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जाति के वयलकत को धनवान दलित अथवा पैसे वाला दलित ह़ी कहा जाता है । इस़ी प्रकार पढ़-लिखकर एक उच् मेरिट को प्रापत दलित जाति के वयलकत को पढ़ा-लिखा दलित , दलित डाकटर , दलित इंज़ीलनयर के ह़ी रूप में समबोलित किया जाता हैI डॉ ब़ी आर आंबेडकर को एक पढ़ा-लिखा दलित के साथ दलितों का मस़ीहा ह़ी कहा गया । राजऩीलतक रूप से यदि देखा जाए तो दलित जाति का एक सदसय सांसद , विधायक , राजऩीलतक दलों का पदाधिकाऱी , मंत्री या रा्ट्रपति इतयालद भ़ी बन जाता है किनतु फिर भ़ी उसक़ी पहचान दलित ह़ी बऩी रहत़ी है । क्पना क़ीलजए कि रा्ट्रपति जैसे पदों पर पहुंचने के उपरांत भ़ी एक दलित जाति का सदसय “ दलित रा्ट्रपति ” के रूप में ह़ी चर्चा का विषय बना रहता है ।
डॉ शासत्री ने कहा कि यदि विकास को भ़ी आधार मान लिया जाए तो दलित समसया का उनमूिन उपर्युकत उदाहरणों द्ारा सप्ट रूप से असफल प्रत़ीत होता हैI इसलिए यह तथयातमक लन्कष्थ है कि दलित समसया आर्थिक , शैक्लिक या राजऩीलतक नहीं बल्क
सामाजिक है । ऐसे में दलित समसया का समाधान सामाजिक स़ीमा के अंतर्गत समाज में सथालपत मानसिकताओं को बदलने के उपरांत ह़ी निकल सकेगा । इसलिए सरकार हो या नेता , उनहें दलित समसया के समाधान के लिए सामाजिक कार्यक्रमों , उपबंधों एवं समाज क़ी मानसिकताओं को परिवर्तित करने क़ी दिशा में चिंतन करने क़ी आवशयकता है । सर्वप्रथम दलित शबद भारत में 1931 क़ी जनगणना में अंग्ेजों द्ारा " डिप्रेसड किास " के रूप में प्रयोग हुआ । कालांतर में डॉ आंबेडकर ने इसे मराठ़ी में " दलित " शबद के रूप में प्रयोग किया । असपृशय या असिचछ वयिसाय आज भ़ी भले ह़ी समाज ने स्वीकार कर लिया हो किनतु सैकड़ों वर्ष पहले सिालभमाऩी हिनदुओं ( ब्ाह्मण एवं क्लत्यों ) को विदेश़ी शासकों के दुर्भावना और आक्रोशवश इस श्रेणी में लाया गयाI अस़ीलमत उत्पीड़न एवं अतयािार सहकर भ़ी हिनदू बने रहे महान हिनदू सिालभमाऩी एवं धर्माभिमानियों को मधयकाल के सितंत्ता सेनाऩी क़ी मानयता मिलऩी चाहिए , न कि उनहें निम्न जाति का कहकर उनके तयाग , बलिदान
एवं हिनदू धर्म रक्ा के महान योगदान को नकारने अथवा उसक़ी उपेक्ा क़ी आवशयकता है ।
कार्यक्रम क़ी अधयक्ता डाँ ब़ी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ान विशिलिद्ािय क़ी कुलपति श्रीमत़ी आशा शुकिा ने क़ी । कुलपति का पदभार ग्हण करने के उपरांत श्रीमत़ी शुकिा लगातार विशिलिद्ािय को जनता के मधय पहुंचने का कार्य कर रह़ी हैं । उनहोंने विशिलिद्ािय में ऐसे कई शोध और अनयानय कायां कराये हैं जो स़ीिे और सट़ीक रूप से जनक्याि क़ी अपेक्ाओं को पूर्ण करते हैं और विशिलिद्ािय को भ़ी जनक्याि में सार्थक बना रह़ी हैं । उनके कार्यकाल में ऐसे सैकड़ो शोध कार्य हुए हैं , जिसका सामाजिक रूप से मू्याङ्कन यदि किया जाये तो विशिलिद्ािय के सामाजिक सरोकार को प्रकट करता हुआ दिखाई देता है । उनहोंने डॉ शासत्री का सिागत करते हुए कहा कि डॉ शासत्री के विचारों के माधयम से विशिलिद्ािय में डॉ आंबेडकर प़ीठ विविध दृलशटकोणो से शोध कार्य करेग़ी और डॉ आंबेडकर के विचारों के आधार पर सुसंगठित समाज क़ी संरचना में अपऩी भूमिका तय करेग़ी ।
कार्यक्रम में एम एस विलशिद्ािय के पूर्व प्रोफ़ेसर देवलदास गुपता ने कहा कि डॉ . आंबेडकर के चिंतन एवं ऩीलतयों में हमेशा रा्ट्र एवं समाज का सिाांग़ीि विकास ह़ी रहा है । सामाजिक कुऱीलतयों एवं बुराइयों को हटाकर वे एक सिसथ समाज का निर्माण करना चाहते थे जिसके लिए उनहोंने अपऩी संवैधानिक ऩीलतयों में समरसता का समावेश करने का पूरा प्रयास किया । हमें उनके सपनों का रा्ट्र बनाने के लिए उनके कृतिति को अचछे से समझने एवं पढ़ने क़ी जरूरत है । कार्यक्रम में संयुकत रा्ट्र ह्ूमन सेटेलमेंट कार्यक्रम के वरर्ठ सलाहकार मार्कणडेय राय , विवि के कुलसचिव डॉ . अजय वर्मा , डॉ . मऩीषा सकसेना , डॉ . मनोज कुमार गुपता ने भ़ी अपने विचार रखे । कार्यक्रम में डॉ . रामशंकर सहित , सहायक कुलसचिव संधया मािि़ीय , डॉ . द़ीपक कारभाऱी सहित कई लशक्क , अधिकाऱी मौजूद रहेI �
tuojh 2022 दलित आं दोलन पत्रिका 9