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धार्मिक आधार पर बंटवारे का विचार
डॉ अमबेडकर ने अपनी पुसतक ‘ थॉटस ऑन पाकिसतान ’ में कांग्ेस की मुशसलम परसत राजनीति की कड़े शबदों में आलोचना की है । उनहोंने मुसलमानों के भारत में रहने पर सवाल उठाते हुए लिखा – कया मुसलमानों की निषठा भारत के प्रति रह पाएगी ? उनका मानना था कि मुसलमान ये सोचते हैं कि अंग्ेजों ने उनसे सत्ता छीनी थी , इसलिए सत्ता उनहें वापस चाहिए । बाबासाहेब को यह चिंता थी कि दुनिया भर में मुशसलमों की जो सोच रही है , अगर उसी सोच के तहत भारत के मुसलमानों का भी होगा तो आने वाला समय मुश्कल भरा होगा । उनहें लगता था कि अगर भारतीय मुशसलम अपने आपको देश की धरती से जोड़ नहीं सका और मुशसलम साम्राजय सथालपत करने के लिए विदेशी मुसलमान देशों की ओर सहायता के लिए देखने लगा , तो इस देश की सवतंत्ता पुन : खतरे में पड़ जाएगी ।
समान नागरिक संहिता पर एकमत
बाबासाहेब अमबेडकर समान नागरिक संहिता के प्रबल समर्थक थे , लेकिन कांग्ेस और वामपंथी इसका हमेशा विरोध करते रहे हैं । लेकिन बाबासाहेब ने संविधान सभा में कहा था , ” मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि समान नागरिक संहिता का इतना विरोध कयों हो रहा है ? यह सवाल कयों पूछा जा रहा है कि भारत जैसे देश के लिए समान नागरिक संहिता लागू करना संभव है ?’’ उनहोंने कहा समान नागरिक संहिता एक ऐसा कानून होगा जो हर धर्म के लोगों के लिए समान होगा और उसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं होगा । इस कानून में परिवार , विवाह , संपत्ति और मूलभूत नागरिक अधिकार के मामलों में बराबरी होगी । राजय का यह कर्तवय होगा कि वह लोगों के वयशकतगत अधिकार को सुनिश्चत करेगा और समुदाय के नाम पर उनका हनन नहीं होगा ।
अनुच्ेद-370 का प्रबल विरोध
भारतीय संविधान के अनुचिेद-370 जिसमें क्मीर को कई विशेष अधिकार प्रापत हैं , उनके खिलाफ बाबासाहेब ने काफी मुखर होकर अपने विचार रखे थे । उनहोंने अनुचिेद 370 के बारे में शेख अबदुलला को लिखे पत् में कहा था , ” आप चाहते हैं कि भारत जममू-क्मीर की सीमा की सुरक्ा करे , यहां सड़कों का निर्माण करे , अनाज की सपलाई करे साथ ही क्मीर के लोगों को भारत के लोगों के समान अधिकार मिले । आप अपनी मांगों के बाद चाहते हैं कि भारत सरकार को क्मीर में सीमित अधिकार ही मिलने चाहिए । ऐसे प्रसताव को भारत के साथ लव्वासघात होगा जिसे भारत का कानून मंत्ी होने के नाते मैं कतई सवीकार नहीं करुंगा ।“ गौरतलब है कि जिस दिन यह अनुचिेद बहस के लिए आया उस दिन बाबा साहब ने इस बहस में हिससा नहीं लिया ना ही उनहोंने इस अनुचिेद से संबंधित किसी भी सवाल का जवाब दिया । राषट्वाद की अवधारणा का समर्थन संघ और बाबासाहेब के बीच वैचारिक सामय ये भी है कि दोनों अखंड राषट्वाद के पक्धर रहे । डॉ . आंबेडकर समपूणखा वांगमय के खंड 5 में लिखा है , ” डॉ अमबेडकर का दृढ़ मत था कि
मैं हिंदुसतान से प्रेम करता हूं । मैं जीऊंगा तो हिंदुसतान के लिए और मरूंगा तो हिंदुसतान के लिए । मेरे शरीर का प्रतयेक कण और मेरे जीवन का प्रतयेक क्ण हिंदुसतान के काम आए , इसलिए मेरा जनम हुआ है ।’’
वामपंथ की विचारधारा का विरोध
25 नवमबर 1949 को संविधान सभा में बोलते हुआ बाबासाहेब ने कहा था , ” वामपंथी इसलिए इस संविधान को नहीं मानेंगे कयोंकि यह संसदीय लोकतंत् के अनुरूप है और वामपंथी संसदीय लोकतंत् को मानते नही हैं ।’’ बाबा साहेब के इस एक वकतवय से यह जाहिर होता है कि बाबा साहेब जैसा लोकतांलत्क समझ का वयशकततव वामपंथियों के प्रति कितना विरोध रखता होगा !
पंथ निरपेक्ष राष्ट्र पर समान विचार
बाबासाहेब का सपष्ट मत था कि भारत धर्म निरपेक् राषट् नहीं होगा , लेकिन कांग्ेस ने संविधान के मूल प्रसतावना में ही संशोधन कर दिया है । इसमें कांग्ेस ने धर्मनिरपेक्ता , समाजवाद और अखंडता शबद को अलग से
12 tqykbZ 2023