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कोई बहाना बनाकर अपनी पत्ी को साथ लेकर नहीं जाता है । पत्ी बेचारी , उसके पास अपने पति का लव्वास करने के अतिरिकत अनय कोई सहारा नहीं होता और वह वरतों तक यह सोच कर अपने पति का इंतजार करती रहती है कि जलद ही वह उनहें अपने साथ लेकर जाएगा ।
यह सब उत्तर प्रदेश , बिहार , झारखंड , पश्चम बंगाल , उड़ीसा सहित अधिकतर राजयों के ग्ामीण क्ेत्ों में बहुत ही आराम से देखा जा सकता है । एक आम पुरुष को छोड़ भी दें , तो भारत की राजनीति में कई ऐसा नेता सामने आ चुके हैं , जिनके निजी पारिवारिक जीवन में ऐसा हुआ । यह अलग बात है कि उनहें अपने राजनेता होना का लाभ मिला और उनके कर्म की चर्चा नहीं हो सकी । धर्मपत्ी के जीवित रहते और उनहें गांव में अलग-थलग जीवन जीने के लिए बाधय करने की इस प्रवृत्ति ने कई शसत्यों का जीवन नर्क से बदतर बना दिया और उनहें अभिशपत जीवन जीने के लिए बाधय कर दिया । प्रो तुलसीराम भी उनमें से एक कहे जा सकते हैं ।
प्रश्न यह है कि कया बिना तलाक के दूसरी शादी करना कानूनी रूप से मानय है ? नहीं । भारत के कानून में बिना तलाक लिए दूसरी शादी करना अपराध है । इस अपराध के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा-494 के तहत साल वर्ष का कारावास और जुर्माने का प्रावधान है । हिंदू मैरिज एक्ट-1955 के अनुसार दूसरी शादी कानूनी रूप से मानय नहीं है और यह कानून पुरूष और महिला दोनों पर लागू होता है । ऐसे में दूसरी शादी करने के लिए पुरूष या महिला को सबसे पहले नयायालय से आधिकारिक रूप में तलाक लेना आव्यक होता है । यह क़ानून भारत में हिंदू , सिख और बौद्ध धर्म के लोगों पर लागू होता है , जबकि मुशसलम समुदाय इस क़ानून के दायरे में नहीं आता है ।
इसके बावजूद विभिन्न राजयों में प्रायः ऐसे मामले सामने आते रहते है , जिनमें पति अपनी पहली पत्ी को बिना बताए और बिना तलाक दिए दूसरी महिला के साथ शादी कर लेता है । आखिर समाज में यह प्रवृत्ति कयों पैदा हुई और इसके पीछे कया कारण हो सकते हैं ? पर विचार किया जाए तो कहना गलत नहीं होगा कि इसके
पीछे कहीं न कहीं भारत का सिनेमा जगत भी दोषी है । सिनेमा जगत के कई सितारे , जो आम जनता के मशसतषक पर अपने गंभीर प्रभाव अपनी फिलमों के माधयम से डालते हैं , उनहोंने भी ऐसा ही किया । इस समबनध में फिलम अभिनेता धममेंद्र का उदाहरण सभी के सामने हैं , जिनहोंने पंजाब के एक गांव में रहने वाली अपनी पत्ी को छोड़ दिया और मुंबई में हेमामालनी के साथ शादी कर ली । यह सिर्फ धममेंद्र की ही कहानी नहीं है , बशलक तमाम ऐसे फिलम अभिनेता और अभिनेत्ी मिल जाएगा , जो अपने मूल जीवन साथी के प्रति ईमानदार नहीं रह पाए । ऐसा ही राजनेताओं के साथ भी देखा जा सकता है । कई राजनेताओं की धर्म पत्ी गांव में उनका इंतजार करती रही , पर उनहोंने अपनी रंगीनी के लिए दूसरा विवाह कर लिया और अपने ही में खो गए । प्रशासनिक अधिकारी हों या बुद्धिजीवी या फिर कोई और । समाचार पत्ों में आए-दिन ऐसे समाचार आते रहते हैं , जहां पहली पत्ी या पहले पति द्ारा अपने साथी के अमर्यादित संबंधों को लेकर विवाद होने का खुलासा होता है ।
एसडीएम जयोलत मौर्य और उनके पति आलोक मौर्य के बीच जारी विवाद भी कुछ ऐसी ही कहानी सुनाता है । यहां भी शसथलत वही है , जो प्रो . तुलसीराम और उनकी धर्मपत्ी राधादेवी के बीच थी और यह सब सिर्फ एक जाति , वर्ग या धर्म तक ही सीमित नहीं है । पंजाब के कई जिलों में भी ऐसा कुछ देखा जा सकता है , जहां पति नौकरी के लिए विदेश गया और वहां उसने दूसरा विवाह कर लिया , जबकि उनकी धर्म पत्ी पंजाब में अपने घर में पति का इंतजार करती ही रही ।
पिछले वर्ष मद्रास उच्च नयायालय की मदुरै
पीठ ने माना है कि यदि कोई लोक सेवक अपनी पहली पत्ी के जीवनकाल के दौरान दूसरी शादी करता है , तो दूसरी पत्ी उसकी किसी भी सेवा लाभ की हकदार नहीं है । लेकिन वासतलवकता में कया ऐसा होता है ? शायद नहीं । अधिकतर मामलों में देखा गया है कि दूसरी शादी करने के बाद पति ने सब कुछ अपनी दूसरी पत्ी और उससे होने वाले बच्चों के नाम कर दिया और उधर धर्म पत्ी और उसके बच्चे जिंदगी भर अपने पति या पिता का बेचैनी से रासता ही देखते रहे ।
नगरीकरण अपने साथ कई तरह की सहूलियत , आराम और विकास को लेकर आता है , लेकिन नगरीकरण का दूसरा पक् उस कालिमा को भी उजागर करता है , जहां नशा है , जहां रंगीनी है , जहां खुलापन है और जहां रर्ते और संबंधों का कोई वजूद नहीं है । इस काले पक् में सिर्फ महिला और पुरुष ही होते हैं , जिनके मधय किसी भी प्रकार की शर्म , लिहाज , रर्तों की मर्यादा या फिर संसकार का वजूद नहीं होता है । यहां सिर्फ सुख का ही विचार होता है और सुख की यह अवधारणा सिर्फ शारीरिक सुख और भोग तक ही सीमित होती है । यही कारण है कि ग्ामों की अपेक्ा नगरों की संस्कृति कहीं न कहीं नकारातमक मानसिकता को जनम देती है और इसका सबसे घातक प्रभाव उन पर पड़ता है , जो अभाव और संक्टों के मधय ग्ाम में जीवन जीते हुए बेहतर जिंदगी के लालच में नगरों की तरफ पलायन करते हैं । नगरों में पलायन के बाद जब वह जिदंगी के उस रंगीन सवरूप को देखते हैं , जिसके विषय में उनहोंने कभी विचार ही नहीं किया था । ऐसे में अधिकतर उस रंगीनी में खोकर प्रो . तुलसीराम जैसे बन जाते हैं । �
10 tqykbZ 2023