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जोड़ दिया । आप संविधान के मूल प्रसतावना को यहां देख सकते हैं ।
प्रसतावना का मूल – ” हम भारत के लोग , भारत को एक समपूणखा प्रभुतव-समपन्न लोकतंत्ातमक गणराजय के लिए तथा उस के समसत नागरिकों को – सामाजिक , आर्थिक और राजनैतिक नयाय , विचार , अभिवयशकत , लव्वास , धर्म और उपासना की सवतंत्ता , प्रतिषठा और अवसर की समता प्रापत करने के लिये , तथा उन सब में वयशकत की गरिमा और राषट् की एकता सुनिश्चत करने वाली बनधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकलप हो कर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर , 1949 ई . ( मिति मार्गशीर्ष शुकला सपतमी , संवत् दो हजार छह लवरिमी ) को एतदद्ारा इस संविधान को अंगीककृत , अधि-नियमित और आतमालपखात करते हैं ।’’
हिंदू एकता के प्रबल समर्थक
बाबासाहेब की जीवनी लिखने वाले सीबी खैरमोड़े ने बाबा साहेब के शबदों को उदृत करते हुए लिखा है कि ” मुझमें और सावरकर में इस प्रश्न पर न केवल सहमति है , बशलक सहयोग भी है कि हिंदू समाज को एकजु्ट और संगठित किया जाए और हिंदुओं को अनय मजहबों के
आरिमणों से आतमरक्ा के लिए तैयार किया जाए ।’’ बाबासाहेब एक ओर जहां हिंदू समाज की बुराइयों पर चो्ट करते हैं , वहीं वे हिदुओं की एकजु्टता का समर्थन करते हैं । महार मांग वतनदार सममेलन , सिन्नर ( नासिक ) में 16 अगसत , 1941 को बोलते हुए बाबासाहेब कहते हैं , ‘‘ मैं इन तमाम वरतों में हिंदू समाज और इसकी अनेक बुराइयों पर तीखे एवं क्टु हमले करता रहा हूं , लेकिन मैं आपको आ्वसत कर सकता हूं कि अगर मेरी निषठा का उपयोग बहिष्कृत वगतों को कुचलते के लिए किया जाता है तो मैं अंग्ेजों के खिलाफ हिंदुओं पर किए हमले की तुलना में सौ गुना तीखा , तीव्र एवं प्राणांतिक हमला करूंगा ।’’
जातिगत भेदभाव मिटाने पर जोर
हिनदू समाज में जातिगत भेदभाव हुआ है और इसका उनमूलन होना चाहिए इसको लेकर संघ भी सहमत है और बाबा साहेब भी जाति से मुकत अविभाजित हिनदू समाज की बात करते थे । 1942 ईसवी से ही संघ हिंदुओं में अंतरजातीय विवाह का पक्धर रहा है और हिंदुओं की एकजु्टता को लेकर प्रयासरत है । बाबासाहेब का भी मत यही था कि असपृ्यता
दूर हो और शोषितों और वंचितों को समानता का अधिकार मिल जाए ।
भारतीय संस्कृ ति में पूरा विश्ास
धर्म और संस्कृति मामले में भी संघ और बाबासाहेब के बीच वैचारिक सामयता है । संघ भी धर्म को मानता है और बाबासाहेब भी धर्म को मानते थे । इसके साथ ही बाबा साहेब इसलाम और इसाईयत को विदेशी धर्म मानते थे और संघ का विचार भी समान है । बाबासाहेब धर्म के बिना जीवन का अशसततव नहीं मानते थे , लेकिन धर्म भी उनको भारतीय संस्कृति के अनुककूल सवीकार्य था । इसी कारण उनहोंने ईसाइयों और इसलाम के मौलवियों का आग्ह ठुकरा कर बौद्ध धर्म अपनाया कयोंकि बौद्ध भारत की संस्कृति से निकला एक धर्म है ।
संस्कृ त को राजभाषा बनाने का समर्थन
राजभाषा संस्कृत को बनाने को लेकर भी उनका मत सपष्ट था । 10 सितंबर 1949 को डॉ बीवी केसकर और नजीरुद्ीन अहमद के साथ मिलकर बाबासाहेब ने संस्कृत को राजभाषा बनाने का प्रसताव रखा था , लेकिन वह पारित न हो सका । संस्कृत को लेकर राषट्ीय सवयंसेवक संघ का विचार भी कुछ ऐसा ही है ।
आययों का भारतीय मूल का होने पर एकमत
बाबासाहेब मानते थे कि आर्य भारतीय थे और आर्य किसी जाति का नाम नहीं था । उनका ये दृढ लव्वास था कि ‘ शूद्र ’ दरअसल क्लत्य थे और वे लोग भी आयवो के समाज के ही अंग थे । उनहोंने इसी विषय पर एक पुसतक लिखी थी- “ शूद्र कौन थे ”। बाबासाहेब ने इस धारणा का खंडन किया कि आर्य गोरी नसल के ही थे । ऋगवेद , रामायण और महाभारत से उद्धरण देकर उनहोंने संसार को बताया कि आर्य सिर्फ गौर वर्ण के ही नहीं , बशलक ्याम वर्ण के भी थे ।
( साभार ) tqykbZ 2023 13