eMag_July 2023_DA | Página 15

समय के पैमाने से इस सच को कदापि नाकारा नहीं जा सकता है कि दलितोतथान से समाज और देश का समग् विकास संभव है । इस शा्वत हकीकत के आलोक में हमारे संविधान में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के सामाजिक , आर्थिक , शैक्लणक एवं राजनीतिक क्ेत् में उनके हित और सशशकतकरण के लिए अनेक नियम , कानून , प्रावधान तथा कायखारिम एवं योजनाएं बनायीं गयी हैं । बाबा साहेब भीम राव अमबेडकर ने अनुसूचित जातियों और जनजातियों को संवैधानिक धरातल से सुदृढ़ करने का जो प्रावधान पेश किया , सही मायने में देखा जाये तो उस पर अमलीकरण नहीं हो
सका । निश्चत ही इसका श्ेय कांग्ेस पार्टी को जाता है । इससे बड़ी विडमबना कया हो सकती है कि कथनी में बाबा साहेब आंबेडकर की छवि को भुनाया गया और करनी में दलित आंदोलन की धार को " गोठिल " करने की भ्रामक चाल किसी से छिपी है । ऐसे दोहरेपन को लक्य कर बाबा साहेब अमबेडकर ने कांग्ेस को जलता हुआ घर बताया था और दलित नेताओं को इसमें शामिल होने के खिलाफ आगाह किया था । अतीत के पृषठों पर यह हकीकत दर्ज है कि कांग्ेस ने यशवंत राव चवहाण के माधयम से महाराषट् में दलित नेतृतव को हथियाने का कुशतसत खेल खेला । दलित नेता उसके इस
चरिवयह में फंसते चले गए । उनका तर्क यह था कि इससे वह दलित हितों का भला कर सकेंगेI लेकिन दलित समाज के समग् विकास की बजाय दलित समाज के भीतरी जातिवादी पेंच को ऐसा फंसाया गया कि दलितों का विकास इसी में उलझ कर रह गया । अपनी-अपनी डफली पर अपना-अपना राज बजाया जाता रहा और दलित चिंतन और दलित विकास महज वो्ट बैंक का जरिया बन कर रह गया ।
सवतंत्ता के बाद बाबा साहेब अमबेडकर के चिंतन और आंदोलन से लेकर आजतक सामाजिक-राजनीतिक दलित आंदोलन के दृष्टिपथ में दलितों का अंदुरुनी जातिवाद एक विककृत चुनौती बनकर खड़ा है । यह बात अलग है कि सैकड़ों जातियों में ब्टे दलित समाज की कुछ जातियां सामाजिक नयाय के संवैधानिक प्रावधानों के फलसवरूप विकास फलक पर अपनी उपशसथलत दर्ज कराने में कामयाब हुई है , लेकिन उनका नजरिया भी समाज के वंचित दलितों के प्रति भेदभाव और उपेक्ापूर्ण बना हुआ है । इस परिप्रेक्य में यह कदापि विसमृत नहीं किया जाना चाहिए कि बाबा साहब अमबेडकर ने प्रतयेक पिछड़े और शोषित वर्ग के लिए आजीवन संघर्ष किया था । विषमता और असपृसयता जैसी शर्मनाक कुरीतियों के विरुद्ध उनहोंने जिस बुलंदी के साथ आवाज उठायी , वह युगों-युगों तक इतिहास के पन्नों में अमर हो गयी । दलित समाज का समग् विकास और एक समरस भारत बनाने की उनकी अपनी परिकलपना थी । देश की निर्वाचन वयवसथा में दलित नेतृतव को सुअवसर मुहैया कराने के मद्ेनजर लोक सभा , राजय सभा , विधान सभा और विधान परिषदों में दलित समाज के सदसयों को आरक्ण की वयवसथा सुनश्चत की गयी । यह महज इसलिए नहीं की गयी थी कि इसका फायदा हासिल करके कोई दलित सांसद , विधायक या मंत्ी बनकर सिर्फ निजी और अपने परिवार का हित साधन करे और अककूत धन समपलत हासिल रिीमी लेयर के मद में चूर होकर दलित और महादलित की विकासपरक चिंताओं को विसमृलत कर मात् वो्ट बैंक के दायरे में
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