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डॉ अम्ेडकर और डॉ हेडगेवार दोनों का लक्ष्य था दलित कल्ाण
धर्मेंद्र मर्श्ा
श जब गुलामी की जंजीर तोड़कर ns
एक लमबी जदोजहद के बाद
सवतंत् हुआ था , तब देश के सामने अनेक चुनौतियां खड़ी हुई थीं । उच नीच , भेदभाव , अशिक्ा , गरीबी , बेरोजगारी , बेगारी , रो्टी-कपडा और माकन जैसी कई समसयाएं देश के बेहतर भविषय निर्माण के पथ पर बाधक बन कर सामने मौजूद थीं । एक और सवतंत्ता का जश्न में डूबा परिवेश और दूसरी तरफ समसयाओं सी ग्सत संरिांलत काल । यह एक ऐसा विद्रूप सच था , जिससे निजात पाना वयशकत पैमाने की अहम प्राथमिकता थीं । इस उच्च-निम्न भेदभाव के खिलाफ मोहनदास करमचंद गांधी ने न सिर्फ अपनी चिंताओं को वकत के पन्नों पर अंकित किया , बशलक दलितों-वंचितों के सममान और समृद्धि की दिशा उनहोंने संकलपशील अभियान भी शुरू किया । गांधी जी के अलावा डॉ भीम राव अमबेडकर , डॉ राजेंद्र प्रसाद , लोकमानय तिलक , सरदार बललभ भाई प्टेल , चिंतक और विचारक पंडित दीन दयाल उपाधयाय , जयोलतबा िकूले आपने अनेक विभूतियों ने देश की दीन-दशा मजबूत करने की दिशा में अपनी चिंताओं और अपने प्रयासों को पूरी लशद्त के साथ मूर्त रूप दिया । यह अलग बात है कि समय बीतने के साथ साथ दलित समाज महज वो्ट बैंक बन कर रह गया ।
14 tqykbZ 2023