बनकर लोकसभा या राजयसभा में जाकर बैठ जाएं ।
हम ‘ हाथ उठाने वाले सांसद ’ उनहें इसलिए कह रहे हैं कि यह किसी राजनीतिक दल के नेता के तलवे चा्टकर उससे किसी प्रकार उसकी पार्टी का ल्टक्ट लेकर संसद में पहुंचते हैं और वहां फिर अपने नेता को खुश करने के लिए उसके भाषण पर मेज थपथपाते हैं या फिर करतल धवलन से उसकी बातों में अपनी सहमति के सवर मिलाते हैं । इनका चिंतन और इनकी सोच अपने नेता के चिंतन और सोच में इस प्रकार लिप्ट जाती है कि उसे अलग करके देखना तक असंभव हो जाता है । इस प्रकार देश का वर्तमान लोकतांलत्क ढांचा भी राजनीतिक गुलामों को जनम देने में सहायक हुआ है ।
हमारे सांसदों की ‘ यस- मैन ’ होने की प्रवृत्ति है । जो केवल अपने नेता के लिए राजयसभा और लोकसभा में काम करते हुए दिखाई देते हैं । देश हित में काम करना उनके एजेंडा में कहीं दूर दूर तक सशममलित नहीं है । इन जनप्रतिनिधियों को देश के विधान मंडलों में भेजकर हम केवल गुलामों को देश के राजनीतिक विधान मंडलों में भेज रहे हैं । यह सर्वमानय सतय है कि गुलामों से कभी कोई बड़ा काम नहीं हो सकता । कांग्ेस ने कभी भी दलित से मुसलमान या ईसाई बने
लोगों को फिर से हिंदू बनाने का काम नहीं किया । जो लोग हिंदू दलित से इसलाम या ईसाइयत में धर्मानतरित हो गए , उनहें कांग्ेस ने जाने दिया । इस प्रकार दलितों को ही लम्टाकर और उनहें विधमगी बन जाने देने की खुली छू्ट देकर कांग्ेस ने देश को तोड़ने की प्रवृत्ति को भी बढ़ावा दिया । इसके विपरीत सवामी श्द्धानंद जी महाराज ने दलितों को आर्य समाज में लाकर उनहें संसकारित बनाने का कार्य किया । ऐसा करने के पीछे सवामी जी महाराज का एक ही उद्े्य था कि जब वे आर्य समाज में दीलक्त हो जाएंगे तो हिंदू समाज के लोग उनहें मंदिरों में प्रवेश करने की अनुमति देंगे , पर ऐसा हुआ नहीं । तब सवामी श्द्धानंद जी ने बहुत दुखी होकर “ लीडर ” में 11 मई 1924 को लिखा था कि इसका मतलब यह है कि दलित वगतों का कोई भी आदमी जब तक हिंदू समाज और धर्म का परितयाग नहीं करेगा तब तक अपनी सामाजिक अक्मताओं से छु्टकारा नहीं पा सकता ।
अपने दलित भाइयों के साथ छुआछूत भेदभाव और सामाजिक अतयाचार करने वाले हिंदुओं को लताड़ते हुए सवामी श्द्धानंद जी ने ‘ हिंदू संगठन ’ में ( 1924 ) लिखा था कि जो लोग अपने ही समाज के एक तिहाई लोगों को
गुलाम बनाए बनाए हुए हैं और उनहें पैरों तले कुचल रहे हैं , उनहें विदेशियों द्ारा किए गए अतयाचारों के विरुद्ध शिकायत करने का कोई अधिकार नहीं है । सवामी जी महाराज ने मद्रास में एक विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि हिनदुओं , अपने दलित कहे जाने वाले बंधुओं को मान-सममान देकर उनहें अपना अभिन्न अंग समझो । असपृ्यता का परितयाग करो । यह पाप है और यह रोग तुमहें ले डूबेगा । तुम यदि आज इनहें नहीं अपनाओगे तो फिर एक समय ऐसा आएगा जब तुम इनहें अपने में मिलाना चाहोगे परंतु यह तुमहारे निक्ट नहीं आएंगे ।
सवामी श्द्धानंद जी महाराज का उपरोकत कथन आज सतय सिद्ध हो रहा है । हिंदू ने अपनी परंपरागत मूर्खताओं को तयागने का नाम नहीं लिया और राजनीति दलितों के प्रति पूर्णतया उदासीन बनी रही । उसका परिणाम यह हुआ कि दलित रूपी खेत पूरी तरह इसलाम और ईसाइयत को सौंप दिया गया । एक प्रकार से दलितों को इन दोनों विदेशी धर्मावलंबियों को पट्टे पर दे दिया गया । अब पट्टे पर दी गई चीज को फिर से वापस लेना हिंदू समाज के लिए पूर्णतया असंभव होता जा रहा है । अपने ही लोग अर्थात अपने ही समाज के दलित जब मुशसलम या ईसाई बनते हैं तो वे भारत के लोगों के प्रति और भारतीयता के प्रति बहुत ही अधिक दुर्भाव रखते देखे जाते हैं ।
यदि कांग्ेस समय रहते आर्य समाज के नेता सवामी श्द्धानंद जी महाराज के परामर्श को सवीकार कर लेती और अपनी पूर्ण राजनीतिक इचिाशशकत का परिचय देते हुए समाज में दलितों के सममान के लिए जमीन पर लड़ाई लड़ती , देश के राजनीतिक दल इन दलितों को अपने लिए वो्ट बैंक ना मानकर उनके कलयाण के लिए कार्य करते और हिंदू समाज व राजनीति मिलकर इनहे इसलाम और ईसाइयत को पट्टे पर ना देते तो आज देश का हिंदू समाज बहुत अधिक मजबूत होता । समय अभी भी है यदि अब भी हमने शसथलत पररशसथलतयों को संभाल लिया तो आज भी हम एक मजबूत भारत का निर्माण करने में सफल हो सकते हैं । �
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