कर रहे हैं । भूमंडलीकरण के युग में भी दलित वर्ग के विकास में गरीबी एक प्रमुख समसया बनी हुई है । केंद्र सरकार और राजय सरकार दलित वर्ग का विकास के लिए विभिन्न सरकारी योजनाएं लरियाशनवत कर रही हैं लेकिन दलित समाज की आर्थिक दशा में आमूल चूल परिवर्तन ही दृष्टिगोचर होता है कयोंकि दलित समाज का भूमि और उतपादन के संसाधनों पर एकाधिकार नहीं
रहा है ।
भारत में वर्ष 2010 में यूपीए की सरकार के दौरान कॉमनवेलथ घो्टाला , ्टूजीसकेम घो्टाला , कोलसकेम आदि घ्टनाएं दर्शाती है कि भूमंडलीकरण के युग में भी भ्रष्टाचार एक विकराल चुनौती बना हुआ है और यही कारण है कि दलित समाज आज भी हाशिये पर है । दलित वर्ग के बच्चों के लिए स्कूलों और कालेजों में छात्वृत्तियों की वयवसथा की गयी है लेकिन यहां पारदर्शिता के अभाव के कारण दलित समाज सरकारी सहायता पाने में भी नाकामयाब ही दिखाई पड़ता है । दलित समाज के विकास में बालश्म भी प्रमुख समसया निहित है । दलित समाज में आज भी आर्थिक रूप से सशकत नहीं है । इसीलिए उनके बच्चे शिक्ा के सथान पर मजदूरी करनी शुरू कर देते हैं । महंगाई बढ़ गई है कि दलित
जीवनयापन करने में असहज दिखाई पड़ते हैं कयोंकि बहुसंखयक दलित भूमिहीन है । देश में दलित समाज के लाखों बच्चे ऐसे हैं जो उचित वयवसथा के अभाव में मानसिक शारीरिक शोषण का शिकार हो रहे हैं । ऐसा नहीं है कि देश में बाल अधिकारों की रक्ा से जुड़े कानून नहीं है लेकिन वे बाल अधिकारों को सुरक्ा नहीं दे पा रहे हैं कयोंकि सरकारी संसथाएं और गैर सरकारी
संसथाएं ईमानदारी के साथ काम नहीं कर रही हैं और इस समसया को समापत करने के लिए भारत के प्रतयेक वयशकत को अपनी भागीदारी निभानी होगी । बालश्म को समापत करने के लिए पूरी ईमानदारी के साथ लोगों को जागरूक करना होगा । हमें हर बच्चे को शिक्ा देने के लिए ज़ोर देना होगा ।
दलित समाज में अभिशपत भुखमरी एवं गरीबी के लिए अशिक्ा भी एक प्रमुख कारक है । यह सतय है कि अशिक्ा के कारण दलित वर्ग परिवार नियोजन नहीं कर सकता । जिसके आय के प्रतिककूल बच्चे होंगे वो अपने बच्चों को कैसे पढ़ाएगा और कया खिलायेगा ? सरकार को परिवार नियोजन के महतव को जनसमपक्फ , रैली और विज्ापनों के द्ारा समझाना चाहिए । अगर दलित समाज की आर्थिक दशा सवसथ नहीं होगी तो वह
देश के विकास में अपना योगदान नहीं दे सकेंगे । उदाहरण के तौर पर जिस तरह महातमा गाँधी ने आनदोलन चलाया था कि अंग्ेजी राज ह्टाओ , ठीक उसी तर्ज पर आनदोलन चलाना चाहिए और इसमें ‘ दलितों की गरीबी और अशिक्ा ह्टाओ ’ का नारा बुलंद किया जाना चाहिए । गाँधीजी ने कहा था कि राजनीतिक आज़ादी तो मिल गई है मगर आर्थिक आज़ादी नहीं मिली है । जिस तरह हमने अंग्रेज़ों को अपने देश से बाहर निकाला था उसी प्रकार गरीबी और अशिक्ा को भी दूर भगाना होगा तभी एक खुशहाल देश का सपना पूरा हो सकेगा । अमबेडकर द्ारा सुझाया गया तरीका ही सबसे उपयोगी है । ज़रूरत इस बात की है कि सभी राजनीतिक पाल्टटियाँ दलित समाज को सशकत करने के लिए दलितों की सार्वभौमिक समसयाओं को अपना मुद्ा बनाएँ , जिससे दलित समाज को देश की मुखयधारा से जोड़ा जा सके ।
दलित समाज वर्तमान में भी अपने अधिकारों से वंचित है कयोंकि दलित समुदाय पूर्ण रूप से शिक्ा पर अपनी पकड़ नहीं बना पाया है । शिक्ा सर्व समाज के विकास की कुंजी है इसीलिए डॉ . अमबेडकर ने दलितों को लशलक्त बनो , संघर्ष करो और संगठित रहो का गुरुमंत् दिया । दलित समाज गुरु मंत् को अपनाने में नाकामयाब नज़र आता है । दलितों की दशा और दिशा में परिवर्तन अव्य हुआ है , दलित समुदाय के लोग आज उच्च पदों पर आसीन हैं । लेकिन फिर भी दलित समाज सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ है । बाबा साहेब अमबेडकर के सपने को साकार करने में दलित समाज हर क्ेत् में पकड़ बनाने के लिए प्रयास कर रहा है । यह दुर्भागय है इस देश का कि आज़ादी के 75 वरतों के प्चात भी वर्ग को शोषण और हतयाकांडों की घ्टनाओं से प्रतिदिन गुज़रना पड़ता है । यह कहना गलत नहीं होगा कि दलित समाज को सामाजिक समानता दिलाने में सभी वर्ग के लोगों को अपनी लज़ममेदारी निभानी होगी और भारत सरकार को भी दलित समाज के लोगों का विकास करने के लिए नई नीतियां बनानी होंगी , जिससे दलित समाज देश के विकास में ईमानदारी के साथ अपना योगदान दे सकें । �
tqykbZ 2023 19