससे दलितों का कलयाण हो सके या वह उनहें समाज में सममानजनक सथान दिला सकें ।
सवामी श्द्धानंद जी महाराज ने कांग्ेस के कलकत्ता व नागपुर अधिवेशन ( 1920 ) में भी सशममलित होकर दलितों के उद्धार के कायखारिम को प्रसतुत किया था । उनहोंने 1921 में दिलली के हिंदुओं को इस बात के लिए प्रेरित किया था कि वह दलित वर्ग के लोग लोगों को अपने कुंए से पानी भरने दें । जिस समय दलितों के हित में कोई बोलने का साहस तक नहीं कर सकता था उस समय हिंदुओं को इस प्रकार की प्रेरणा देना अपने आप में बहुत ही साहसिक पहल थी । जिसे कोई सवामी श्द्धानंद ही कर सकता था । उनहोंने इस कार्य को सहर्ष अपने हाथों में लिया । इससे सवामी जी के साहसिक नेतृतव , दृढ़ इचिाशशकत और दलितों के प्रति हृदय से काम करने की प्रबल इचिा शशकत का पता चलता है ।
हमें यह बात धयान रखनी चाहिए कि जब जब हिंदू समाज को संगठित करने के प्रयास आर्य समाज या किसी भी हिंदूवादी नेता की ओर से किए गए हैं , तब-तब मुसलमानों ने उसमें अड़ंगा डालने का कार्य किया है । जिस समय सवामी जी महाराज दलितों को गले लगाकर उनहें हिंदू समाज की एक प्रमुख इकाई के रूप में जोड़ने का साहसिक कार्य कर रहे थे , उस समय भी मुशसलम नेताओं को उनका यह कार्य
पसंद नहीं आ रहा था । यही कारण था कि सवामी जी महाराज के इस प्रकार के कायखारिम में कांग्ेस के मुसलमान नेताओं ने बाधा डालने का प्रयास किया था , जिसमें मोहममद मौलाना अली का नाम विशेष उललेखनीय है । जिसने लगभग 7 करोड दलितों को हिंदू मुशसलम में आधे-आधे बां्टने की बात भी कही थी । मौलाना अली के इस प्रकार के कायतों से क्ुबध होकर सवामी जी ने 9 सितंबर 1921 को गांधी जी को पत् लिखा था । जिसमें उनहोंने कहा था कि मैं नहीं समझता कि इन तथाकथित अछूत भाइयों के सहयोग के बिना जो सवराजय हमें मिलेगा , वह भारत राषट् के लिए किसी भी प्रकार से हितकारी होगा ।
आज के राजनीतिक दलों को बड़ौदा नरेश और आर्य राजा महेंद्र प्रताप के दलितों के कलयाण संबंधी कायतों से प्रेरणा लेनी चाहिए । आज देश में राजयसभा और लोकसभा के कुल मिलाकर लगभग 800 सांसद हैं । पर उनमें से कोई एक भी राजा महेंद्र प्रताप या महाराजा बड़ौदा बनने का साहस नहीं रखता । यह सब आराम तलब हो चुके हैं । सवामी श्द्धानंद जी महाराज जैसे महापुरुषों का अनुकरण करने की ओर तो यह आंख उठाकर तक नहीं देख सकते । इनकी राजनीतिक इचिाशशकत केवल यहीं तक है कि वह किसी प्रकार हाथ उठाने वाले सांसद
24 tqykbZ 2023