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एवं बादशाहों का इतिहास बढ़ा-चढ़ा कर लिखा ह़ी था किंतु हिनदुसथान के इतिहास लेखन के समबनि में विदेश़ी यालत्यों के संसमरण पर पूरा भरोसा किया जा सकता है । ऐसे में हिनदुओं क़ी प्रताड़ना एवं मधयकाल क़ी सामाजिक , आर्थिक एवं प्रशासनिक वयिसथा क़ी क्पना क़ी जा सकत़ी है । मधयकाल में हिनदू उत्पीड़न पराका्ठा पर था । उनमें भ़ी प्रारंभिक याऩी आक्रमण काल में आक्रोश एवं शत्ुता के कारण विदेश़ी आक्रांताओं का प्रचंड उत्पीड़न , सिालभमाऩी , धर्माभिमाऩी एवं योद्धा हिनदुओं को सदैवसहना पड़ा । युद्ध में बंद़ी बनाये गए लोगों के सममान , सिालभमान एवं धर्माभिमान के साथ खिलवाड़ हुआ । जो हिनदू कमजोर थे एवं प्रचंड उत्पीड़न और अतयािार के समक् घुटने टेक दिए थे , वह धर्म बदलकर मुसिमान बन गए , किनतु कट्टर , सिालभमाऩी एवं धर्माभिमाऩी हिनदुओं ने असिचछ कर्म करना स्वीकार किया , लेकिन हिनदू धर्म को तयागने से इंकार कर दिया ।
डॉ शासत्री ने बताया कि हिनदू समाज में वैदिक काल से लेकर मधयकाल के पहले तक सथाय़ी रूप से असपृशयता कभ़ी नहीं थ़ी । डॉ आंबेडकर ने ‘ अछूत कौन और कैसे ?’ पृ्ठ 49 एवं 50 पर लिखा है कि- “ ब्ाह्मण , क्लत्य , वैशय और शूरि सभ़ी दास होते थे । दास प्रथा अनुलोम क्रम से था । वैसे भ़ी महाभारत का वह प्रकरण जिसमें भगवान श्री कृ्ि सियं अतिथियों के भोजन के उपरांत उनके जूठे पत्ि उठाये थे । हिनदू लोक ज़ीिन में असथाय़ी असपृशयता का पाया जाना अतयंत साधारण बात है , किनतु सथाय़ी असपृशयता तो अनतयज एवं शूरिों के साथ भ़ी नहीं था । कोई वयलकत सथाय़ी रूप से असपृशय नहीं हो सकता है । जब तक कोई वयलकत या समूह किस़ी कार्य या पररलसथलत विशेष में होता है , तभ़ी तक उसे असपृशय माना जाता हैI शौचादि के समय वयलकत के साथ असपृशयता क़ी लसथलत प्रायः प्रतिदिन होत़ी है किनतु स्ानादि के उपरानत वह असपृशयता से मुकत हो जाता है । सूतक काल में समपूि्थ परिवार ह़ी दस दिनों तक असपृशय रहता है । इस़ी प्रकार लसत्यां अपने मासिक धर्म काल में असपृशय मानय हैं , किनतु एक लनलशित
समयावधि एवं उसके उपरांत वह धर्मादि अनु्ठान इतयालद में सामानय रूप से भाग़ीदाऱी करत़ी है ।
डॉ शासत्री के अनुसार यदि मधयकाल में हिनदुओं के वयापक एवं प्रचंड उत्पीड़न क़ी घटना नहीं हुई होत़ी तो कम से कम वर्तमान भारत़ीय उपमहाद्वीप के देशों में मुलसिम वर्ग , अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति क़ी उतपलत् तो नहीं ह़ी होत़ी । जिस प्रकार सिालभमाऩी हिनदुओं को दबाकर एवं कुचलकर मधयकाल में उनका दमन और दलन के उपरांत बलपूर्वक असिचछ कायमों में लगाकर उनहें असपृशय एवं दलित क़ी पहचान द़ी गय़ी , उस़ी प्रकार वर्तमान मुसलमान भ़ी ठ़ीक इस़ी पररलसथलत में बलपूर्वक विदेश़ी मुलसिम आक्रांता शासकों के तलवार क़ी नोंक पर हिनदुओं का धर्मानतरण करके बनाये गए । आज भ़ी मुसलमानों क़ी छठ़ी एवं सातवीं प़ीढ़ी का प्रमाणित तथय हिनदू पूर्वजों के रूप में प्रापत होता हैI यह पूर्ण प्रमाणित और वासति में सर्वविदित है कि वर्तमान समपूि्थ दलित वर्ग याऩी दलित एवं जनजात़ीय समाज प्राि़ीन काल के सिालभमाऩी हिनदू योद्धा एवं योद्धा जातियों के सामाजिक रूप से परिवर्तित वंशज है । भारत , नेपाल तथा अनयानय भारत़ीय उपमहाद्वीप़ीय देशों क़ी वासतलिकता से अनलभज् किनतु एक कटु सतय के आधार पर लगभग सभ़ी दलित जातियां अपने को क्लत्य या राजपूत या ऐस़ी अनय योद्धा प्रजातियों से अपऩी उतपलत् का प्रमाण देत़ी है । लेकिन इस सनदभ्थ में सर्वदा प्रमाणिकता एवं तथय पूर्ण ठोस शोध कायमों का अभाव रहा है ।
उनहोंने कहा कि राजऩीलतक क्ेत् में कुछ लोगों ने “ दलित ” शबद पर आपलत् जताते हुए कहा करते है कि जिस प्रकार रा्ट्रपिता महातमा गांि़ी द्ारा दिया गया नाम " हरिजन " का भाव दलितों को आघात पहुंचता है , इस प्रकार दलित शबद का भ़ी भाव है । वासति में ऐस़ी बातें करने वालों के पास दलित समाज क़ी उतपलत् के सतयालपत एवं प्रमाणित तथयों क़ी जानकाऱी का अभाव ह़ी रहा । “ दलित ” शबद तो संघर्ष एवं ि़ीरता का एक पर्याय हैI वर्तमान में यदि “ दलित ” जातियों के निर्माण एवं “ दलित ” शबद
क़ी उतपलत् पर यथोचित प्रमाण नहीं दिए गए तो “ दलित ” शबद क़ी जगह जो भ़ी शबद आएंगे , उनका भ़ी भाव दूषित होता चला जाएगा । दलित शबद सिालभमान , सममान एवं इतिहास के उस कालखंड का यथार्थ है , जो गौरव और सममान का प्रत़ीक है । दलित शबद किस़ी जाति या समुदाय के साथ यदि जुड़ा हुआ पाया जाये तो सामानय हिनदुओं को उनका सममान करना चाहिए कयोंकि विदेश़ी इसिालमक आक्रांताओं के भयानक उत्पीड़न के उपरांत वे हिनदुओं एवं हिंदुति क़ी रक्ा करने में सफल हुए । दलित शबद क़ी जगह वंचित शबद का प्रयोग प्रचलन में आया किनतु वयिहार पक् ने उसे कभ़ी स्वीकार नहीं किया । देखा जाए तो सच यह है कि वंचित तो कोई भ़ी हो सकता है , एक ब्ाह्मण भ़ी वंचित हो सकता है , किनतु एक ब्ाह्मण कभ़ी दलित नहीं हो सकता । इसलिए दलित शबद वंचित शबद के समानार्थक नहीं प्रयोग हो सकता है ।
डॉ शासत्री के अनुसार दलित समसया आर्थिक समसया इसलिए नहीं है कयोंकि करोड़ों क़ी संपलत् का सिाम़ी होते हुए भ़ी एक दलित
8 दलित आं दोलन पत्रिका tuojh 2022