eMag_July 2023_DA | Page 18

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नानकचन्द
त्तर आधुनिकता के युग में भी

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सामाजिक असमानता और
असपृ्यता की समसया दलित समाज के विकास के मार्ग में एक गंभीर समसया बनी हुई है । दलित समाज आज भी सामाजिक और आर्थिक समानता प्रापत नहीं कर पाया है । लेकिन यह प्रमाणित होता है कि समय की माँग के अनुसार दलितों की दशा और दिशा में आमूल चूल परिवर्तन अव्य हुआ है । केंद्र सरकार और राजय सरकार ने दलित समाज में अभिशपत गरीबी की समसया के निराकरण के लिए विभिन्न सरकारी योजनाएं लरियाशनवत की हैं लेकिन फिर भी दलित समाज सामाजिक और आर्थिक रूप से सशकत नहीं हो पाया है । डॉ . अमबेडकर ने दलित समाज में शिक्ा के प्रति चेतना उतपन्न की जिससे हज़ारों वरतों से शोषित दलित वर्ग अपना सामाजिक और आर्थिक विकास कर सके । लेकिन सवाल यह भी है कि दलित समाज के जनजीवन को गरीबी किस तरह प्रभावित कर रही है और वो कौन से कारक हैं कि दलित समाज एकजु्ट होने में नाकामयाब दिखाई पड़ता है ? और कया वर्तमान में दलित समुदाय के जनजीवन में सकारातमक परिवर्तन हो पाया है या नहीं ?
भारत एक लोकताशनत्क देश है जिसमें 75 प्रतिशत लोग ग्ामों में निवास करते हैं । आज़ादी के 75 वरतों के प्चात भी भारत में जाति अपनी जड़ जमाये हुए है । ऐसा माना जाता है कि भारत का लोकतंत् बेजोड़ है जिसकी जड़ें बेहद मज़बूत हैं और यहाँ का शासन कानून-सममत है । लेकिन प्रश्न यह है कि आज़ादी के इतने वरतों के अंतराल के प्चात भी एक विशेष समुदाय के साथ शोषण

समग्र विकास के लिए दलितों को चाहिए समानता का अधिकार

और उतपीड़न की घ्टना कयों घल्टत होती हैं ? यह इस देश का दुर्भागय है कि डॉ . अमबेडकर के द्ारा बनाए गए संविधान के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है । हम २१वीं सदीं में प्रवेश कर चुके हैं लेकिन दलित समाज के साथ शोषण और उतपीड़न की घ्टनाओं में निरंतर वृद्धि हो रही है लेकिन कुछ शिक्ालवदों का वकतवय है कि समाज की मानसिकता में परिवर्तन अव्य आया है । लेकिन यह बिलकुल गलत है कयोंकि अगर परिवर्तन हुआ है तो दलित समाज की मानसिकता में परिवर्तन हुआ है । यह कहने में संकोच नहीं है कि जिस देश में इं्टरने्ट के युग में भी दलित वर्ग के अधिकारों का हनन किया जाता है , वहां यह कैसे कह सकते हैं कि भारतीय समाज की सोच में निरंतर परिवर्तन आ रहा है ?
आंकड़ों के अनुसार बताया जाता है कि हम 10 पर्सेंट की ग्ोथ रे्ट हासिल कर लेंगे और चीन को पीछे छोड़ देंगे और जिससे देश में प्रति वयशकत आय बढ़कर दोगुनी हो जाएगी । लव्लेरण किया जाये तो यह सर्वविदित है कि भारत के शासन , प्रशासन , कार्मिक मंत्ालयों और विभागों पर उच्च वगतों का ही प्रभुतव रहा है लेकिन फिर भी हमारा देश गरीबी समसया और जाति के अभिशाप से कयों पीड़ित है ? लेकिन इसका उत्तर सभी के पास है । अगर देश का विकास करना है तो दलित वर्ग को समानता का अधिकार देना ही होगा जिससे हज़ारों वरतों से बहिष्कृत समाज देश की मुखय धारा से जुड़कर जन कलयाण के कायतों में अपना योगदान दे सकें । राजय सरकार और केंद्र सरकार दलित वर्ग के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए विभिन्न सरकारी योजनाए लरियाशनवत कर रही है । लेकिन इस तरफ किसी का धयान
नहीं है कि दलित समाज को कैसे देश की मुखयधारा से जोड़ सकें ? भारतीय राजनीतिज्ों को सर्वप्रथम दलित समाज पर धयान देने की ओर ज़रूरत है कयोंकि इतिहास यह प्रमाणित करता है कि देश के आर्थिक विकास में दलित वर्ग ने महत्तवपूर्ण भूमिका निभाई है ।
दलित वर्ग का हज़ारों वरतों से दमन किया जाता रहा है चाहे वो बथानी ्टोला हतयाकांड हो , खैरलांजी हतयाकांड हो और चाहे मिर्चपुर हतयाकांड हो । दलित समाज के सामाजिक और आर्थिक विकास के मार्ग में विभिन्न बाधक ततव हैं जिसके कारण दलित वर्ग पूर्ण रूप से विकास नहीं कर पाया है । दलित वर्ग के सामाजिक और आर्थिक जीवन को गरीबी , जाति क्ेत्वाद , धर्म , भ्रष्टाचार , महंगाई , कुपोषण , अशिक्ा , जनसंखया , प्राककृलतक आपदाय आदि मुखय कारक प्रभावित
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